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Saturday, May 30, 2020

आहार का व्यापक प्रभाव , क्या खाएँ ?, कब खाएँ ?, कैसे खाएँ ? , हितभुक् , मितभुक्, ऋतभुक् ।


            ●●● आहार का व्यापक प्रभाव ●●●
आहार का प्रभाव व्यापक है शारीरिक स्वास्थ्य हो या मानसिक स्थिति,  दोनों में ही आहार के अनुरूप उतार-चढ़ाव आता रहता है।यह एक ऐसा सत्य है,जिसका अनुभव हम सभी करते रहते हैं ।विकृत एवं अनियमित आहार का दुष्प्रभाव शरीर व मन दोनों पर ही पड़ता है ।गरिष्ठ, तीखा , तला-भुना , डब्बा बंद वासी आहार के नुकसानों की यदि गिनती करनी हो तो उन सभी बीमारियों की भी सूची तैयार करनी होगी ; जिनका प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सभी बीमारियों का आहार से कोई-न-कोई सम्बन्ध है।आजकल जंक फूड , फास्ट फूड इत्यादि  खान -पान की शैली जो इन दिनों चल पड़ी है, इस कारण भी नए रोग उत्पन्न हो रहे हैं ।

● क्या  खाएँ ? -- आहार जीवन की नैसर्गिक जरूरत है, यह अनुभूति हम सभी को है , पर क्या खाएँ ? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हममें से बहुत कम लोगों को ही पता है ।क्या खाएँ ? इसका उत्तर हमें स्वयं से व संबंधित विशेषज्ञों से बार-बार पूछना चाहिए ।यदि मन में इसका उत्तर जानने की जिज्ञासा उभरे तो उत्तर यही होगा कि हम शरीर का पोषण करने वाली वस्तुओं को ही खाएँ ।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भोजन स्वास्थ्य की जरूरत है , स्वाद की नहीं, एक कहावत भी है -- " खाने के लिए नहीं जीना , जीने के लिए खाना है " ।भोजन की गुणवत्ता की दृष्टि से व्यंजनों की सूची में यदि खाद्य पदार्थों का निर्णय करना हो तो केवल स्वास्थ्य एवं पोषण प्रदान करने वाले आहारों को ही वरीयता देनी होगी और ऐसे आहार बड़ी आसानी से चुने जा सकते हैं ।ताजे फल, ताजी सब्जियाँ, दालें, अनाज इनकी उपयोगिता की जानकारी सभी को होनी चाहिए ।

भोजन तैयार करने में तीखे मिर्च-मसाले का उपयोग कम मात्रा में ही होना चाहिए । अधिक तलना-भूनना भी निरर्थक है।बहुत तीखा खाते रहना व बहुत तले-भुने पदार्थ खाते रहना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं । आजकल नशीली चीजें, पान-तम्बाकू आदि अनेक वस्तुओं का चलन बढ़ता जा रहा है और इनके नुकसानों से भी सब भलीभाँति परिचित हैं ।इन दिनों तथाकथित ऊँची सोसायटी के लोगों का भोजन देखकर मन सोचने पर मजबूर हो जाता है कि इन लोगों का विवेक कहाँ गया ।हालाँकि सभी ऐसे नहीं हैं, इनमें से कुछ लोग आहार की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान देते हैं ।

क्या खाएँ ? इसका उत्तर यही सही है --  "खाना जितना सादा स्वास्थ्य लाभ उतना ज्यादा ।"

● कब खाएँ--- यदि सवाल यह हो कि कब खाएँ ? तो जबाब एक ही है -- दिन भर में अधिक-से-अधिक दो बार और वह भी कड़ी भूख लगने पर ।आयुर्वेद आचार्यों के अनुसार बार-बार, जब-तब खाते रहना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं । 

आधुनिक युग के खान-पान के तौर-तरीके इन दिनों इतने बिगड़ गए हैं कि चिकित्सकों व मनोवैज्ञानिकों ने इसे अपने शोध का विषय बना लिया है ।इनका कहना है कि भूख भी कई तरह की होती है ।उदाहरण के लिए-- 
1  किसी को खाते देखकर खाने के लिए लालायित हो जाना ।
2   चिंता या तनाव के क्षणों बार-बार खाने की इच्छा करना ।        3   जैविक लय के अनुसार सही समय पर भूख लगना।

 विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें-- जैविक लय के अनुसार सही समय पर भूख लगना ,  यही तरीका सही है।सही भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए ।

● कैसे खाएँ---   पोषक तत्वों से भरपूर खाना ग्रहण करना चाहिए ।सही भूख लगने पर ही भोजन ग्रहण करना चाहिए ।यह जानने के बाद सवाल उठता है कि भोजन कैसे ग्रहण करें ?

इसका जवाब है स्थिरचित्त होकर , शांत मन से , ईश्वर स्मरण करते हुए भोजन को भगवान के प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए ।भोजन यदि प्रसाद के रूप में किया जाए तो रूखी-सूखी रोटी भी स्वास्थ्य वर्द्धक बन जाती है ।यदि इसके विपरीत चिड़चिड़े मन से हड़बड़ी में खाने पर मेवा-मिष्ठान्न का भी लाभ नहीं मिलता ।उपयुक्त भोजन , उचित रूप से लेना ही अच्छे  स्वास्थ्य का रहस्य है।

     ●●● हितभुक्  , मितभुक्  , ऋतभुक् ●●●

आहार के बारे में तीन शब्द कहे गए हैं, हित , मित और ऋत।हितभोजी वह है, जो स्वास्थ्य के अनुकूल एवं उपयोगी पदार्थ ही ग्रहण करता है ।ऐसा व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति सजगता अपनाते हुए पोषक व उपयोगी आहार ही ग्रहण करता है।ऐसा व्यक्ति स्वाद के लिए नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए खाता है।

मितभोजी वह है , जो थोड़ा खाता है ।जितना आवश्यक है , उतना खाता है ।ज्यादा खाने वाले व्यक्ति के शरीर में आलस्य बना रहता है।ज्यादा खाने वाले किसी भी तरह साधना नहीं कर सकते ।वे तो खाने के बाद सिर्फ पचाने वाले चूर्ण एवं हाजमे की गोलियाँ ढूँढ़ते रहते हैं ।

आहार के बारे में तीसरा एवं सबसे महत्वपूर्ण शब्द है ऋत।ऋत का संबंध पवित्रता एवं चेतना की निर्मलता से है।ऋत का अर्थ भोजन में समाई भावनाओं में निहित है।भोजन बनाने वाले की भावनाएँ क्या हैं ?फिर खाने वाले कर्तव्यनिष्ठ हैं भी या नहीं ? 
ऋत भोजन को वही तैयार कर सकता है ,जो भावनाशील है ,जिसमें माँ की ममता है ।अच्छी भावना के साथ बना हुआ भोजन चेतना को परिष्कृत करता है ।

सत्य यही है कि आहार के बड़े व्यापक प्रभाव हैं ।आहार  का मूल्यांकन चेतना के विकास का मूल्यांकन है।अतः जो भोजन स्वास्थ्य के लिए अनुकूल हो वही खाएँ, नियत समय पर खाएँ और शांत व प्रसन्न मनःस्थिति में ईश्वर का स्मरण करते हुए ही खाएँ ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।



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