रीढ़ की हड्डी मानव शरीर का आधार है।इसको मानव शरीर की नींव भी कह सकते हैं ।मानव शरीर की ऊर्जा संचालन का विशेष केंद्र है, रीढ की हड्डी ।जब कोई मकान का निर्माण कार्य शुरू किया जाता है , तो सबसे पहले नींव भरी जाती है।नींव गहरी और मजबूत होगी तो मकान अधिक वर्षों तक साथ निभाएगा।यही बात हमारे शरीर में लागू होती है। अतः बचपन से हमें हमारे शरीर की नींव यानी कि रीढ़ को सीधा रखने कहा जाता है।
हमें बैठते समय, खड़े होते समय, पढ़ते समय रीढ की हड्डी सदा सीधी रखनी के निर्देश दिए जाते हैं ।ऐसा हम विद्यार्थी जीवन में पुस्तकों में भी पढ़ते हैं ।अक्सर योग की क्रियाओं में भी हमें रीढ़ की हड्डी सीधी रखने का निर्देश दिया जाता है।लेकिन हमें रीढ की हड्डी सीधी क्यों रखनी चाहिए, ऐसा हममें से कम लोगों को ही पता है।
हमारी पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति हर वस्तु को अपनी ओर अर्थात नीचे की ओर खींचती है।सीधे बैठने , उठने, चलने से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम हो जाता है, लेकिन हमारे आड़े- तिरछे होते ही गुरुत्वाकर्षण शक्ति हम पर अपना कार्य करने लगती है, जिससे हमारे शरीर की अधिकांश ऊर्जा इसको संतुलित करने में व्यय हो जाती है लेकिन रीढ़ की हड्डी सीधी रखने से एक तो हमारी ऊर्जा की बचत हो जाने से हम अधिक देर तक सक्रिय रह सकते हैं ।
<<<<<< रीढ़ की हड्डी सीधी रखने के स्वास्थ्य लाभ>>>>>>
रीढ़ की हड्डी हमारे शरीर का मुख्य अवयव है।शरीर क्रिया विज्ञान की दृष्टि से रीढ़ की हड्डी सीधा रखने से हृदय तथा फेफड़ों के कार्य में रुकावट नहीं आती ; जब कि रीढ़ को सीधा नहीं रखने से हृदय और फेफड़ों की मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है तथा श्वसननलियों द्वारा फेफड़ों में ऑक्सीजन व कार्बन-डाइऑक्साइड का ठीक तरह से आदान-प्रदान नहीं हो पाता है।इससे हमारे रक्त को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न मिलने के कारण रक्त शुद्धिकरण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है ।
रीढ को आड़ा- तिरछा रखकर उठने-बैठने से जब हमारे रक्त में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है और सारे शरीर में ऑक्सीजनेटेड रक्त (शुद्ध रक्त) के स्थान पर डी- ऑक्सीजनेटेड
( अशुद्ध रक्त) कार्बोक्सिल एसिड परिभ्रमण करता है , तो इसके परिणामस्वरूप शरीर में थकान एवं आलस्य महसूस होता है। रीढ़ को सीधा रखकर चलने, बैठने व सोने से शरीर में ऑक्सीजनेटेड रक्त अर्थात शुद्ध रक्त का परिसंचरण होता है।रीढ़ के निरंतर झुके रहने से हृदय, फेफड़े, गुर्दे , स्नायु एवं पाचनतंत्र कमजोर एवं रोगग्रस्त हो सकते हैं इसके विपरीत रीढ को सीधा रखने से दिल, दिमाग, फेफड़ों को भरपूर ऑक्सीजन एवं पोषण मिलता है।
बहुत से बच्चे पढ़ाई करते समय कमर झुकाकर बैठते हैं, स्कूल जाते समय पीठ पर बस्ते का वजन अधिक होने के कारण झुककर चलते हैं, इससे भी उनकी शारीरिक बनावट पर असर पड़ता है और उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। कंप्यूटर पर कार्य करते समय या मोबाइल पर वीडियो देखते समय यदि बहुत देर तक झुककर बैठा जाए या हमारी गर्दन की स्थिति सही नहीं हो तो उससे हमारी गर्दन, रीढ़ की हड्डी, कमर, हाथों की उँगलियों व आँखों आदि पर बुरा असर पड़ता है और प्रायः उनमें दर्द रहने लगता है।
गलत शारीरिक बनावट प्रायः व्यक्ति को शिथिलता व सुस्ती से भर देती है और सही तरीका व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास के स्तर को बढ़ाता है -- इस बात को अब शोध अध्ययन भी प्रमाणित कर चुके हैं ।
