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Tuesday, February 4, 2020

संगीत- भारतीय संस्कृति और संगीत, मधुर संगीत की सामर्थ्य एवं संगीत चिकित्सा

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संगीत का मानव जीवन को सरस बनाने में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है।हम सभी के जीवन में संगीत किसी न किसी रूप में विद्यमान है ।संगीत की ध्वनि सभी के मन को तरंगित करती है।एक नन्हा बच्चा भी मधुर संगीत को सुनकर आनंदित होकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।कुछ लोग मनोरंजन के लिए संगीत सुनते हैं कुछ स्वयं को तनावमुक्त करने के लिए तो कुछ लोग अपनी आध्यात्मिक प्रगति के लिए संगीत का सहारा लेते हैं ।

मानव की कोमल भावनाओं को झंकृत, तरंगित करने में और उसमें देवत्व का उदय करने में गायन- वादन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।प्रकृति के विभिन्न जीवों के स्वर में, बहती हुई नदियों के कल-कल में, बहने वाली हवाओं की लहरों में प्राकृतिक संगीत ही तो है। हमरी प्रकृति में सब ओर संगीत ही संगीत है।जिसका हम आनन्द लेते हैं ।

प्रोफेसर जी.एन.रामचन्द्रन के अनुसार विज्ञान, आध्यात्म, साहित्य और संगीत एक ही परम तत्व के विभिन्न नाम हैं ।संगीत पूजा है, संगीत आराधना है,संगीत ईश्वर से मिलने का साधन है एवं संगीत आत्मसाक्षात्कार का साधन है। संगीत के स्वर को नाद कहते हैं ।कोई भी उत्सव हो संगीत के बिना अधूरा है।

गायन नर्तन देखने में सुख है, पर जो सुख स्वयं गायन एवं नर्तन से है- उस सुख और आनन्द का क्या कहना ; क्योंकि स्वयं के भीतर हो रहे गायन की अनुभूति ही कुछ और है। संगीत जब आत्मा से उठता है , उसमें अद्भुत आकर्षण होता है और यह आकर्षण किसी भी जीव की आत्मा को आकर्षित करने में समर्थ है।संगीत के सात सुरों में अनोखा जादू है।सात स्वरों में ही ब्रह्माण्ड का समूचा संगीत समाया हुआ है।
"सुर के बिना अधूरा जीवन, सात सुरों की है अगणित धुन "

संगीत की देवी माता सरस्वती है।किसी उत्कृष्ट कलाकार की प्रस्तुति से प्रभावित होकर मन अनायास ही बोल उठता है, कि इस पर माता सरस्वती की महान कृपा है ।आध्यात्मिक साधक भक्ति भावना से ईश्वर के साथ एकाकार की अनुभूति करते हुए माँ शारदे से विनती करता है---
सुर को ईश्वर से मिला दे, शारदे माँ शारदे 
प्रेम की    वीणा   बजादे, शारदे माँ शारदे 

<<<<< भारतीय संस्कृति और संगीत >>>>>

भारतीय संस्कृति के समानांतर, संगीत विधा भी अति प्राचीन है।
संगीत के जनक भगवान शिव माने जाते हैं ।भगवान शिव का डमरू संगीत का , जाग्रति का एवं प्रसन्नता का प्रतीक है ।आर्ष वांग्मय में सर्वप्रथम नाद रूप में इसका उल्लेख हुआ है नाद का अर्थ है-- ध्वनि या स्वर।सामवेद तो संगीत का सबसे प्राचीन और प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है।

 भारतीय संगीत की आत्मा-- राग रागनियों के निर्माण के पीछे व्यक्ति में अन्तर्निहित सूक्ष्म शक्तियों, भावनाओं और विशिष्टताओं एवं ।हृदय के प्रत्येक तार को झंकृत करने का सिद्धांत हुआ करता था।संगीत में अपरिमित शक्ति सामर्थ्य है।मीरा ने , चैतन्य महाप्रभु ने , नरसी मेहता व अन्य भक्तों ने संगीत के बल पर ही भगवान से एकाकार की अनुभूति की।

