मानव जीवन को सुखी व समृद्ध करने के लिए पर्यावरण में संतुलन अति आवश्यक है।वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण व अन्य सभी प्रदूषणों को दूर करने में पेड़-पौधों की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका होती है।लेकिन आज मानव जीवन की जरूरतें बढ़ रही हैं इसलिए पेड़-पौधों को समाप्त करके भवन निर्माण कार्य अधिक हो रहे हैं ।परिणामस्वरूप पर्यावरण दिन पर दिन अधिक प्रदूषित होता चला जा रहा है।
आज हम चाहकर भी पर्यावरण संतुलित नहीं कर पा रहे हैं या शायद हम उतने जागरुक नहीं हो पा रहे जितना होना चाहिए ।हमारे भविष्य की पीढ़ियों के सुखों के लिए जलवायु संतुलित करना अति आवश्यक है ।
जहाँ चाह वहाँ राह--- यदि व्यक्ति कुछ अच्छा करने की ठान ले तो मार्ग में कितनी भी वाधाएँ हों , उसे आगे बढ़ने से नहीं रोक सकतीं ।ऐसे व्यक्ति कोई न कोई मार्ग अपने लिए तलाश ही लेते हैं ।वर्तमान समय में कुछ लोग पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे रहे हैं ।पेड़- पौधों से अपनी प्रकृति का श्रंगार कर रहे हैं ।
<<<<< पर्यावरण की कैसे सुरक्षा करते हैं,"साइमन उरांव" >>>>>
हर्ष की बात यह है कि हमारे देश के कुछ प्रकृति पुजारियों में एक
हैं-- झारखंड प्रदेश के 85 वर्षीय "साइमन उरांव" । ये पर्यावरण अंसंतुलन के दुष्प्रभावों को समझ रहे हैं ।और अपनी कठिन मेहनत और लगन से पेड़-पौधों का पालन-पोषण कर रहे हैं।
साइमन उरांव आज 85 वर्ष की उम्र होते हुए भी प्रातः साढे चार बजे उठकर अपने आस-पास के पेड़- पौधों और जंगलों की देख- भाल करने के लिए निकल जाते हैं और दोपहर तक घर लौटकर आते हैं ।इस उम्र में भी वे हर साल एक हजार पेड़ लगाने के लक्ष्य को पूरा करते हैं ।इनका मानना है कि पेड़- पौधे हमारे बच्चों की तरह ही हैं और उनकी अच्छी देख-भाल जरूरी है ।उन्हें खाद-पानी देना पड़ता है ।बीमार पड़ने पर उनका इलाज करना पड़ता है ।
तभी वे अच्छी तरह से फलते-फूलते हैं ।
वे अपने पूर्वजों की यह बात सदा याद रखते हैं, कि--- " बिना जरूरत के अगर किसी पेड़ की एक डाली भी काट ली जाए तो वनदेवी नाराज हो जाती हैं ।" वे किसी को बिना जरूरत एक पेड़ भी नहीं काटने देते।लगभग 28 वर्ष की आयु में ही ये खेती के काम में लग गए थे।
साइमन उरांव के पिता जी और चाचा जी , खेतों में धान रोपने के बाद मजदूरी के लिए चले जाते थे।एक बार धान की फसल सूख जाने के कारण गाँव में खाने का भी अकाल पड़ने लगा।लोगों का मानना था कि किसी माफिया ग्रुप के लकड़ी काटे जाने के कारण गाँव में सूखा पड़ रहा है , अतः वन का दोबारा पनपना जरूरी है।
साइमन उरांव ने सभी गाँव वालों को इकट्ठा किया और मन में ठान लिया कि अब किसी को पेड़ नहीं काटने देंगे और अधिक से अधिक पेड़ लगाकर पूरे इलाके को हरा-भरा करेंगे, तभी सूखे का संकट दूर होगा।हालाँकि लकड़ी माफियाओं से टकराना आसान नहीं था, लेकिन वे गाँव वालों की एकता देखकर पीछे हट गए।
इसके बाद से तो साइमन उरांव ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार अपनी लगन और मेहनत से पेड़-पौधे लगाकर प्रकृति की सेवा करके पर्यावरण को संतुलित करने में महाभूमिका निभा रहे हैं ।पेड़- पौधों की सेवा के साथ-साथ उन्होंने पेड़-पौधों की सिंचाई के लिए जगह-जगह पर कुँए और तालाब भी खुदवाए ,
जिससे जलसंकट भी दूर हुआ।इन कुओं और तालाबों का लाभ उनके ब्लाॅक के लगभग पचास गाँवों को मिलता है।
उन्होंने पानी रोकने के लिए कच्चे बाँध बनवाए , लेकिन जब वे टिक न सके तो सरकार से मदद लेकर फिर वहाँ पक्के बाँध बनवाए ।उसके बाद उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर उन बाँधों को कुओं और तालाबों के साथ जोड़ दिया जिसके फल स्वरूप-- पहले जिस खेत में एक साल में एक फसल लग पाती थी , आज वहाँ वे लोग एक साल में तीन फसल उपजा लेते हैं ।
आज देश में तो क्या सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण बहुत प्रदूषित हो चुका है जिसके कारण मानव जीवन में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं ।सबका हल है -- अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाना।
आज हमें जरूरत है " साइमन उरांव " के प्रयासों से प्रेरणा लेने की।सचमुच ऐसे लोगों का जीवन धन्य है जो पेड़-पौधे लगाकर पर्यावरण को शुद्ध व संतुलित कर रहे हैं ।सभी प्रकृति प्रेमियों को सादर नमन। आओ हम सब भी साइमन उरांव की तरह प्रकृति की सेवा करें,
"प्रकृति सेवा ही ईश्वर की आराधना है।"
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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