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Tuesday, November 10, 2020

स्वाध्याय का सच्चा अर्थ, शास्त्रों में स्वाध्याय की परिभाषा, जीवन के प्रश्नों के उत्तर स्वाध्याय द्वारा, स्वाध्याय के लिए महर्षियों,स्वाध्याय के लिए कैसा साहित्य हो?

           ●●●स्वाध्याय का सच्चा अर्थ●●●
स्वाध्याय का सच्चा अर्थ है--- स्व का अध्ययन अर्थात अपने आप का, अपने जीवन का अध्ययन करना है ।सामान्यतया हम किसी पुस्तक को पढ़ना ही स्वाध्याय मान लेते हैं ।अपने पसंदीदा विषय की पुस्तकों या पत्रिकाओं को  पढ़ते तो हैं और पढ़ने में रुचि होना एक अच्छी बात है । पढ़ना जरूरी भी है  लेकिन स्वाध्याय का एक अलग ही अर्थ है। स्वाध्याय के यथार्थ उद्देश्य, महान प्रयोजन और फलश्रुतियों को न समझने के कारण स्वाध्याय को अपने जीवन का अभिन्न अंग नहीं बना पाते ।

       ●●● शास्त्रों में स्वाध्याय की परिभाषा  ●●● 

●तैत्तिरीयोपनिषद में--- "स्वाध्यायान्मा प्रमदः"   कहकर मानव मात्र के लिए स्वाध्याय को जीवन का अभिन्न अंग बनाने का निर्देश दिया है ।
● श्री मद्भगवद्गीता में स्वाध्याय को वाणी का तप कहा गया है ।
● छांदोग्योपनिषद् में स्वाध्याय को धर्म के प्रमुख स्तंभों में एक        माना गया है ।
● पातंजल योग सूत्र में स्वाध्याय को क्रियायोग का एक प्रमुख         अंग माना है ।
● योग न्यास भाष्य में कहा गया है कि योग साधना के पथ पर          स्वाध्याय करने से परमात्मा का साक्षात्कार होता है ।
● शतपथ ब्राह्मण में तो ब्राह्मण को नियमित स्वाध्याय करने का       निर्देश दिया है ।कहा है कि ब्रह्म या ईश्वर की प्राप्ति में संलग्न         व्यक्ति को  प्रतिदिन दिन स्वाध्याय करना  अत्यन्त ही                 आवश्यक है ।
● योग एवं अध्यात्म शास्त्रों में स्वाध्याय को जीवन-साधना का        एक प्रमुख स्तंभ माना गया है ।
    
 स्वाध्याय के प्रति इन महान धारणाओं में कोई अतिशयोक्ति           नहीं है ; क्योंकि स्वाध्याय का रूप ही कुछ ऐसा है ।आज मनुष्य दुनियाभर की जानकारी हासिल करता है लेकिन स्वयं के प्रति अनभिज्ञ रहता है और इसी कारण दुःख, क्लेश, समस्याओं, विग्रहों एवं द्वंदों से आक्रांत रहता है ।

● जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर स्वाध्याय से ही मिलते हैं ●

इस सुरदुर्लभ मानव जीवन का मूल उद्देश्य क्या है ? इस उद्देश्य की पृष्ठभूमि में वह कहाँ खड़ा है ? इस तक पहुँचने का मार्ग क्या है ? इस मार्ग के आंतरिक एवं बाह्य व्यवधान क्या हैं?--  इन सब महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर स्वाध्याय के प्रकाश में ही मिलते हैं श्रेष्ठ ग्रन्थों एवं मनीषियों द्वारा रचित साहित्य के साथ व्यक्ति जब चिंतन-मनन एवं विचार करता है तो उसके विवेकचक्षु जाग्रत होते हैं ।आंतरिक जीवन के अँधेरे कोने में प्रकाश की किरणें पड़ती हैं और जीवन का प्रकाशपूर्ण मार्ग प्रशस्त होता है ।

     ●●● स्वाध्याय के लिए कैसा साहित्य हो ? ●●●

स्वाध्याय का लाभ पाने हेतु उचित साहित्य का चयन अभीष्ट होता है, तभी स्वाध्याय का यथार्थ प्रयोजन पूरा होता है और इससे जुड़ी फलश्रुतियाँ एक-एक कर अनावृत होने लगतीं हैं ।जीवन को सफल बनाने के लिए सभी तरह के साहित्य की जरूरत होती है ।इसमें जीवन की सफलता, उन्नति एवं बुलंदियों की बातें होती हैं, 
  किन इनमें प्रायः वह प्रकाश नहीं मिल पाता, जो जीवन की आत्यांतिक समस्याओं एवं महाप्रश्नों के मर्म को छू सके ।

स्वाध्याय के लिए सबसे उपयुक्त रहता है --- उन प्राज्ञपुरुषों द्वारा रचित साहित्य को पढ़ना ; जिनका स्वयं का जीवन दैदीप्यमान सूर्य की भाँति युग को आलोकित किए होता है ।इस युग में स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, महर्षि अरविंद, स्वामी शिवानंद एवं श्री राम शर्मा आचार्य जी जैसे महायोगी-महर्षियों के साहित्य में ऐसा प्रकाशपूर्ण मार्गदर्शन उपलब्ध होता है ।

श्री मद्भगवद्गीता, वेद, पुराण, उपनिषद्, श्री रामचरितमानस, पातंजल योगसूत्र, विवेक चूड़ामणि  जैसे आध्यात्मिक ग्रन्थों से भी जीवन के मुल प्रश्नों के समाधान मिलते हैं और ये स्वाध्याय के प्रयोजन को पूरा करते हैं ।युगॠषि पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी द्वारा रचित विपुल युगसाहित्य भी जीवन के मूल प्रश्नों के उत्तर दिलाने में सक्षम है ।

यदि हम स्वाध्याय के द्वारा अपने जीवन का विकास करना चाहें तो नियमित कुछ समय स्वाध्याय अवश्य करें ।जैसे-जैसे आपके स्वाध्याय में वृद्धि होगी वैसे-वैसे आपके दृष्टिकोण में परिवर्तन आने लगेगा और आप दूसरों का मार्गदर्शन भी कर सकेंगे ।धीरे-धीरे आपको यह अनुभव होने लगेगा कि आप परम सत्ता के सान्निध्य में हैं ।वह परम सत्ता आपका मार्गदर्शन कर रही है ।

स्वाध्याय के लिए अपनी रुचि के अनुसार उचित साहित्य का चयन आपके जीवन के उद्देश्य के महत्वपूर्ण प्रश्नों के समाधान देने में सहायक हो सकता है  इसलिए सद्ग्रन्थों एवं युगसाहित्य के नित्य अध्ययन का क्रम बनाया जाना चाहिए ।स्वाध्याय पूर्ण एकाग्रता एवं श्रद्धा के साथ करना चाहिए ।एकाग्रता एवं श्रद्धा के साथ किया गया स्वाध्याय मानव जीवन के मूल उद्देश्य को उजागर करता है जिसके द्वारा साधक नित्यप्रति आत्मसाधना में विकास की अनुभूति करता है ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।




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