●●●●● श्री कृष्ण जन्माष्टमी ●●●●●
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात्रि बारह बजे मथुरा के कारावास में वसुदेव और देवकी के पुत्र श्री कृष्ण का अवतार हुआ। रोहिणी नक्षत्र का समय था। चारों दिशाओं में शुभ संकेत हो रहे थे।सुहानी हवा बहने लगी,पक्षी भी खुश होकर चहचहाने लगे ।बागों में सुन्दर फूल खिल रहे थे।क्योंकि जग के पालनहार पृथ्वी पर अवतरित हुए थे।देवता भी प्रसन्न होने लगे।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी सदियों से भारतवर्ष में मनाई जा रही है।यह अष्टमी कई अर्थों को स्वयं में समेटे हुए लोगों के जीवन में उत्साह का संचार करती है।भगवान का जन्म अष्टमी के दिन हुआ यानी वे आध्यात्मिक और भौतिक संसार, दोनों में संपूर्ण थे।वे दिखने में जितने सुन्दर थे , उनके अन्दर उतना ही सुन्दर ऐश्वर्य था।
शास्त्रानुसार यह मान्यता है कि जब मथुरा का राजा कंस अपनी बहन देवकी को विदा कराके ले जा रहा था तभी आकाश वाणी हुई कि "जिस बहन को तू विदा करने जा रहा है उसी की आठवीं सन्तान तेरा काल बनेगी । कंस यह सुनकर डर गया, इस डर से कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया था और जब भी देवकी की कोई सन्तान जन्म लेती , वह उसको मार देता।लेकिन जब कृष्ण के रूप में देवकी की आठवीं सन्तान हुई तो रात्रि में ही चुपचाप वसुदेव कृष्ण को नन्दगाम जाकर यसोदा के घर छोड़ आए और यसोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई कन्या को ले आए।कंस ने उस कन्या को भी मार दिया और वह अब निश्चिंत हो गया , कि मैंने देवकी की आठवीं सन्तान को भी मार दिया ।लेकिन ईश्वर की महिमा अपरम्पार है। ईश्वर जब अवतार लेते हैं तब अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना के लिए ही लेते हैं ।
आज ब्रह्म यसोदा घर आया, यसोदा के मन आनन्द छाया ।
सब कहें यसोदा धन्य हुई, वृज में अति जयजयकार हुगई
देवों ने पुष्प को बरसाया, यसोदा के मन आनन्द छाया ।
कृष्ण जैसी सुन्दर सन्तान पकर माता यसोदा और नन्द बाबा तो अपार खुशी से झूम उठे। उन्होंने कृष्ण जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया ।ब्राह्मणों को व वृजवासियों को खूब दान दिया ।कृष्ण जन्म की खुशी में पूरे वृजमंडल में बहारें छा गईं ।वे सभी कृष्ण के दर्शन करने नन्द महल आते और दर्शन पाकर खुशी से फूले न समाते ।सारा जगत जानता है कि वृजमंडल में भगवान श्री कृष्ण ने विविध प्रकार की लीलाओं से वृजमंडल को धन्य किया।
कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ दिवस पर पूरे देश में वृत- उपवास किए जाते हैं । भजन संध्या का आयोजन होता है । मन्दिरों में अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ।आधी रात को बारह बजे तक श्रद्धालु मन्दिरों में भगवान के जन्मोत्सव के दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं ।कुछ लोग तो रात्रि के बारह बजे के बाद मन्दिर का प्रसाद ग्रहण करके ही आहार ग्रहण करते हैं ।इस दिन मन्दिरों
को विशेष सजाया जाता है।
आजकल तकनीकी युग है, देश के सभी बड़े कृष्ण मन्दिरों से सीधा प्रसारण भी किया जाता है ।श्रद्धालु रात्रि के बारह बजे भगवान के दर्शन घर से भी कर सकते हैं ।सनातन संस्कृति में इस पर्व पर घरों में भी विशेष पूजा की जाती है।शहर व गाँव के हर मन्दिर को इस दिन सजाया जाता है।रात्रि को सभी मन्दिरों में भारी भीड़ होती है।कुछ श्रद्धालु इस दिन मथुरा जाकर भगवान के दर्शन करते हैं ।सभी भगवान का जन्मदिन बड़ी प्रसन्नता व दिव्य भावों के साथ मनाते हैं ।
<<<<< श्री कृष्ण के विविध रूप >>>>>
भगवान श्री कृष्ण ने इस धरा पर अवतरित होकर अपने विविध रूपों से संसार का परिचय कराया।कृष्ण अपने में सर्वस्व हैं ।सब कुछ कृष्ण में समाहित है।कृष्ण शब्द का सामान्य अर्थ है - अत्यन्त आकर्षक अर्थात जो सबको अपनी ओर आकर्षित करे।कृष्ण का एक अर्थ है - श्याम रंग।कृष्ण एक दर्शन हैं ।कृष्ण द्रष्टा भी हैं और दृश्य भी।कृष्ण प्रेम हैं, प्रेम के रस हैं ।कृष्ण सौन्दर्य हैं और सौन्दर्यानुभूति भी।कृष्ण अपने आप में एक दिव्य एवं पावन अनुभूति हैं, जिस अनुभूति को हर कोई अपने-अपने ढंग से अनुभव करता है।
