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Saturday, May 9, 2020

श्रावणी पूर्णिमा, रक्षाबंधन , रक्षाबंधन का इतिहास, रक्षाबंधन का आधुनिक रूप

             ●●● श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन ●●●
रक्षाबंधन अर्थात रक्षा के लिए बँध जाना।रक्षाबंधन भाई और बहन के मध्य एक अटूट विश्वास का प्रतीक है ।इसका वास्तविक अर्थ स्नेह है।रक्षाबंधन पर्व से जुड़े कई आख्यान हैं ।रक्षाबंधन केवल एक सूत्र का नाम नहीं, बल्कि इसका एक प्रतीक भी है , जो एक उत्तरदायित्व से बँधा हुआ है ।जिसमें सम्मान भी है और जिम्मेदारी भी।

            ●●● रक्षाबंधन का इतिहास ●●●

मान्यता है कि देवासुर संग्राम में जब देवता पराजित होने लगे , तो देवगुरु बृहस्पति ने आक के रेशों का धागा बनाकर इंद्र की कलाई पर बाँध दिया था।यह रक्षाकवच वरदान साबित हुआ।इस प्रकार मानव संस्कृति में प्रथम रक्षासूत्र बाँधने वाले वृहस्पति देवगुरु के पद पर प्रतिष्ठित हुए ।इस घटना से रक्षासूत्र बाँधने का प्रचलन शुरु हुआ। एक अन्य कथा के अनुसार वामन ने राजा बलि को इसी दिन रक्षासूत्र बाँधकर दक्षिणा ली थी।

रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है , जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है ।वस्तुतः रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी , जो सगी नहीं थीं ।इसलिए इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्यौहार की शुरुआत 6,000 साल पहले हुई-- ऐसा माना जाता है ।इसके कई साक्ष्य हैं ।

रक्षाबंधन का साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ का भी है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुसलिमों के बीच संघर्ष चल रहा था , तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूँ को राखी भेजी थी।तब हुमायूँ ने रानी कर्णावती की रक्षा करके उन्हें अपनी बहन का दरजा दिया था।

                                      एक बार भगवान कृष्ण पांडवों के साथ पतंग उड़ा रहे थे ।उस समय धागे से कृष्ण की उँगली कट गई ।तब उँगली से निकले खून को रोकने के लिए द्रोपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर कृष्ण की उँगली पर बाँध दी थी।द्रोपदी के इस प्रेम से भगवान इतने भावुक हुए और द्रोपदी को जीवन- भर सुरक्षा का वचन दिया ।भरी सभा में जब द्रोपदी का वस्त्र हरण हो रहा था तब भगवान ने अपने वचन को निभाते हुए द्रोपदी की साड़ी को अक्षय एवं असीमित कर दिया ।

        ●●● रक्षाबंधन का आधुनिक रूप ●●●

आधुनिक युग में रक्षाबंधन एक पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
इस दिन बहनें भाई की कलाई में धागा ( राखी ) बाँधती हैं और भाई अपनी-अपनी बहनों को उपहार भेंट करते हैं ।घर-घर पकवान बनाए जाते हैं ।रक्षाबंधन के एक महीने पहले से ही बाजारों में तरह- तरह की सुन्दर राखियाँ मिलने लगती हैं ।आज तकनीकी युग में इंटरनेट के माध्यम से भी राखियाँ भेजने का प्रचलन हो गया है। विवाह के बाद बहनें दूर होती हैं तो डाक के द्वारा अपने-अपने भाइयों को राखी भेजती हैं । अब तकनीकी युग में वीडियो काॅल करके भी भाई- बहन एक-दूसरे को बधाई दे देते हैं ।

सनातन संस्कृति में सबसे पहले मंदिर में भगवान को रक्षासूत्र समर्पित करते हैं । वर्तमान में यह पर्व केवल प्रतीतात्मक बनकर रह गया है इसका अर्थ और उद्देश्य कहीं खो गए हैं ।इतना अवश्य है कि इस बहाने लोग एक-दूसरे से मिल लेते हैं । आज व्यस्तता के युग में लोग एक ही शहर में रहते हुए भी मिल नहीं पाते ।ऐसे में रक्षाबंधन परिवार को समीप लाने और संबंधों को मजबूत करने का काम करता है।

पुराने समय में और आज के समय में भाई- बहन के रिश्तों की परिभाषा में परिवर्तन हो गया है ।पुराने समय में -- जब बहन के सुख-दुःख में भाई ही सहायता करता था , लेकिन अब बहनें भी भाइयों की मदद करने को तत्पर रहती हैं ।आज समाज में लड़के और लड़की को बराबरी का सम्मान प्राप्त है ।उनकी परिवरिश में अब कोई अन्तर नहीं किया जा रहा ।वे कंधे-से-कंधा मिलाकर चलना जानती हैं ।अब यह रिश्ता बराबरी का हो गया है ।

आज दिखावे का युग है , भावनाओं को भी अब मँहगे उपहारों में नापा जाने लगा है ।फिर भी रस्मों -रिवाजों से बँधा राखी का पर्व - स्नेह के बंधन से संसार को निरंतर जोड़े हुए है।यह निश्चित रूप से लड़कियों के प्रति समाज के बदलते नजरिए को दर्शाता है।हमारे पारंपरिक मूल्य अब भी जीवित हैं ।

       " राखी धागों का त्यौहार, राखी धागों का त्यौहार 
         इस धागे में बँधा हुआ है, भाई -बहन का प्यार "

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।

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