छठ शब्द का प्रादुर्भाव ' षष्ठी शब्द ' से हुआ है।यह सूर्य उपासना की विशिष्ट व विशेष तिथि है।कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि सूर्य षष्ठी कहलाती है।सूर्य षष्ठी व्रत मुख्यतः रोग मुक्ति, पुत्र प्राप्ति और दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है ।अत्यन्त श्रद्धा और सच्ची भावना से किया गया व्रत लाभदायक व फलदायक होता है।सूर्योपासना से शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शान्ति एवं आध्यात्मिक अनुदान-वरदान प्राप्त होते हैं ।
भारतीय संस्कति में सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना गया है।भगवान के अनेक रूपों में से सूर्य ही एकमात्र ऐसे भगवान हैं, जिनके प्रत्यक्ष दर्शन सम्भव हैं , जिनसे यह सृष्टि प्रकाशित है और पोषण पाती है।सूर्य इस सृष्टि की आत्मा हैं ।ऐसे सूर्य भगवान की आराधना का पर्व है -- यह सूर्य षष्ठी या छठ व्रत।
यह हमारे देश का प्रसिद्ध व्रत है।यह व्रत हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।पहले तो यह पर्व बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में ही मनाया जाता था लेकिन आज यह पर्व देश और विदेश में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है ।बिहार और झारखंड में यह पर्व छठ व्रत के रूप में मनाई जाता है।इस व्रत को सूर्य षष्ठी या स्कंदषष्ठी भी कहते हैं।
छठ पूजा का उल्लेख करते समय जो पहली छवि उभरती है , वह है सूर्य को पवित्र जल-प्रवाह में अर्ध्य देती परवैतिन (व्रती) की छवि।छठ पूजा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो चार दिनों की यात्रा में अनेक अर्थ समेटे हुए है।यह पर्व सामाजिक रूप से बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है ।
प्राचीनकाल से यह व्रत भौतिक सुखों की कामनापूर्ति हेतु मनाया जाता रहा है, लेकिन इस पर्व में व्रती को आध्यात्मिक तप से गुजरना होता है। इस व्रत में अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष सभी बिना किसी भेदभाव के नदी के घाटों पर जाकर पूजा करते हैं, जल में एक साथ खड़े होते हैं ।एक महीने पहले से ही इस पर्व की तैयारियाँ शुरु हो जाती हैं ।
इस व्रत का सबसे कठिन व सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है -- 48 घंटे का उपवास, जिसमें व्रती स्त्री-पुरुष की आस्था,विश्वास व संकल्प की पराकाष्ठा प्रत्यक्ष होती है।इन दिनों में व्रत के नियमोंका कठोरता से पालन किया जाता है।
<<<<<< छठ पर्व के चार पवित्र दिन >>>>>>
यह व्रत कार्तिक की चतुर्थी से शुरू होता है।यह पर्व स्वच्छता को पवित्रता तक ले जाने की प्रक्रिया से गुजरता है।घर, देह और अंतःकरण की शुद्धि के बाद साधकगण सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं और इस दिन को 'नहाय- खाय' के नाम से पुकारते हैं ।
दूसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल पंचमी को साधक दिन भर उपवास रखने के बाद गन्ने के रस से बनी खीर खाकर अपने उपवास को पूर्ण करते हैं इसलिए इसे 'खरना' कहते हैं और इस दिन साधक पवित्र आचरण व ईश्वर-आराधना में बिताते हैं ।
तीसरा दिन अर्थात छठी मइया का दिन ।कार्तिक शुक्ल षष्ठी इस पर्व के उत्कर्ष का दिन होता है। शाम होते ही बाँस की टोकरी में विविध पकवान , फल, फूल और पूजन सामग्री सूप में सजाकर व्रत करने वालों के साथ परिवार के सभी लोग पवित्र जलस्रोतों पर जाते हैं । व्रत करने वाले जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देते हैं । ' त्वदीयं वस्तु गोविंद, तुभ्यमेव समर्पये ' की भावना से जो भी वस्तुएँ सूर्य की शक्ति से उपजती हैं जैसे-- फल-फूल, सब्जियाँ, गेहूँ, चावल ; उन्हें अर्ध्य रूप में भगवान सूर्य को समर्पित किया जाता है।
