आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक दुर्गा पूजा ( शक्ति पूजा) बाद दशमी के दिन पूरे भारत वर्ष में बड़ी धूमधाम के साथ दशहरा मनाया जाता है ।इस दिन भगवान श्री राम ने दशानन रावण का वध करके दसों दिशाओं को उसके ( रावण ) के आतंक से मुक्त किया था । दशहरा यानी जिसने दसों दिशाओं पर विजय प्राप्त कर ली है ।ज
दशहरा पर्व मनाने के पीछे बड़े ही मार्मिक अर्थ छिपे हैं ।इस दिन मर्यादा के प्रतीक भगवान श्री राम ने अहंकार व अनैतिकता के मार्ग पर चलने वाले राक्षस राज रावण का अन्त किया था । यह इस बात का संकेत देता है कि समाज में जो भी अहंकारी है , अनैतिक मार्ग का अनुसरण करता है, अधर्म करता है, उसका पतन सुनिश्चित है , इसलिए नीति व धर्म को अपनाना चाहिए, अनैतिकता का परित्याग करना चाहिए ।
●●● दशहरे को विजयादशमी क्यों कहते हैं ?●●●
एक तो इस दिन भगवान श्री राम ने रावण के ऊपर विजय प्राप्त की, इसलिए इसको विजयादशमी कहा जाता है । विजयादशमी के संदर्भ में ज्योतिर्विज्ञान में लिखा है कि आश्विन शुक्ल दशमी के दिन तारे उदय होने के समय विजय नामक काल होता है, जो समस्त कार्यों में सफलता दिलाने वाला होता है , इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं ।यह पर्व एक तरह से न्याय और नैतिकता का पर्व है ।धर्भ की विजय का पर्व है ।
●● महाज्ञानी होने पर भी रावण अहंकार वश अधर्मी ●●
लंकापति रावण बड़ा ज्ञानी, वेद शास्त्रों का ज्ञाता, परम शक्तिशाली था, लेकिन अधर्म का आचरण करता था । कोई भी उसकी सोने की लंका में उसकी मर्जी के बिना न तो प्रवेश कर सकता था और न ही कोई कार्य कर सकता था ।
रावण मायापति था , आसुरी माया में निपुण था ।उसके संरक्षण में रहने वाले राक्षस व असुर बड़े ही मदांध होकर विचरण करते थे और मनुष्यों का संहार करते थे ।चारों दिशाओं में रावण ने आतंक फैलाया हुआ था ।
पराक्रमी व सामर्थ्यवान होने पर भी उसने माता सीता का छलपूर्वक हरण किया और सागर पार उन्हें अपने अभेद्य दुर्ग लंका में छिपाकर रखा, जहाँ किसी का पहुँचना तो दूर, किसी का प्रवेश भी वर्जित था ।जगह-जगह पर उसने मायावी राक्षसों को तैनात कर रखा था ।लंका के चारों ओर ऐसे यंत्र स्थापित किए थे, जिनके समीप व समक्ष जाने पर किसी का भी अंत हो जाए ।
●● हनुमान द्वारा सीता की खोज, राम-रावण युद्ध ●●
जब सीता का पता लगाने भगवान श्री राम ने हनुमान जी को भेजा तो हनुमान जी मार्ग की समस्त रुकावटों को दूर करते हुए, यंत्रों का शमन करते हुए, अभेद्य लंका में प्रविष्ट हुए तथा माता सीता तक पहुँचकर उन्हें आश्वासन दिया कि भगवान राम जल्द ही यहाँ आएँगे ।
तत्पश्चात उन्होंने लंकादहन करके , राजाओं व देवताओं को रावण के चंगुल से मुक्त किया ।वहाँ से वापस आकर, भगवान राम को सीता की कुशलता का समाचार दिया ।इसके बाद भगवान राम ने समस्त बानर सेना के साथ लंका की ओर प्रस्थान किया ।तत्पश्चात सागर पर सेतु बना और सागर पार करके श्री राम जी की सेना लंका क्षेत्र में आ गई ।
राम-रावण युद्ध हुआ और उस युद्ध में रावण के समस्त समर्थक व सहयोगी मारे गए ।श्री राम की रावण पर विजय हुई , उन्हें माता सीता मिल गईं ।लंका पर रावण के छोटे भाई विभीषण का राज्याभिषेक किया गया और लंका में भी धर्म की स्थापना हो गई।इस तरह राम जहाँ होते हैं, वहाँ अधर्म व आतंक का साम्राज्य समाप्त होता है औ, धर्म की स्थापना होती है ।
रावण क्रोधी, अहंकारी, मायावी था लेकिन राम उतने ही शांत, मर्यादित, वीर, पराक्रमी थे ।देखने में तो रावण के वैभव साधनों, प्रशिक्षित सैनिकों व मायावी शक्तियों के समक्ष श्री राम के पास कुछ नहीं था ।भगवान के पास सिर्फ धनुष-वाण और वानर सेना थी पर गहराई से विचार किया जाए तो राम के साथ ऋषियों का सत्संग व ज्ञान था , जो उन्होंने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ, ब्रह्मर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य व अन्य ऋषियों से प्राप्त किया था ।
भगवान राम का आत्मीय भाव था , जिसके कारण जंगलों में निवास करने वाले रीछ-वानर उनके अपने हो गए थे और बिना अपने प्राणों की परवाह किए उनकी सेना में शामिल हो गए ।भगवान श्री राम के व्यक्तित्व में वह अद्भुत शांति थी, सौम्यता थी , जिसके कारण कोई भी उनके व्यक्तित्व से सहज आकर्षित हो जाता था ।भगवान श्री राम ने केवल रावण पर ही विजय प्राप्त नहीं की , बल्कि लोगों के हृदय को भी जीता, उस पर राज किया ।
वस्तुतः दशहरा पर्व प्रतीक है--- सामूहिकता का, सन्मार्ग का, नैतिकता का ।जिस तरह श्री राम ने वानरों की सेना के साथ रावण व उसके राक्षसों का सामना किया , उसी तरह व्यक्ति को भी बड़े कार्यों के लिए सामूहिकता की शक्ति का एकत्रीकरण करना चाहिए ।अन्याय का डटकर सामना करना चाहिए ।
जब तक समाज में भगवान श्री राम के समान उत्कृष्ट व्यक्तित्वों का निर्माण नहीं होगा , तब तक आसुरी शक्तियों के प्रतीक रावण का आतंक समाप्त नहीं होगा ।ऐसा होने के लिए शुभ शक्तियों को पुनः सामूहिक ढंग से एकत्र होने व प्रयास करने की जरूरत है ।
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