head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): अन्तर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस-- बच्चों को खुश रहना कैसे सिखाएँ

Thursday, February 13, 2020

अन्तर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस-- बच्चों को खुश रहना कैसे सिखाएँ

    
          <<<<<<< अन्तर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस >>>>>>>        20 मार्च 2013 से अन्तर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाने की परंपरा शुरु हुई है। प्रसन्नता को लेकर दुनिया भर में अनेक शोधकार्य चल रहे हैं ।इन्हीं में से एक शोध के अनुसार-- प्रसन्नता में बाहरी कारकों का सिर्फ 10 प्रतिशत योगदान रहता है ; जबकि 90 प्रतिशत प्रसन्नता स्वयं व्यक्ति पर निर्भर रहती है।शोध में यह बात भी सामने आई है कि इन खुशियों का उसकी जमीन जायदाद या उपलब्ध संसाधनों से कोई लेना-देना नहीं होता ।

प्रसन्नता के पल जीवन में हर पल मौजूद रहते हैं, बस जरूरत है उन तक पहुँचने की।जिसने प्रसन्नता को अपने जीवन में पाना सीख लिया , उसके लिए यह जीवन अनेक सुखद संभावनाओं का द्वार बन जाता है ।जीवन उसके लिए स्वर्ग समान हो जाता है।कहते हैं कि प्रसन्नता का कोई तय समीकरण नहीं होता ।व्यक्ति अपनी परिस्थितियों को किस तरह लेता है , उन्हें किस तरह समझता है --  ये तथ्य ही खुश रहने की राह दिखाते हैं ।

   यह सत्य है कि जीवन में सदा सब कुछ हमारी इच्छा के अनुसार नहीं हो सकता, इसके बावजूद भी ऐसा बहुत कुछ है जिससे हम अपने मन को समझाकर खुशियाँ हासिल कर सकते हैं ।यदि ऐसी छोटी-छोटी बातें बचपन से ही समझा दी जाएँ तो खुश रहने की आदत बन सकती है।

<<<<<<< बच्चों को खुश रहना कैसे सिखाएँ >>>>>>>>

खुशियों की पौध उगानी है तो इसके लिए बच्चों का मन बेहतर मनोभूमि है, क्योंकि उनकी मनोभूमि अभी उर्वर है ।यदि माता-पिता बच्चों को खुशमिजाजी की विरासत दे सकें तो बच्चों के लिए यह सर्वश्रेष्ठ उपहार होगा। हर अभिभावक की इच्छा यही होती है कि उनके बच्चे सदा हँसते-मुस्कराते रहें ।इसके लिए उनकी परवरिश ही इस तरीके से की जाए , जिससे वे हर परिस्थिति में खुश रहना सीख जाएँ ।उन्हें यह मंत्र शुरु से ही सिखाया जाए कि--
" मन के हारे हार है मन के जीते जीत "। उन्हें घर-परिवार में खुशनुमा माहौल मिले ताकि वे बड़े होकर स्वयं भी खुश रहें और दूसरों को भी खुशियाँ प्रदान करें ।

बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं, उनका मन कोमल होता है ।अतः उनके साथ जैसा व्यवहार किया जाता है , वह उनके मन को गहराई से स्पर्श करता है।अच्छा व्यवहार उनके व्यक्तित्व को निखारता है।इस तरह घर परिवार में बच्चों का व्यक्तित्व एक साँचे में ढलता है , जो उनके सम्पूर्ण जीवन की आधारशिला बनता है।

इसलिए यदि अभिभावक अपने बच्चों को खुशमिज़ाज बनाना चाहते हैं तो वे स्वयं खुश रहें और बच्चों को खुश रहने का तरीका सिखाने के लिए कुछ और बातों पर भी ध्यान दें--

विशेषज्ञों का  मानना है कि ज्यादातर बच्चे अपने बडों का अनुसरण करते हैं ।परिवार में वे जो कुछ भी देखते हैं, जीते हैं, उसी को वे जीवनभर अपने व्यवहार में दोहराते हैं ।बच्चों को इस बात के लिए तैयार करना भी जरूरी है कि जीवन में सब कुछ हमारी मर्जी से नहीं होता।इसलिए हर परिस्थिति को स्वीकारना सीखें ।कभी जीत भी मिलती है तो कभो हार भी स्वीकारनी पड़ती है ।इसलिए उन्हें सकारात्मकता का महत्व समझाएँ।

विशेषज्ञों का यह मानना  है कि खुशी की बड़ी वजह यह है कि व्यक्ति जो है वही बना रहे दूसरों के जैसा बनने की कोशिश न करे।
इसलिए बच्चों को यह समझाना जरूरी है कि उन्हें दूसरों की देखादेखी खुद को नहीं बदलना है, जो है उसे स्वीकार करना है और हर क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना है ।और प्रसन्नता से हर कार्य करना है।

            बच्चों की प्रसन्नता के लिए अभिभावकों को बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना है।इसके साथ ही बच्चों को जीवन जीने के कुछ व्यावहारिक सूत्र भी सिखाएँ जैसे-- स्वयं सही निर्णय लेना, अपने छोटे-छोटे काम स्वयं करना , अपनी गलतियों से सीखना, सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना , व्यस्त रहना । जिस बच्चे की जिस कला या किसी अन्य क्षेत्र में रुचि हो तो उसको उस दिशा में आगे बढ़ने को प्रेरित करना चाहिए ।

बच्चों को बताएँ कि अपने जीवन की खुशियाँ उन्हें खुद तलाशनी हैं और अपने जीवन में हँसी-खुशी के विविध रंग बिखेरने हैं कि यदि जीवन में कोई दुख भी आए तो उन खुशियों में विलीन हो जाएँ ।आज के समय में थोड़ा योगाभ्यास भी बचपन से ही जरूरी है।भविष्य की अत्यधिक चिंता भी खुशियाँ छीन लेती है अतः बच्चों को भी वर्तमान में जीना सिखाएँ ।

कभी भी बच्चों की पढ़ाई या जीवनशैली की अन्य बच्चों से तुलना न करें ; क्योंकि ऐसा करने से बच्चों में कभी-कभी हीनभावना भी आ जाती है, वे उदास रहने लगते हैं और चिड़चिड़े स्वभाव के भी हो जाते हैं ।यदि बच्चे अधिक देर तक गुमसुम रहें तो उनसे प्यार से वजह जानने की कोशिश करें और उनकी उदासी दूर करके उनके साथ समय बिताएँ।

कई बार देखने में आता है कि बच्चों के मन में कम उम्र में ही बुराई, ईर्ष्या, गुस्सा और बदला लेने की भावना बैठ जाती है , अक्सर ऐसे व्यवहार का कारण उनमें किसी कारण नकारात्मकता
का होना दर्शाता है।अभिभावकों को चाहिए कि प्यार के साथ उन्हें समझाकर नकारात्मता दूर करने का प्रयास करें ताकि वे खुश रह सकें ।

     अभिभावक बच्चों को  बताएँ कि वे जीवन में प्रगति करने के लिए ,आगे बढ़ने के लिए अपने मन की सुनें, अपने अंदर से आने वाली आवाज़ को सुनकर उस पर चलें , खुद को कभी किसी से कम न समझें ।बच्चों को यह भी सिखाएँ कि वे जरूरतमन्दों की मदद करें, बुजुर्गों की सेवा व सम्मान करें ।दूसरों में अच्छाइयाँ देखें और प्रशंसा करें ।जब बच्चों में ऐसे गुण विकसित होने लगेंगे तो वे प्रसन्नता व उत्साह से भरपूर दिखेंगे।

मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि असल में खुशी हमारी सुविधाओं और वस्तुओं में नहीं होती, बल्कि हमारी आदतों में होती है।इसलिए यदि हम अपने  बच्चों को अच्छी आदतें सिखाएँगे तो वे खुद भी प्रसन्न रहेंगे और अपने जीवन को सुन्दर बनाएँगे।

संत जन भी यही कहते हैं कि जो अच्छी बातें  हम अपने  बच्चों को सिखाएँ, तो पहले खुद भी उन बातों पर अमल करें तो हमारा और हमारे बच्चों का जीवन स्वर्ग बन जाएगा।

 सादर अभिवादन व धन्यवाद ।



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