चौथे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उदित सूर्य को अर्ध्य देते हैं और इसके बाद कच्चे दूध को पीकर व्रत पूर्ण करते हैं ।इसके साथ यह उत्सव विदा लेता है, लेकिन लोक-जीवन में यह संदेश देता है कि दिव्यता की ओर अग्रसर होना ही मानव जीवन का उद्देश्य है।
<<<<<< छठ पर्व के लोकगीतों का महत्व >>>>>>
भारत में मनाए जाने वाले तरह-तरह के व्रत उत्सवों में यह छठ पर्व अपने लोक-गीतों के कारण भी विलक्षण कहलाता है।इन लोक गीतों में छठ मैया से संवाद का भाव है।इन गीतों में भगवान के साथ व्रती व्यक्ति का ऐसा वार्तालाप होता है जैसे वे उसकी प्रार्थना को पूर्ण करने के लिए ही उपस्थित हुए हों।
छठ पर्व के लोकगीतों में विविध प्रकार की कल्पनाएँ की जाती हैं व तरह- तरह से भगवान से अपना नाता इन लोकगीतों के माध्यम से जोड़ा जाता है और उनसे ऐसे बाल हठ किया जाता है , जैसे भगवान हमारे घर के ही एक सदस्य हों तथा बाद में उनसे प्रार्थना की जाती है कि कोई भूल हुई हो थो माफ करना ।
<<<<<< वैज्ञानिक स्तर पर छठी मइया की व्याख्या >>>>>>
वैज्ञानिक स्तर पर भी छठी मइया की व्याख्या की गई है ।ऋग्वेद कहता है कि ' सूर्य जगत की आत्मा है ' ।ऋषियों ने भी न केवल सूर्य की उपासना की , वरन लोक जीवन ने भी सूर्य के महत्व को पहचाना और छठ पूजा जैसे पर्व की शुरुआत हुई ।जगत के सभी जड़ व चेतन वर्ग में सूर्य की रश्मियों से ही जीवन संचार होता है ।सूर्य की रश्मियों में छह अप्रतिम शक्तियाँ विद्यमान हैं ।ये हैं---
1 दहनी = जलाने वाली
2 पचनी = पाचन क्रिया करने वाली
3 धूम्रा = लोहित करने वाली
4 कर्षिणी = आकर्षण करने वाली
5 वर्षिणी = वर्षा करने वाली
6 रसा = रस प्रदान करने वाली
भगवान सूर्य की ये छह शक्तियाँ ही छठी मइया कहलाती हैं ।
<<<<< छठ पर्व से जुड़े पौराणिक आख्यान >>>>>>
भारतीय शास्त्रों में छठी मइया के सन्दर्भ में अनेकों आख्यान- उपाख्यान मिलते हैं ।शिव पुराण की रूद्रसंहिता के अनुसार,भगवान शिव के तेज से छह मुख वाले बालक का
जन्म हुआ, जिसका पालन-पोषण छह कृत्तिकाओं ( तपस्विनी नारी) ने किया, जिससे वह बालक कार्तिकेय कहलाया।कृत्तिकाएँ कार्तिकेय की माता कहलाईं।ये छह कृत्तिकाएँ ही षष्ठी माता
अथवा छठी मइया कहलाती हैं ।
देवी भागवत पुराण के अनुसार, स्वायंभुव मनु के संतानहीन पुत्र प्रियव्रत को जब मणियुक्त विमान से आती हुई एक देवी के दर्शन हए , तो देवी ने बतलाया कि वह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं और स्वामी कार्तिकेय की पत्नी हैं ।मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण वे षष्ठी देवी अर्थात छठी मइया कहलाईं।
एक कथा महाभारत के वनपर्व में मिलती है।कपट- द्यूत में हारकर जब पाँचों पांडव वनवास को गए , तो अन्न की कमी से बचने के लिए युधिष्ठिर को धौम्य ऋषि ने सूर्य के 108 नामों से उनकी उपासना करने का परामर्श दिया।इसके बाद सूर्य भगवान ने प्रकट होकर उन्हें एक ताम्रपात्र दिया और कहा कि जब तक महारानी द्रोपदी इस पात्र में भोजन नहीं करेंगी , तब तक इसमें भोज्य पदार्थों की कमी नहीं होगी।इसके पश्चात महारानी द्रोपदी षष्ठी तिथि के दिन उपासना करने लगीं ।फलस्वरूप पांडवों को उनका खोया राज्य वापस मिल गया ।
सूर्य षष्ठी अर्थात छठ पूजा एक ऐसा पर्व है , जो उपासना को उत्सव बना देता है जो निज उत्थान को लोक-मंगल के स्वर में गाता है तथा जो प्रकृति और पुरुष के योग में आत्मा और परमात्मा को एकाकार करने की सामर्थ्य धारण करता है।इस पर्व का आधार " सर्वमंगलकारिणी सर्वमांगल्यधारिणी " जन-जन के हृदय में विराजने वाली छठी मइया हैं ।इस तरह सूर्य षष्ठी का यह व्रत अद्भुत व अनुपम है।निश्चित रूप से इस पर्व का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है, जो व्रती के जीवन में सुख- समृद्धि- स्वास्थ्य प्रदान करता है।
" छठी मइया की जय , छठी मइया की जय "
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
Very nice
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