गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्रीरामचरितमानस के अनुसार----
छिति जल पावक गगन समीरा।पंच रचित अति अधम सरीरा।।
अर्थात् पृथ्वी, जल , अग्नि, आकाश और वायु-- इन पाँच तत्वों से यह शरीर रचा गया है।हमारी प्रकृति व पर्यावरण में भी ,ये पाँच तत्व मुख्य रूप से घुले हुए हैं ।यदि इन तत्वों में प्रदूषण होता है तो इससे न केवल हमारा पर्यावरण दूषित होता है , बल्कि हमारे शरीर व मन भी अस्वस्थ बनते हैं ।
प्रकृति में घुले हुए ये पंचतत्व आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं ।इनमें से किसी भी तत्व में आया संतुलन अथवा असंतुलन दूसरे तत्व को प्रभावित करता है।किसी भी तत्व में प्रदूषण व्याप्त होने पर वह अन्य दूसरे तत्व को प्रभावित करता है।ठीक इसी प्रकार यदि हमारे शरीर में पंचतत्वों में से किसी भी तत्व में कमी या वृद्धि होती है तो उससे संबंधित रोग शरीर में पनप जाते हैं।
●●●पंचतत्वों के असंतुलन के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव ●●●
शरीर में वायु तत्व की अधिकता से वातरोग पनपते हैं व वायु तत्व के असंतुलन से शरीर की क्रियाविधि में गड़बड़ी पैदा होती है।अग्नि तत्व की अधिकता से अम्लता या एसिडिटी होती है व अग्नि तत्व की कमी से मंदाग्नि होने से भोजन ठीक से नहीं पचता।पृथ्वी तत्व की अधिकता से मोटापा हो जाता है और पृथ्वी तत्व की कमी से शरीर दुर्बल हो जाता है ।
जल तत्व की अधिकता से शरीर के किन्हीं अंगों में पानी भर जाता है व जल तत्व की कमी से शरीर में सूखापन प्रतीत होता है ।आकाश तत्व की अधिकता से शरीर के अंगों में दर्द की शिकायत हो सकती है व आकाश तत्व की कमी से बहरापन एवं हड्डियों के जोड़ के लचीलेपन में कमी आ सकती है।
इस तरह पंचतत्वों में संतुलन बहुत जरूरी है, चाहे वह शरीर की बात हो या हमारे पर्यावरण की।वर्तमान समय की यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि हमारा शरीर व हमारा पर्यावरण --- दोनों ही इस समय प्रदूषण की मार को झेल रहे हैं, जिसके कारण प्रकृति व पर्यावरण में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं ।
●●● पंचतत्वों के असंतुलन से पर्यावरण प्रदूषित ●●●
इस समय पृथ्वी पर सबसे बड़ा संकट जलसंकट है, जलसंकट के कारण भूगर्भ का जलस्तर बहुत कम हो गया है, इसके साथ ही वर्षा ऋतु के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में नदी-तालाबों व झरनों में भी जल का स्तर बहुत कम हो गया है ।वर्तमान में अधिकांश नदियों का जल भी प्रदूषित हो गया है ।ज्यादातर कुँए , तालाब आदि सूख गए हैं ।
जलसंकट के साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का जो तापमान बढ़ रहा है , उससे ध्रुवों में जमी हुई बरफ धीरे-धीरे पिघल रही है, इससे समुद्र का जलस्तर अगर एक निश्चित मानदंड से बढ़ेगा, तो उससे समुद्रतट पर बसे हुए शहर जलमग्न हो जाएँगे ।
वातावरण में ऊष्मा बढ़ने से ग्रीष्म ऋतु में प्रायः जंगलों में आग लग जाती है , जो अत्यंत भयंकर होती है जिससे कि हमारी बहुत सारी वनस्पतियाँ, जीव-जंतु जलकर नष्ट हो जाते हैं ।
पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई से वर्षा ऋतु में मिट्टी का कटाव होने से भूमि बंजर हो रही है, वह वर्षा ऋतु के जल को अवशोषित नहीं कर पा रही है ।पेड़-पौधों की कमी होने से समय पर बारिश नहीं हो रही है ; क्योंकि पेड़-पौधे ही बादलों को बारिश करने के लिए आकर्षित करते हैं ।इसके साथ ही हरियाली में कमी होने से वातावरण में प्रदूषक तत्वों की वृद्धि हो रही है ; क्योंकि पेड़-पौधों
की हरियाली वातावरण के प्रदूषक तत्वों को सोख लेती हैं और उसे स्वच्छ बनाती हैं ।
● जल तत्व के संरक्षण से अन्य सभी तत्वों में संतुलन संभव ●
जल ही जीवन है ।इस तरह यदि हमें अपने पर्यावरण को बचाना है, तो इसकी शुरुआत जल तत्व से करनी होगी ; क्योंकि यदि हमारे पर्यावरण में जल नहीं होगा तो जीवन भी नहीं बचेगा ।किसी भी ग्रह में जीवन की खोज करने के लिए वहाँ सबसे पहले जलतत्व को खोजा जाता है।यदि वहाँ जल तत्व की मौजूदगी है , तो वहाँ जीवन संभव होने के आसार होते हैं ।
जल तत्व के कारण ही हमारी विभिन्न संस्कृतियाँ व सभ्यताएँ प्रायः नदियों के किनारे ही पुष्वित-पल्लवित हुईं और इसीलिए यदि हमें अपने पर्यावरण को बचाना है, उसे सुरक्षित करने में योगदान देना है , तो सबसे पहले हमें अपनी प्रकृति व पर्यावरण में मौजूद जल तत्व को संरक्षित करना होगा और स्वच्छ करना होगा।
जल तत्व से ही भूमि में नमी आएगी, इससे भूमि में वृक्ष-वनस्पतियाँ पनपेंगी , हरियाली बढ़ेगी ।हरियाली बढ़ने से वातावरण में निरंतर बढ़ती हुई ऊष्मा व अन्य प्रदूषक तत्व पेड़-पौधों में अवशोषित होंगे,पेड़-पौधों की पत्तियों के भूमि पर गिरने से व खाद-पानी से पृथ्वी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी, वातावरण में हरियाली बढ़ने से व जल तत्व के संतुलन से अग्नि व आकाश तत्व भी संतुलित हो जाएँगे।
इस तरह पर्यावरण की रक्षा हेतु सभी तत्वों में संतुलन आवश्यक है और सभी तत्वों में संतुलन बनाने के लिए सबसे पहले जल तत्व को बचाना होगा , प्रकृति के जल तत्व को बचाने की ओर अधिक ध्यान देना होगा । जल तत्व से पृथ्वी में हरियाली बढ़ेगी और हरियाली बढ़ने से अन्य तत्व स्वयं ही संतुलित हो जाएँगे , बस , हमें इसमें अपना सहयोग देना होगा।
पेड़-पौधों की यदि सुरक्षा की जाए तो वे भी हमारे जीवन को सुरक्षित करेंगे व हमें स्वस्थ रखने में अपना सहयोग देंगे ।इस तरह पंचतत्वों का संतुलन ही पर्यावरण को संतुलित व मानव स्वास्थ्य की रक्षा का कार्य संपन्न कर सकता है ।
पंचतत्वों में संतुलन आवश्यक है।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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