सांसारिक रूप से कृष्ण देवकी- वसुदेव के आठवें पुत्र हैं, नंद - यसोदा के पोषित पुत्र हैं ।वे बलराम के छोटे भाई, महाराजा उग्रसेन के दौहित्र, रुक्मिणी आदि सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के प्रिय पति हैं । वृषभानु दुलारी राधा के प्रियतम हैं,
गोप- गोपियों, ग्वाल- बालों, अर्जुन एवं द्रोपदी के सखा हैं ।
कृष्ण एक हैं, उनके रूप अनेक हैं ।श्री कृष्ण पूर्ण पुरुष हैं ।उन्होंने माखन भी चुराया।गायों को भी वन में चराया।कृष्ण ने बाँसुरी के मधुर स्वर से वृजवासियों को मोहित किया।वृज गोपियों के साथ रास रचाया ।कृष्ण ने तरह- तरह की बाल- लीलाओं से माता यसोदा और नन्द बाबा को ब्रह्मानंद समान सुख पहँचाया। कृष्ण का व्यक्तित्व रंगारंग मयूरनी जैसा है ,जिसमें अनेक रंग समाहित हैं ।कृष्ण अपने सम्पूर्ण ईश्वरत्व को विसर्जित कर राधा भाव में स्थित होते हैं ।कृष्ण अखंड, अव्यक्त,शाश्वत प्रेम की स्थापना करते हैं ।कृष्ण को शब्द में उतार पाना कैसे संभव हो सकता है , परन्तु उनकी कृपा दृष्टि से सब कुछ संभव है।
कृष्ण का जीवन जितना बाहर दिखता है , उससे कहीं अनंत गुना अदृश्य में व्याप्त है ।वे विराट हैं, अनंत हैं, किसी में न समा पाने वाले हैं ।दृश्य तो उस अदृश्य की एक लीला मात्र है।कृष्ण पूर्ण पुरुष हैं, जहाँ सब कुछ पूर्ण है, दृश्य भी पूर्ण है और अदृश्य भी पूर्ण है।वे अणु में भी व्याप्त हैं और विराट में भी व्याप्त हैं ।कृष्ण एक टेर हैं, प्रार्थना हैं ।जो जिस रूप में उन्हें पुकारता है, उसी रूप में वे प्रकट होकर वे उसको कृतार्थ करते हैं ।
कृष्ण बाँसुरी के दिव्य स्वर में संगीत के मधुर स्वर बनकर झरते हैं तो पांचजन्य के उद्घोष से महाभारत के महायुद्ध का आरंभ करते हैं ।कृष्ण विनाश के भीषण स्वर में समाहित हैं और विकास के स्वर्णिम सूर्य बनकर प्राची से उदीयमान होते हैं ।कृष्ण सगुण भी हैं और निर्गुण भी हैं , अंतर मात्र अनुभव का है।
कृष्ण के साकार स्वरूप को सगुण प्रेम के रूप में चैतन्य महाप्रभु, मीरा तुकाराम कृष्ण ने अपने प्रेम से जगाया।मीरा प्रेम में मतवाली होकर हर पल कृष्ण को पुकारने लगी तो कृष्ण मीरा के सामने संपूर्ण रूप में खड़े थे।चैतन्य कृष्ण कीर्तन करने लगे ।कृष्ण तुकाराम की भक्ति के वश में होकर तुकाराम के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते थे।कृष्ण संपूर्ण प्रेम के प्रतीक हैं ।जो कृष्ण को प्रेम करेगा , कृष्ण उसे मिलेंगे।
कृष्ण एक साथ कई आयामों में कुशलतापूर्वक कार्य करते हैं ।वे माता यसोदा का पयपान करते हुए भी आनंदित रहते हैं और यमुना में कालिया नाग के फन पर नृत्य भी करते हैं ।वे परंपरा के अनुसार नहीं , बल्कि परंपराएँ उनके अनुसार निर्मित होती हैं ।कृष्ण इन्द्र का मान भंग करने के लिए गोवर्धनलीला करते हैं ।कृष्ण कभी मिट्टी खाते हैं , मुँह खोलते हैं तो माता को ब्रह्माण्ड के दर्शन कराते हैं ।कृष्ण कभी ओखल से बँध जाते हैं ।
कृष्ण ने गांधारी के शाप को जिस गौरव व शालीनता से आशीर्वाद रूप में वरण करते हैं उससे स्वयं गांधारी भी करुणाद्र हो उठती है।कृष्ण अपने आँसुओ से मित्र सुदामा के पग पखारते हैं ।दुर्योधन के मिष्ठान्न छोड़कर विदुर के घर साग ग्रहण करने में आनंदित होते हैं ।भरी सभा में जब द्रोपदी का अपमान होता है तो उसका चीर ( वस्त्र) बढ़ाते हैं ।कृष्ण के भाई ने हल चलाया और कृष्ण ने गौ पालन किया --- यह भगवान श्री कृष्ण द्वारा भारतीय समाज को दिया गया भौतिक उन्नति का मूल मंत्र है।
श्री कृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं ।उनका व्यक्तित्व उत्कृष्टता का पर्याय है।कृष्ण के विविध रूप हैं उन्होंने संसार के लोगो को नए ढंग से जीवन जीना सिखाया है।संघर्षों में भी उन्होंने मुस्कराना नहीं छोड़ा ।श्री कृष्ण की पूर्णता और पारंगतता अद्भुत थी।श्री कृष्ण का समूचा जीवन सांसारिकता और आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा का प्रतीक है।
No comments:
Post a Comment