"ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्" -- अर्थात सूर्यादि ग्रह और काल का बोध करानेवाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है ।ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से ग्रह, नक्षत्र आदि के स्वरूप, संचार , परिभ्रमण काल , ग्रहण और स्थिति से सम्बन्धित घटनाओं का निरूपण एवं शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है । नभमंडल में स्थित ग्रह-नक्षत्रों की गणना एवं निरूपण मनुष्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं ।
ज्योतिष शास्त्र के कर्म विश्लेषण में अतीत यानी कि पूर्वजन्म , वर्तमान अर्थात यह जन्म एवं भविष्य अर्थात भावी जन्म-- सभी सम्मिलित हैं ।जीवन के दृश्य-अदृश्य सभी आयामों की जितनी सम्यक व्याख्या ज्योतिष में है, वैसी अन्यत्र कहीं नहीं है।अनगिनत वैज्ञानिक प्रयोगों- परीक्षणों से यह प्रमाणित हो चुका है कि खगोल के प्रभाव भूगोल पर पड़ते हैं और यह खगोल-भूगोल एवं प्रकृति के सभी दृश्य-अदृश्य कारक मिलकर मानव-जीवन पर अपना प्रभाव डालते हैं ।
ज्योतिष शास्त्र में व्यक्तित्व को विचार, क्रिया और अनुभव के रूप में निरूपित किया गया है।इसी को दैहिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप भी कहा गया है ।मानव जीवन के बाह्य व्यक्तित्व एवं आंतरिक व्यक्तित्व के तीन-तीन रूप एवं एक अंतःकरण-- इन सात के प्रतीक सौर जगत में रहने वाले सात ग्रह माने गए हैं ।व्यक्तित्व के ये सात आयाम सभी प्राणियों में समान नहीं होते ।कर्मानुसार इनकी स्थिति और परिस्थितियाँ होती हैं ।
ग्रह, नक्षत्र, तारे, राशियाँ, मंदाकिनियाँ , निहारिकाएँ , मनुष्य, अन्य प्राणी, वृक्ष, चट्टानें आदि विश्व ब्रह्माण्डीय घटक--- प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से एक-दूसरे को प्रभावित एवं आकर्षित करते हैं ।इन ग्रह नक्षत्रों का मानव जीवन पर सम्मिलित प्रभाव पड़ता है ।ये कभी कष्ट देते हैं तो सभी कष्ट दूर करते हैं ।हालाँकि यह सब होता है हमारे ही शुभ व अशुभ कर्मों के अनुसार, पर होता अवश्य है।ज्योतिर्विज्ञान के अध्ययन एवं उपयोग से दैवज्ञ को मानव जीवन के सभी क्षेत्रों के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त हो जाती है।
●●● सौर जगत में रहने वाले सात ग्रह ●●●
●बाह्य व्यक्तित्व के तीन रूप -- बृहस्पति, मंगल और चन्द्रमा●
● बृहस्पति -----बाह्य रूप के तीन रूपों में प्रथम रूप विचार का प्रतीक बृहस्पति है।यह ग्रह प्राणिमात्र के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है और शरीर संचालन के लिए रक्त प्रदान करता है।शारीरिक रूप से यह पैर , जंघा, जिगर, पाचन-क्रिया , रक्त एवं नसों का प्रतिनिधित्व करता है।कार्य व्यापार में बृहस्पति का संबंध धर्म और कानून से है।यह पुजारी, मंत्री, न्यायाधीश, दान आदि से संबंधित है ।आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह सौन्दर्य, प्रेम, शक्ति, भक्ति, व्यवस्था, बुद्धि, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र आदि को बढ़ावा देता है।
● मंगल --- बाह्य रूप के द्वितीय रूप का प्रतीक मंगल है ।मनुष्य में जितने भी उत्तेजक और संवेदनशील आवेग हैं, वे सभी इसी से नियंत्रित होते हैं ।यह मुख्य रूप से इच्छाओं का प्रतीक है ।कार्यक्षेत्र में मंगल --- सैनिक, चिकित्सक, प्रोफेसर, इंजीनियर, रसायनविद् , मशीन कार्य करने वाले , खेल , कारीगर आदि क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है ।इसके कारण व्यक्तित्व में साहस, दृढ़ता, आत्मविश्वास, क्रोध, एवं अधिकार भाव पैदा होते हैं ।
● चन्द्र ---- बाह्य व्यक्तित्व का तृतीय रूप चंद्रमा है।चंद्रमा शारीरिक चेतना पर प्रभाव डालता है तथा मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाले परिवर्तनों को नियंत्रित करता है।शारीरिक रूप से इसका संबंध पेट, पाचन शक्ति, आँत , स्तन, गर्भाशय, आँखों से है।चंद्रमा श्वेत रंग , जल , नसों, भोजन पर प्रभाव डालता है।आत्मिक दृष्टि से यह संवेदना, आंतरिक इच्छा, उतावलेपन, भावनाओं, कल्पनाओं एवं सतर्कता में अभिवृद्धि करता है।
●आंतरिक व्यक्तित्व के तीन रूप-- शुक्र, बुध, सूर्य●
● शुक्र ----- आंतरिक व्यक्तित्व के प्रथम रूप का प्रतीक शुक्र है। शुक्र -- सूक्ष्म मानव चेतना को प्रभावित करता है ।शुक्र निस्स्वार्थ भाव से जीवमात्र के प्रति मातृत्व भावना का विकास करता है।इसका संबंध नृत्य, गायन, वादन,कलात्मक वस्तुओं व भोगरूपी साधन-सुविधाओं से है।शारीरिक रूप से शुक्र -- गले, गुरदे , आकृति, वर्ण , केश आदि से संबंधित है।यह सौन्दर्य का प्रतिनिधित्व करता है ।आत्मिक रूप से यह व्यक्ति को स्नेह, सौन्दर्य, ज्ञान,आनंद, विशेष प्रेम , स्वच्छता, कुशाग्र बुद्धि,कार्य क्षमता प्रदान करता है ।
● बुध -- आंतरिक व्यक्तित्व के द्वितीय रूप का प्रतिनिधि बुध है ।यह मुख्य रूप से मस्तिष्क, स्नायु क्रिया, जिह्वा, वाणी , भुजाएँ व अन्य अंगों पर प्रभाव डालता है।कार्य व्यापार में यह शिक्षा,विज्ञान, साहित्य संपादन, बुद्धिजीवी भाव एवं व्यापार को बढ़ाता है।यह समझ, स्मृति, तर्क, विश्लेषण से सम्बन्धित है।
● सूर्य ----आंतरिक व्यक्तित्व के तृतीय रूप का प्रतिनिधि सूर्य है। यह पूर्ण देवत्व की चेतना का प्रतीक है ।यह पूर्ण इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति, सदाचार, विश्राम, शांति, जीवन की उन्नति एवं विकास का द्योतक है।यह राजा, मंत्री, सेनापति, आविष्कारक, पुरातत्ववेत्ता बनाता है।सूर्य --- शरीर में हृदय , रक्त संचालन, नेत्र, दाँत, कान, आँख आदि अंगों का प्रतिनिधित्व करता है ।आध्यात्मिक रूप से यह प्रभुता, ऐश्वर्य,प्रेम, उदारता, महत्वाकांक्षा, आत्मविश्वास, विचारों एवं भावनाओं के संतुलन का प्रतीक है।
●अंतःकरण का एक रूप -- शनि●
●शनि ---- शनि अंतःकरण का प्रतीक है ।यह बाह्य चेतना एवं अंतश्चेतना से सम्बन्धित है।मूख्य रूप से यह अहं भावना का प्रतीक है, जो विचार एवं कार्य के बीच संतुलन पैदा करता है ।यह जीवन के विविध रहस्यों को अभिव्यक्त करता है।जन्म स्थान का शनि विचारों एवं भावों को सुदृढ़ करता है।शनि व्यक्ति को कृषक, मठाधीश, कृपण, पुलिस अधिकारी, साधु-संन्यासी बनाता है।शनि --- चट्टानी प्रदेश ,बंजर भूमि, चौरस मैदान का प्रतिनिधित्व करता है ।
आध्यात्मिक दृष्टि से शनि तत्त्वज्ञान , विचार ज्ञान, नेतृत्व क्षमता, कार्यपरायणता , आत्मसंयम, धैर्य, दृढ़ता, गंभीरता, चरित्र, सामर्थ्य आदि का प्रतीक है ।शारीरिक दृष्टि से शनि हड्डियों, नीचे के दाँतों, बड़ी आँतों, मांसपेशियों एवं स्नायुतंत्रों आदि को प्रभावित करता है ।शनि कभी किसी पर कृपा नहीं करता है , वह तो मात्र कर्मफल देता है।सृष्टि में ऐसा कोई नहीं है, जो इसके न्याय से बच पाता हो।
इस प्रकार मानव जीवन के साथ ग्रहों का अभिन्न संबंध है।
●राहु --- राहु में शनि के सूक्ष्म प्रभाव अंतर्निहित हैं ।
● केतु -- इसमें मंगल की सूक्ष्मताएँ समाहित हैं ।
●●महाभारत, में ज्योतिषशास्त्र के बारे में शिव कहते हैं-●●
ज्योतिष शास्त्र में वर्णित ग्रह-नक्षत्र किसी के सुख-दुःख का कारण नहीं हैं ।ये तो बस , इनकी सूचना देते हैं ।इस सम्बन्ध में भगवती पार्वती के प्रश्न पूछने पर स्वयं भगवान शिव ने पार्वती के संशय का निवारण किया--
भगवान शिव कहते हैं-- " हे देवि ! तुम्हारा संशय व प्रश्न उचित है ।इस विषय में जो ज्योतिष का सिद्धांत है उसे सुनो। महाभागे ! ग्रह और नक्षत्र मनुष्यों के शुभ और अशुभ की सूचना भर देते हैं ।वे स्वयं कुछ नहीं करते ।मनुष्यों के हित के लिए ज्योतिषचक्र द्वारा भूत और भविष्य के शुभाशुभ कर्मफल का बोध कराया जाता है ।उनके शुभ कर्मों की सूचना शुभ ग्रहों के द्वारा होती है और बुरे कर्मों के फल की सूचना अशुभ ग्रहों के द्वारा ।ग्रह-नक्षत्र किसी को शुभ या अशुभ फल नहीं देते ।सारा अपना ही किया हुआ कर्म , शुभ व अशुभ फल का उत्पादक होता है ।ग्रहों ने कुछ किया है - यह कथन तो लोगों का मिथ्याप्रवाद है।" ऐसा निश्चित जानकर ज्योतिष के प्रकाश में सदा शुभ कर्मों के लिए तत्पर रहना चाहिए।
यह सत्य है कि भारत में प्रादुर्भाव होकर ज्योतिर्विज्ञान विश्वभर में
प्रसारित हुआ ।इस महान विज्ञान के विकास के प्रमाण भारत में ही नहीं, विश्व के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न भाषाओं में लिपिबद्ध हैं, जो ज्योतिर्विज्ञान की महान गरिमा का बोध कराते हैं ।मनुष्य की प्रकृति एवं उसके स्वभाव का गहरा संबंध ज्योतिर्विज्ञान से है जिसके अंतर्गत पिंड एवं ब्रह्माण्ड, व्यष्टि एवं समष्टि, आत्मा और परमात्मा के संबंधों का अध्ययन सम्मिलित रूप से किया जाता है।
पुरातन अतीत में ज्योतिर्विद्या का न केवल सैद्धान्तिक ज्ञान-विज्ञान दुनिया के कोने-कोने में लोकप्रिय हुआ , बल्कि अनेक स्थानों पर अंतरिक्षीय गतिविधियों के अध्ययन-पर्यवेक्षण के लिए विलक्षण वेधशालाओं का निर्माण भी हुआ, जिनकी निर्माण-प्रक्रिया और उनमें सन्निहित विशेषताएँ अभी भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्यमय बनी हुई हैं ।
●● आधुनिक युग में ज्योतिषशास्त्र का परिवर्तित रूप ●●
जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे ज्योतिष शास्त्र का रूप भी बदलता रहा , ज्योतिष शास्त्र की विद्या व विज्ञान पर अनेक आघात हुए।अल्पज्ञ तथा निहित स्वार्थी लोगों के हाथ में पहुँच जाने पर इसकी घोर अवनति हुई।ज्योतिषशास्त्र के मूल सिद्धांत कर्मफल विधान एवं इसके आध्यात्मिक तत्त्वदर्शन से अपरिचित लोगों ने इसके रूप को ही परिवर्तित कर दिया ।
आजकल तो फलित ज्योतिष लोगों को डराने-धमकाने और उन्हें अकर्मण्य बनाने का माध्यम बन गया है।ज्योतिषशास्त्र एक व्यवसाय बनकर रह गया है ।यह प्रचलन आज ज्योतिर्विज्ञान का परिहास कर रहा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत की संतानें इस गौरवपूर्ण विज्ञान की वैज्ञानिकता को पुनर्जीवित एवं पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास करें ।
ग्रह-नक्षत्र किसी का शुभ व अशुभ नहीं करते हैं ।हमारा किया हुआ कर्म ही , शुभ व अशुभ फल का उत्पादक होता है ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
Nice
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