head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): धैर्य का महत्व , आध्यात्मिक जीवन में धैर्य का महत्व

Sunday, November 22, 2020

धैर्य का महत्व , आध्यात्मिक जीवन में धैर्य का महत्व

                 ●●● धैर्य का महत्व ●●●
धैर्य जीवन का एक ऐसा गुण है , जिसको धारण कर हम बाहरी जीवन में परिपूर्ण सफलता को हासिल कर सकते हैं और साथ ही आंतरिक जीवन में भी शांति के अधिकारी बन सकते हैं ।वर्तमान में धैर्य का महत्व और बढ़ गया है ।जिसमें धैर्य है , समझो उसने सब कुछ अपने पक्ष में करने की कला जान ली ।धैर्य व्यक्ति को सहिष्णु बनाता है ।ऐसे व्यक्ति के जीवन में अभावों, कष्टों, विषमताओं के बीच उसके अंतस् में जल रहा धैर्य का दीपक उसे रोशनी देता है ।

             भगवान श्री राम ने बड़े धैर्य के साथ चौदह वर्ष वन में बिताए ।रावण द्वारा हरण किए जाने पर माता सीता ने अशोक वाटिका में प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा में समय बिताया।पांडवों ने अपना तेरह वर्ष के वनवास का समय धैर्य के  साथ  बिताया। इसी तरह हमारे इतिहास व शास्त्रों में अनेक धैर्यवान नायकों के उदाहरण मिलते हैं ।

परिस्थितियों पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं, लेकिन मनःस्थिति तो बहुत कुछ उसके हाथ में ही है ,जिसको धैर्य के बल पर व्यक्ति सँभाले रहता है और अनुकूल दिशा देता है ।धैर्यवान व्यक्ति जानता है कि बोए बीज का फल समय पर मिलेगा , अतः वह हर पल का सदुपयोग करता है ।वह अपने छोटे-छोटे प्रयासों के साथ अभीष्ट लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ता रहता है ।सच्चिंतन, सत्कर्म व सद्भाव की त्रिवेणी में निरंतर स्नान करता है, सत्कर्म की बोई फसल के पकने का इंतजार करता है।

धैर्य व्यक्ति का एक ऐसा गुण है, जिसके गर्भ से बाकी सब गुण प्रस्फुटित होते हैं ।यदि व्यक्ति में धैर्य नहीं है तो उसकी शक्ति-- दुर्बलता में बदल जाती है व मेहनत का वह फल नहीं मिल पाता, जिसका वह हकदार है ।

धैर्यवान व्यक्ति जीवन की विषमताओं एवं प्रतिकूलताओं में भी अपना विश्वास बनाए रखता है और नकारात्मक भावों से दूर रहता है।विपरीत परिस्थितियों में भी शान्त भाव से पार निकलने की राह निकालता है । कबीर दास ने कहा है ---
           धीरे-धीरे  रे  मना , धीरे सब कुछ होय ।
         माली सींचै सौ घड़ा , ऋतु आए फल होय ।।
इस तरह धैर्य जीवन में उसका अभिन्न सहचर बनता है ।धैर्यवान व्यक्ति एक किसान की मनोदशा में जीता है, जो बीज से फसल बनने तक की धीमी , किंतु क्रमिक प्रक्रिया को बखूबी जानता है ।

    ●●● आध्यात्मिक जीवन में धैर्य का महत्व ●●●

                लौकिक जीवन की तरह आध्यात्मिक जीवन में भी धैर्य एक विशिष्ट गुण है , बल्कि इसकी आवश्यकता एवं महत्व यहाँ और भी अधिक है ।लौकिक जीवन में पुरुषार्थ के फल की इच्छा इसी जन्म की रहती है, लेकिन एक आध्यात्मिक पथ का पथिक अपनी चेतना के रूपांतरण से लेकर आत्मसाक्षात्कार एवं ईश्वर प्राप्ति आदि आध्यात्मिक लक्ष्यों को पाने हेतु जन्म-जन्मांतर की प्रतीक्षा के साथ साधनारत रहता है ।वह अपनी आत्मा के अजर,अमर,अविनाशी स्वरूप को मानते हुए उसी के अनुरूप अनंत धैर्य के साथ अभीष्ट लक्ष्य हेतु साधना पथ पर डटा रहता है।

धैर्य पूर्वक जीवनलक्ष्य की ओर निरंतर प्रगति करते रहना ही सफल जीवन का राज है ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।




No comments:

Post a Comment