 सामूहिक गान व संकीर्तन द्वारा वातावरण में सौम्यता , सात्विकता और शान्ति उत्पन्न होने को प्रमाणित किया जाता है।अक्सर हम देखते हैं कि हमारे देश  के आध्यात्मिक व धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजनों में जब भक्त जन आदरणीय संत जनों के साथ संकीर्तन की मधुर ध्वनि में डूब जाते हैं तो वातावरण में अद्भुत शान्ति छा जाती है ।

 स्वर तरंगें संगीत का रूप लेकर जीवनदायनी सामर्थ्य उत्पन्न करती हैं ।हमारी संस्कृति में मंत्र जप का अत्यन्त महत्व है  और जब हम इन मन्त्रों का सस्वर अर्थात संगीत के साथ जाप करते हैं तो ये और भी प्रभावशाली हो जाते हैं ।संगीत ने तो इस पृथ्वी को ही स्वर्ग बना दिया है।संगीत से जीवनीशक्ति , संकल्प शक्ति और आत्मशक्ति में अप्रत्याशित वृद्धि होती है ।
 
हमारे भारत के तीर्थ स्थलों में प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जागरण से लेकर रात्रि तक संगीत की सुमधुर लहरियाँ सदैव गुंजायमान रहती हैं ।तीर्थ स्थानों में  श्रीरामायण पाठ, श्री मद्भागवत महापुराण के पाठ, भजन , आरतियाँ आदि चलते ही रहते हैं ।सभी संगीत प्रधान हैं ।
 विदेशी लेखकों, कवियों, एवं संगीतकारों सभी ने भारतीय संगीत की प्रशंसा की है।

संगीत हमारे जीवन , धर्म, संस्कृति और वैभव की अमूल्य विरासत है।आधुनिकता के प्रभाव में भारतीय संगीत का मौलिक स्वरूप एवं लक्ष्य अनेक भ्रान्तियों से ग्रस्त दिखाई देता है।आज के समय में संगीत का भी व्यापक व्यापार शुरु हो गया है।शब्द बिकते हैं, धुनें बिकती हैं और आवाज़ भी बिकती है।ईश्वर प्रदत्त स्वर को भी मनुष्यों ने धन कमाने का साधन बना लिया है।
 
भगवान श्री कृष्ण का बाँसुरी बजाना , गोपियों के संग नाचना-- यह सब संगीत का महत्व ही तो प्रतिपादित करता है।हमारे देश के अनेक संगीत कलाकार विदेशों में जाकर भी अपनी सुन्दर संगीत कलाओं का प्रदर्शन करके भारतीय संस्कृति का मान बढ़ाते हैं ।

भारतीय मनीषियों द्वारा प्रतिपादित यह तथ्य पूर्णतया सत्य ही है कि भारतीय संगीत में प्राणिजगत को प्रभावित करने की असीमित क्षमता विद्यमान है।भारतीय संगीत में गूढ़ रहस्य समाए हुए हैं ।आज भारतीय संगीत के माध्यम से विश्व संस्कृति को मूल्यों का शिक्षण और जीवन जीने की नई विधा का पोषण किया जा रहा है।

भारतीय संस्कृति के विश्व व्यापी प्रसार में संगीत की महती भूमिका है।भारतीय सांस्कृतिक चेतना का उत्थान संगीत द्वारा किया जा सकता है।

         <<<<< मधुर संगीत की सामर्थ्य >>>>>

मधुर संगीत की लहरें  का शरीर, मन व भाव संस्थान पर अच्छा असर डालती हैं ।शोधकर्ताओं की मान्यता में नादयोग ( स्वर योग)
विश्रान्ति का एक प्रमुख घटक साबित होता है।आध्यात्मिक साधनाओं में ॐकार साधना या सस्वर मंत्र जाप इस तथ्य के उदाहरण हैं ।जब हम ॐ का श्रद्धा भावना से दीर्घ जप या किसी  अन्य  मंत्र का सस्वर जप करते हैं तब परम शान्ति का अनुभव करते हैं ।
 