बच्चों को भी पढ़ते सम उन्हें सदा रीढ़ की हड्डी सीधी रखने के लिए कहें ।इससे वे जल्दी थकेंगे नहीं और उनके स्वास्थ्य के लिए भी यह अच्छा रहेगा।रीढ़ को सीधा रखकर काम करने से नेत्र ज्योति भी अच्छी बनी रहती है।आयुर्वेद आचार्यों से यह भी सुना है कि सदा रीढ़ की हड्डी सीधी रखने वालों के बाल भी जल्दी सफेद नहीं होते ।
हम सभी को अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए रीढ को सीधा रखकर बैठने-चलने व लेटने का अभ्यास करना चाहिए ।यदि हम लंबे समय तक रीढ़ की हड्डी को झुका कर ही उठते-बैठते हैं,तो इससे हमारे शरीर के आकार-प्रकार में भी गड़बड़ी आ सकती है ; जब कि रीढ को सीधा रखने से शरीर का आकार भी सुडौल रहता है , साथ ही अन्य शारीरीक गतिविधियाँ भी सुचारु रूप से अपना काम करती हैं । रीढ़ को सीधा रखकर बैठने व कार्य करने की आदत से हम शरीर व मन सम्बन्धी अनेक परेशानियों से बच जाते हैं ।
<<<<< रीढ़ की हड्डी सीधी रखने से आध्यात्मिक लाभ>>>>>
आध्यात्मिक व सूक्ष्म दृष्टि के अनुसार--- हमारी रीढ़ की हड्डी में क्रमशः सात चक्र स्थित हैं और इनमें से होकर ही हमारे शरीर में ऊर्जा का संचार होता रहता है। रीढ़ की हड्डी को सीधा नहीं रखने से चक्र व ग्रन्थियों में ऊर्जा अवरुद्ध भी हो जाती है।यदि हम योग क्रियाओं के समय रीढ़ को सीधा नहीं रखेंगे तो योग से प्राप्त ऊर्जा को पूर्ण संरक्षित नहीं कर पाएँगे। इसलिए जप, ध्यान, प्राणायाम आदि सभी योग साधनाओं में रीढ़ को सीधा रखने पर बहुत जोर दिया जाता है।
हमारे देश के अनेक धार्मिक कार्यक्रमों में हम अपने आदरणीय कथाकारों व आध्यात्मिक गुरुजनों को व्यास गद्दी ( मंच ) पर देखते हैं ।वे सभी सदा अपनी रीढ़ को सीधा करके ही बैठकर लगातार तीन-चार घंटे तक प्रवचन करते रहते हैं ; क्योंकि रीढ़ को सीधा रखने से ऊर्जा ( शक्ति) कम व्यय होती है।
<<<रीढ़ को सीधा रखने का मनोवैज्ञानिक व नैतिक दृष्टिकोण>>>
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार रीढ़ को सीधा रखने से व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास होता है।बातचीत में स्पष्टता आती है ।हमारा स्वास्थ्य अच्छा होगा तो स्वाभाविक ही है कि हमारे मन में सजगता, उल्लास, आत्मविश्वास, उमंग व आनन्द का संचार होगा ; जब कि झुकी हुई रीढ़ उदासी, आलस्य,निराशा व कमजोरी का प्रतीक है।'रीढ़ का कमजोर होना' एक मुहावरा भी है, जिसका अर्थ है---आधार का कमजोर होना।
नैतिक दृष्टि से भी देखा जाए तो सत्यवादी, अहिंसक,सदाचारी, धर्म रक्षक, व्रतधारी सदा रीढ़ की हड्डी को सीधा व सिर ऊँचा करके ही चलते हैं ।हम अपने देश के राष्ट्रीय कार्यक्रमों में सैनिकों की परेड का शानदार प्रदर्शन देखते हैं, वे सदा अपनी रीढ़ को सीधा ही रखते हैं और आत्मविश्वास से भरे होते हैं ।
सैनिक प्रशिक्षण के दौरान सैनिकों को सबसे पहले सिर व रीढ़ की हड्डी को सीधा रखने का अभ्यास करवाया जाता है।इससे उनमें आत्म विश्वास व सजगता में वृद्धि होती है ; क्योंकि जब वे सजग रहना सीख जाएँगे तो अपने सीनियर अधिकारियों का निर्देश मिलते ही अपने कार्य में तत्पर हो जाएँगे।सैनिकों के लिए हर पल सजग रहना ही पड़ता है।
हम सभी रीढ़ को सीधा रखने के लाभों से अवगत होकर बैठते, चलते, व सोते समय रीढ़ की हड्डी को सीधा रखने का अभ्यास करना चाहिए ।इससे हम अधिक देर तक सक्रिय रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे एवं ऊर्जावान रहेंगे।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
अत्यन्त उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteआपको सादर धन्यवाद
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण ।