धरती के गर्भ से निकले प्राकृतिक गरम जल के स्रोत प्रकृति द्वारा मानव के लिए विशिष्ट उपहार हैं,खासकर ठंडे-बरफीले क्षेत्रों के लिए, जहाँ तापमान माइनस में चला जाता है ।ठन्डे क्षेत्रों में गरम जल के स्रोत दैवी उपहार जैसे प्रतीत होते हैं, जो पहाडों पर रहने वालों का जीवन आसान कर देते हैं ; क्योंकि पहाड़ों पर अत्यधिक ठन्ड होने के कारण वहाँ का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में कई प्राकृतिक गरम जल के स्रोत हैं ।भारत के लगभग हर क्षेत्र में ऐसे जलस्रोत न्यूनाधिक मात्रा में उपलब्ध हैं ।
●● बदरीनाथ में अलकनंदा के किनारे गरम जल स्रोत ●●
बदरीनाथ तीर्थ क्षेत्र में अलकनंदा नदी के किनारे ऐसे गरम जल का प्राकृतिक स्रोत है , जिसे एक कुंड में संगृहीत किया गया है, बाहर पाइपों के माध्यम से यह नलकों में प्रवाहित होता है।दूर-दूर से लंबी यात्रा से आए थके यात्री इसमें स्नान करके तरोताजा अनुभव करते हैं फिर बदरी-विशाल के दर्शन करते हैं ।हाँलाकि शुरुआत में कुंड का जल थोड़ा गरम प्रतीत होता है , लेकिन थोड़ी देर में सहने योग्य हो जाता है ।
●●● केदारनाथ के गौरीकुंड में गरम जल के स्रोत ●●●
केदारनाथ धाम की यात्रा के शुरुआती पड़ाव गौरीकुंड में भी ऐसे गरम जल के स्रोत विद्यमान हैं, हालाँकि 2013 की प्राकृतिक त्रासदी में ये तहस-नहस हो गए थे , लेकिन अभी भी यहाँ से जल निस्सृत हो रहा है।हलका गरम जल शरीर के लिए सहनीय होता था , जिनके स्नान से पावन होकर तीर्थयात्री केदारनाथ धाम की
आगे की यात्रा करते थे ।ऐसी मान्यता है कि यहाँ माता पार्वती ने अपने आराध्य शिव के लिए तप किया था।
●●● यमुनोत्री धाम में गरम जल का स्रोत (तप्तकुंड)●●●
यमुनोत्री धाम में भी तप्तकुंड है ,जिसे सूर्यकुंड के नाम से जाना जाता है ।इस कुंड में खौलता हुआ पानी रहता है।इसमें चावल या आलू डालने पर पक जाते हैं और इन्हें प्रसाद रूप में तीर्थयात्री उपयोग करते हैं ।
●● गंगोत्री के मार्ग में गंगनानी में गरम जल का स्रोत ●●
उत्तराखंड के चारधामों में से एक गंगोत्री धाम के रास्ते में गंगनानी स्थान पर गरम जल का स्रोत है ।श्रद्धालु एवं पर्यटक इसका आनंद उठाते हैं ।जोशीमठ के आगे मलांग के रास्ते में तपोवन स्थान पर भी ऐसा गंधकयुक्त गरम जल का स्रोत है ।
●मुन्स्यारी,मदकोट में गौरीगंगा नदी के किनारे गरमजल स्रोत●
कुमायूँ के मुनस्यारी क्षेत्र में शहर से 20 किमीo दूर मदकोट स्थान पर गौरीगंगा नदी के बाएँ तट पर गरम जल का स्रोत हैं, जिनका जल गंधक व चूने का विशेष अंश लिए होता है , जिसकी झलक यहाँ के जलस्रोत की तह में सफेद एवं लाल-भूरे रंग के अवशिष्ट एवं चट्टानों को देखकर पाई जा सकती है।इसका जल त्वचा रोगों में विशेष रूप से उपयोगी बताया जाता है।
● शिमला में सतलुज के किनारे ततापानी में गरमजलस्रोत ●
हिमाचल के पहाड़ी राज्य में गरम जल के कई स्रोत हैं, जो सैलानियों की यात्रा को सरल व रोचक बनाते हैं ।शिमला के समीप सतलुज नदी के किनारे, ततापानी स्थान पर नदी के तट पर गरम जल के स्रोत हैं-- जहाँ खुली हवा में यात्री स्नान का आनंद उठाते हैं ।एक ओर सतलुज का बरफीला जल बह रहा होता है ,तो दूसरी ओर इसी के साथ तट पर गरम जल उफन रहा होता है।इस कुंड का जल औषधीय गुणों से भरपूर है।यह त्वचा रोगों में लाभकारी है ।
●● मणिकर्णघाटी में खीरगंगास्थल पर गरम जल का स्रोत●●
मणिकर्ण घाटी में, खीरगंगा स्थल पर गरम जल का एक अनोखा कुंड है ।प्रकृति की गोद में, ऊँचे पहाड़ों के बीच खुली जगह में स्थित यह कुंड पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों को बहुत आकर्षित करथा है। यहाँ समीप में ही शिवमंदिर है ।इस तीर्थ स्थल को शिव- पार्वती नंदन कार्तिकेय से सम्बन्धित माना जाता है ।
मणिकर्ण गाँव गरम जल स्रोतों के लिए प्रख्यात है।यहाँ के गुरुद्वारे एवं राममंदिर परिसर में कई गरम जल के कुंड हैं ।यहाँ मन्दिर व गुरुद्वारे , दोनों ही स्थलों पर कुंड बने हुए हैं, साथ ही दोनों जगह खौलते पानी के कुंड भी हैं। जिनमें तीर्थयात्रियों को आलू, आटा व चावल आदि को पोटली में बाँधकर पकाते हुए देखा जा सकता है ।जो बाद में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है ।मणिकर्ण गाँव के घरों में पाइपों से इसी गरम जल की आपूर्ति होती है।
●●● मनाली के समीप गरम जल के स्रोत ●●●
मनाली के समीप वशिष्ठ गाँव में भी ऐसे ही गरम जल के स्रोत हैं ।यहीं ऋषि वशिष्ठ एवं भगवान राम को समर्पित मंदिर भी हैं ।यहाँ के जल को भी औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है ।मनाली के 6- 7 किमीo पहले क्लाथ नामक स्थान पर भी ऐसे ही गरम जल के स्रोत हैं , हालाँकि पिछले दिनों बाढ़ में नदी के किनारे इन स्रोतों को काफी क्षति हुई है ।
●●● लद्दाख व सिक्किम क्षेत्र में गरम जल के स्रोत ●●●
हिमालय के लद्दाख क्षेत्र में पनामिक स्थान पर नुब्रा घाटी में भी ऐसे गरम जल के स्रोत हैं ।यहाँ का पानी इतना गरम होता है कि कोई इसको छू नहीं सकता ।इसी तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी कई ऐसे गरम पानी के जलस्रोत हैं ।
सिक्किम के 15,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित यूमेसमडोग स्थान पर गंधकयुक्त जल के दर्जन से अधिक स्रोत हैं, जिनका ताप 59 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है।इसके अलावा सिक्किम में रेशि, बोरोंग, रेलोंग व यूमथंग स्थान पर गरम जल के स्रोत हैं, जो अपने औषधीय गुणों के कारण प्रसिद्ध हैं ।
इनके अतिरिक्त भारत में अन्य राज्यों में भी ऐसे अनेक जलस्रोत हैं, जो औषधीय गुणों के साथ अपना धार्मिक महत्व भी रखते हैं ।इन सभी स्थलों के भौगोलिक कारण तो पृथ्वी की कोख में सुलग रहे मेग्मा में देखे जा सकते हैं, जो पृथ्वी की सतह पर विद्यमान जल को गरम करता है व दबाव के कारण धरती पर गरम जलस्रोत के रूप में फूटता है।
सभी गरम जल के स्रोतों से जुड़े आध्यात्मिक प्रसंग इन्हें आस्था का केंद्र बनाते हैं ।साथ ही अधिक ठन्ड के दिनों में ये गरमजल के स्रोत मनुष्यों के लिए ही नहीं अन्य जीवधारियों के लिए भी राहत पहुँचाते हैं ।इनमें स्नान करके सहज ही हमें अपनी प्रकृति की उदारता स्मरण हो उठती है और मन प्रकृति के प्रति कृतज्ञता के भाव से भर जाता है।
सचमुच हमारी प्रकृति हमें बहुत कुछ प्रदान करती है।हम भी उसका आदर करना सीखें और सदा अपनी प्रकृति को हरा-भरा रखें ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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