मधुर संगीत का समूचे वातावरण पर असर  पड़ता है ।संगीत से वृक्ष- वनस्पतियों, फसलों और पशुओं पर पड़ने वाले प्रभाव को अब सर्वत्र वैज्ञानिक मान्यता मिल चुकी है।नाद (स्वर) की लहरियाँ मनुष्य के मस्तिष्क हृदय एवं स्नायु तंत्र पर आश्चर्य जनक प्रभाव डालती हैं ।यह प्रसुप्त निष्क्रिय माँस-पेशियों को जाग्रत व सक्रिय करती हैं ।शान्ति का वातावरण प्रदान करती है।

वैज्ञानिक वी.वी. गार्डनर ने अपनी अनुसंधानपूर्ण कृति " म्यूज़िक थेरेपी " में लिखा है कि संगीत का प्रभाव नाड़ी तन्त्र , श्वास- प्रश्वास, रक्तदाब एवं अंतःस्रावी ग्रन्थियों पर पड़ता है।आज हमारे देश की हजारों शब्द-रचनाओं को मनीषियों व संगीतज्ञों द्वारा विभिन्न स्वरों से सजाया गया है। दिनों दिन और भी नई- नई धुनें बनती रहती हैं ।सुनियोजित संगीत का प्रभाव गायक के शरीर व मन पर पड़ता है ।सुनने वाले भी भावतरंगित होकर हर्षोल्लास का अनुभव करते हैं ।

  संगीत का मतलब ही है कि, ऐसी धुन या लहर , जो कर्णप्रिय हो, लय में हो , स्वरयुक्त व मधुर हो और मन को भाए ।संगीत का स्वास्थ्य पर प्रभाव भी बहुचर्चित है।संगीत शास्त्र में शरीर- मन की विभिन्न अवस्थाओं को प्रभावित करने के लिए विभिन्न राग-रागनियों का निर्धारण है।प्रयोगों में पाया गया कि  द्रुतिगति व तीव्र स्वर से बजती धुनों के प्रयोग से निम्न रक्तचाप वाले रोगियों तथा हल्के स्वर में बजती धुनों से उक्त रक्तचाप वाले वाले रोगियों को लाभ होता है।

संगीत भावनात्मक आवेग को भी नियंत्रित रखता है।संगीत से मानसिक रोगों को भी ठीक किया जा सकता है।संगीत के माध्यम से थाॅइराइड ग्रन्थि से होने वाले थाॅयरोक्सिन नाम हार्मोन के स्राव को भी नियंत्रित किया जा सकता है ।संगीत सुनते समय मन में स्फूर्ति आती है तथा रक्त में उपस्थित कार्टिसोल हाॅर्मोन का स्तर घट जाता है, जिससे तनाव में कमी आती है तथा मन की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
 
तानसेन ने दीपक राग गाकर दीपक जलने का चमत्कार दिखाया और मेघमल्हार गाकर वर्षा होने का चमत्कार दिखाया।वर्तमान संगीत इस प्रकार के चमत्कार नहीं दिखा सकता ।

<<<<< संगीत चिकित्सा >>>>>

संगीत द्वारा चिकित्सा की बात उतनी ही पुरानी है, जितना कि संगीत स्वयं है।सामवेद में रोगों के निवारण के लिए राग-गायन का विधान मिलता है।अश्विनी कुमार के भैषज तंत्र में प्रत्येक रोग के लिए चार प्रकार के भैषज कहे गए हैं -- पवनौकस, जलौकस, वनौकस एवं शाब्दिक ।यहाँ शाब्दिक भैषज का तात्पर्य है-- मंत्रोच्चारण एवं लयबद्ध गायन।

कुर्णक प्रभा एवं मैंद ऋषि द्वारा रचित -- शब्द कुतूहल में रोगी के शब्द से रोग निदान , शाब्दिक औषधि , वीणा तंत्री, पणव, शंख, भेरी, मृदंग, मंजीर , वंशी आदि वाद्ययंत्रों को भैषज से ही बनाने और उनको सुनाकर रोगापहरण का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है ।प्रत्येक रोग के लिए पृथक-पृथक वाद्यों के शब्द और कौन किसके लिए उपयुक्त है, आदि का उल्लेख किया गया है ।

अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार शास्त्रों में वर्णित संगीत की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि अब इसे विज्ञान भी स्वीकार कर रहा है।

                            वर्तमान समय में जाने-माने चिकित्सक भी संगीत की महत्ता को स्वीकारने लगे हैं , 2014 में संगीत उपचार पद्धति का पहला शब्दकोष आया है, जिसे प्रसिद्ध संगीत शास्त्री टी.वी.साईराम ने तैयार किया है।संगीत उपचार पद्धति पर वर्षों से काम कर रहे डाॅक्टर साईराम का कहना है कि संगीत का मन पर असाधारण प्रभाव पड़ता है।अगर सही निदान कर उपयुक्त स्वर लहरियों का व्यक्तियों के लिए चयन कर उन्हें सही तरीके से सुनाया जाए तो उन्हें  सभी प्रकार के मनोरोगों से मुक्ति दिलाई जा सकती है।

  प्राचीन काल में भिन्न-भिन्न  रोगों के लिए भिन्न-भिन्न राग- रागनियों का निर्धारण था।जैसे-- मानसिक अस्थिरता एवं क्रोध शमन के लिए ' राग मल्हार', श्वास सम्बन्धी समस्या, खाँसी, दमा, तपेदिक आदि में राग 'भैरव' , रक्त अशुद्धि की स्थिति में राग 'आसावरी' तथा मेदा', यकृत- प्लीहा वृद्धि में राग हिंडोल', का प्रावधान था।संगीत की स्वर लहरियाँ व्यक्ति को तनाव मुक्त करती हैं ।राग-रागनियाँ विविध मनोदशाओं के द्योतक होते हैं और इसी कारण वे अपनी भावदशा के अनुरूप व्यक्ति में रसानुभूति का संचार कराने में समर्थ होते हैं ।

         संगीत में शरीर, मन और आत्मा को बलवान बनाने एवं निरोगता प्रदान करने वाले तत्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं ।इसी कारण चिकित्सा जगत में इसका मान्यता मिल रही है।रूस का क्रीमिया स्वास्थ्य केंद्र भी संगीत उपचार के लिए प्रसिद्ध है ।यहाँ पर मानसिक रोगों का सफलता पूर्वक संगीतोपचार किया जाता है।इसके प्रभाव से हिंसक प्रवृत्तियों का भी शमन किया जाता है ।

                         पिट्सबर्ग अमेरिका में आर फोर आर अर्थात, रिकार्डिंग फाॅर रिलेक्सेशन , रिफ्लेक्शन , रिस्पाॅन्स एंड रिकवरी नामक संस्था है , जिसमें संगीत के माध्यम से रोगियों का उपचार किया जाता है ।इसके संस्थापक हैं--- सुप्रसिद्ध वायलिन वादक लारेन्स और उनकी पत्नी ग्रेश्चेन। इस संस्था ने अब तक यूरोप अमेरिका में फैली अपनी शाखाओं द्वारा अनेक रोगियों का सफल उपचार किया है।विश्वभर में फैली संगीत चिकित्सा की इन शाखाओं का संचालन न्यूयॉर्क में बने एक आश्रम से होता है।यह संगीत चिकित्सा का शोध केंद्र भी है।

वस्तुतः संगीत में असाधारण जीवनदायी सत्ता विद्यमान है ।यदि उसका सम्यक उपयोग किया जा सके तो मानव चेतना  प्रगति- पथ पर अग्रसर हो सकती है।
  
सत्य ही है ---  मधुर  संगीत में जादुई सामर्थ्य है ।जो हमारे मन को प्रसन्न रखती है ।आजकल इसका चिकत्सा जगत में भी प्रयोग हो रहा है।हम सभी के जीवन में सदा संगीत की स्वर लहरियाँ गूँजती रहें ।हम सदा प्रसन्न होकर गाते रहें, गुनगुनाते रहें ।
   " संगीत जिसे सारे जग ने, अपने सुख की भाषा मानी "

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
 





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