head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): ज्योतिष शास्त्र में जन्म के क्षण का विशेष महत्व क्यों है ?

Wednesday, May 27, 2020

ज्योतिष शास्त्र में जन्म के क्षण का विशेष महत्व क्यों है ?

  ●●ज्योतिष में जन्म के क्षण का विशेष महत्व क्यों है  ?●●
जीवन का हर पल अपने आप में महत्वपूर्ण है लेकिन जन्म का क्षण व्यक्ति को जीवनभर प्रभावित करता रहता है। जब कभी हम किसी ज्योतिषी से अपनी ग्रह-दशा के बारे मे पूछते हैं तो वे हमारे नाम आदि जानकारियों के साथ ।।जन्म स्थान व जन्म के समय का विवरण अवश्य माँगते हैं ।

ज्योतिष को लोग एक धर्मशास्त्र के रूप में देखते हैं, परंतु वास्तविकता यह है कि यह एक महाविज्ञान है।ज्योतिष के मर्मज्ञ एवं आध्यात्मिक ज्ञान के विशेषज्ञ, दोनों ही एक स्वर से इस सत्य को स्वीकारते हैं कि मनुष्य जैसे उच्चस्तरीय प्राणी की स्थिति में परिवर्तन उसके कर्मों, विचारों, भावों एवं संकल्पों के अनुसार होता है।इसीलिए जन्म का क्षण विशेष महत्व रखता है।

 ●-  जन्म के क्षण का विशेष महत्व क्यों है ? इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि प्रत्येक क्षण में ब्रह्माण्डीय ऊर्जा की विशिष्ट शक्तिधाराएँ किसी-न-किसी बिन्दु पर किसी विशेष परिमाण में मिलती हैं ।मिलन के इन्हीं क्षणों में मनुष्य का जन्म होता है ।इस क्षण में यही निर्धारित हो पाता है कि ऊर्जा की शक्तिधाराएँ भविष्य में किस क्रम में मिलेंगी और जीवन पर अपना क्या प्रभाव डालेंगी।

मनुष्य के जन्म का क्षण सदा ही उसके साथ रहता है।जन्म के क्षण का विशेष महत्व है ; क्योंकि यह क्षण बताता है कि जीवात्मा किन कर्मबीजों , प्रारब्धों व संस्कारों को लेकर किन और कैसे ऊर्जा-प्रवाहों के मिलन बिंदु के साथ जन्मी है ।

जन्म का क्षण इस विराट ब्रह्मांड में मनुष्य को व उसके जीवन को एक विशेष स्थान देता है।यह कालचक्र में ऐसा स्थान होता है , जो सदा अपरिवर्तनीय है।इनके मिलन के क्रम के अनुरूप ही सृष्टि, व्यक्ति, जन्तु, वनस्पति, पदार्थ, घटनाक्रम इत्यादि जन्म लेते हैं ।इसी क्रम में उनका विलय-विसर्जन भी होता है , जिसे सामान्य भाषा में इन सभी की मृत्यु अथवा स्वरूप का विसर्जन भी कह सकते हैं ।

ज्योतिर्विज्ञान के अन्वेषक महर्षियों ने इस ब्रह्माण्डीय ऊर्जा-प्रवाहों को चार चरणों वाले सत्ताइस नक्षत्रों, बारह राशियों एवं नवग्रहों में वर्गीकृत किया है ।इनमें होने वाले परिवर्तन-क्रम को उन्होंने विंशोत्तर , अष्टोत्तर एवं योगिनी नक्षत्रों के क्रम में देखा है ।इनकी अंतर एवं प्रत्यंतर दशाओं के क्रम में इन ऊर्जा-प्रवाहों के परिवर्तन क्रम की सूक्ष्मता समझी जाती है ।

ज्योतिर्विज्ञान को यदि अच्छी तरह समझ लिया जाए तो मनुष्य अपनी मौलिक क्षमताओं को पहचान सकता है और उन्हें पहचान कर अपने स्वधर्म की खोज भी कर सकता है ।उस स्थिति में वह कालचक्र में अपनी स्थिति को प्रभावित करने वाले ऊर्जा-प्रवाहों के क्रम को पहचान कर ऐसे अचूक साधना विधान को अपना सकता है, जिससे कालक्रम के अनुसार परिवर्तित होने वाले ऊर्जा-प्रवाहों के क्रम से उसे क्षति न पहुँचे।ज्योतिष के ज्ञान का यही विशेष महत्व है ।

महादशाओं ,अंतर्दशाओं एवं प्रत्यंतरदशाओं में ग्रहों के मंत्र, दान की विधियों, मणियों, औषधियों का प्रयोग करके ग्रहों की दशाओं के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है और जीवन में सफलता अर्जित की जा सकती है ।ज्योतिष ज्ञान की अनभिज्ञता होने पर भी गायत्री मंत्र एवं महामृत्युंजय मंत्र की निरंतर उपासना व्यक्ति को जीवन के शिखर पर पहुँचा कर रहती है।

यदि हम ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान नहीं समझ सकते तो गायत्री मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र की निरंतर उपासना से अपने जीवन को श्रेष्ठ
बना सकते हैं ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।

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