यज्ञ वैदिक संस्कृति का मुख्य प्रतीक है ।भारतीय संस्कृति में जितना महत्व यज्ञ को दिया गया है, उतना शायद किसी और क्रियाकलाप का नहीं ।
यज्ञ का वेदोक्त आयोजन, शक्तिशाली मंत्रों का विधिवत् उच्चारण, विधिपूर्वक बनाए हुए कुंड, शास्त्रोक्त समिधाएँ तथा सामग्रियाँ जब विधानपूर्वक हवन की जातीं हैं तो उनका दिव्य प्रभाव आकाश- मंडल में फैल जाता है ।उस प्रभाव के फलस्वरूप प्रजा के अंतःकरण में प्रेम, एकता, सहयोग, सद्भाव, उदारता, ईमानदारी, संयम, सदाचार, आस्तिकता जैसे सद्गुणों का विकास होने लगता है ।इस तरह व्यक्ति एवं समूह पर यज्ञ के अद्भुत सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं ।
यज्ञ से जुड़ा केंद्रीय तत्व -- अग्नि, स्वयं अजस्र प्रेरणाओं से भरा हुआ है, जिसके महत्व को समझाते हुए ऋग्वेद में यज्ञाग्नि को पुरोहित की संज्ञा दी गई है ।ऋग्वेद की शिक्षाओं पर चलकर लोक-परलोक दोनों सुधारे जा सकते हैं--
●●● यज्ञाग्नि में निहित शिक्षाएँ●●●
● 1-- अग्नि में जो कुछ भी पदार्थ ( यज्ञ सामग्री, घृत आदि ) हवन कुंड में समर्पित किए जाते हैं, यज्ञाग्नि उन्हें संग्रहीत नहीं रखती , बल्कि सर्वसाधारण के लिए वायुमंडल में बिखेर देती है ।इसी तरह हमारी शिक्षा,समृद्धि, प्रतिभा, प्रभाव आदि का न्यूनतम उपयोग करते हुए शेष का अधिकाधिक उपयोग जनकल्याण के लिए होना चाहिए ।
● 2 -- जो भी वस्तु अग्नि के संपर्क में आती है , उसे वह दुत्कारती नहीं, बल्कि स्वयं में आत्मसात् करके अपने जैसा बना लेती है ।इससे यह प्रेरणा मिलती है कि हमारे संपर्क में जो पिछड़े, छोटे या पीड़ित व्यक्ति आएँ, उन्हें आत्मसात् कर अपने जैसा बनाने की कोशिश हममें से हरेक को करनी चाहिए ।
● 3 --- अग्नि की लौ पर कितना ही दबाव पड़े, लेकिन वह दबती नहीं, बल्कि ऊपर को ही उठी रहती है ।इसी तरह हमारे सामने कितने भी भय, प्रलोभन, संकल्प एवं जिजीविषा को दबने नहीं देना चाहिए, बल्कि अग्निशिखा की भाँति ऊँचा उठाए रखना चाहिए ।
● 4 --- अग्नि कभी भी अपनी उष्णता एवं प्रकाश की विशेषताओं को नहीं छोड़ती ।उसी प्रकार हमें सदा मेहनत व कर्तव्यनिष्ठता के साथ जीवन जीना चाहिए और स्वयं को सदा सक्रिय रखना चाहिए व धर्म की राह पर चलना चाहिए ।
● 5 -- यज्ञाग्नि का अति विशिष्ट गुण यह है कि वह अपने में आहुत सामग्री को वायुरूप बनाकर समस्त जड़-चेतन प्राणियों को बिना भेदभाव किए गुप्तदान के रूप में बिखेर देती है, जो स्वयं में एक विलक्षण शिक्षा है - इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि हमारा जीवन भी समस्त प्राणियों के लिए एक वरदानस्वरूप होना चाहिए ।अपने संसाधन,उपलब्धियों व ज्ञान को हमें मुक्तहस्त से लोक-कल्याण में लगाना चाहिए ।
इस तरह यज्ञ स्वयं में प्रचंड प्रेरणाओं से भरा एक आध्यात्मिक प्रयोग है , जिसे यदि उचित विधि से संपन्न किया जाए तो इसके कर्मकांड द्वारा देव आवाहन , मंत्र प्रयोग, संकल्प एवं सद्भावनाओं की सामूहिक शक्ति से एक ऐसी सशक्त ऊर्जा पैदा की जाती है, जिसके द्वारा अंतःवृत्तियों को गलाकर परिष्कार किया जाता है ।
यज्ञाग्नि से प्रेरणाएँ ग्रहण करके मनुष्य अपने प्रसुप्त देवत्व का जागरण कर सकता है ।यज्ञाग्नि की प्रेरणा से मनुष्य अपने व्यक्तित्व का रूपांतरण करके समाज निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।
इस तरह यज्ञ एक समग्र जीवन दर्शन है, जो सशक्त प्रेरणा-प्रवाह लिए हुए है ।यज्ञ को जीवन का अभिन्न अंग बनाते हुए हम अपने व्यक्तित्व के रूपांतरण के गहन प्रयोग को संपन्न कर सकते हैं तथा दूसरों को भी प्रेरित कर सकते हैं । यज्ञाग्नि की शिक्षाएँ ग्रहण करके हम परिवार, समाज, प्रकृति एवं सृष्टि के हित साधन का माध्यम बन सकते हैं ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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