सूर्य नमस्कार संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक विशिष्ट यौगिक अभ्यास है , जिसमें बारह आसनों का समावेश है , साथ ही श्वसन प्रक्रिया एवं मंत्र विज्ञान भी इसके साथ जुड़ा है।सूर्य नमस्कार में आसन, प्राणायाम और मंत्रयोग तीनों ही सम्मिलित हैं।
इसका न्यूनतम बीस मिनट का अभ्यास भी संपूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाला माना गया है ।
भारतीय योगाचार्यों के अनुसार- सूर्य नमस्कार स्वयं में एक पूर्ण यौगिक अभ्यास है।मात्र सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से व्यक्ति सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है।इस यौगिक अभ्यास को करने में समय भी कम लगता है और इस अभ्यास की प्रक्रिया भी सरल है।इससे शरीर व मन तो स्वस्थ बनते ही हैं, साथ ही व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है।
वैज्ञानिकों की दृष्टि में सूर्य हमारी पृथ्वी के लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है ।प्रातःकाल सूर्य नमस्कार करने से सूर्य की किरणें प्रचुर मात्रा में शरीर में प्रवेश करती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायक हैं ।योगशास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि सूर्य नमस्कार मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।इसके नियमित अभ्यास से मस्तिष्क में एक प्रकार की शक्ति आती है , जो मनुष्य को बुद्धिमान बना देती है तथा मनुष्य अपने तनाव , चिंता , द्वंदों का निराकरण करने में सक्षम हो जाता है ।
सूर्य नमस्कार से मनुष्य की सुप्त क्षमताओं का विकास होता है साथ ही अनेक रोगों के निवारण में भी सहायता मिलती है ।'सूर्य नमस्कार' मन की स्थिरता व आत्मनियंत्रण अथवा आधुनिक जीवन शैली से उत्पन्न तनाव से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होता है।वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य नमस्कार में आसनों से शारीरिक स्तर पर, श्वसन से प्राणिक स्तर पर तथा मंत्र ( बीज मंत्रों) से सूक्ष्म सुप्त ग्रन्थियों, उपत्यिकाओं , चक्रों पर प्रभाव पड़ता है।
●●● सूर्य नमस्कार के तीन आवश्यक अंग ●●●
सूर्य नमस्कार के तीन आवश्यक मुख्य अंग हैं--- (1) आसन, (2) श्वसन , (3 ) मंत्र ।
● आसन --- सूर्य नमस्कार में बारह आसनों को सम्मिलित किया गया है, जिनका संबंध सूर्य की खगोलीय यात्रा में पड़ने वाली बारह राशियों से बताया गया है ।इन बारह आसनों के क्रमशः नाम हैं----
प्रणामासन , हस्तोत्थानासन , पादहस्तासन , अश्वसंचालनासन ,
पर्वतासन, अष्टांगासन , भुजंगासन , पर्वतासन , अश्वसंचालनासन,
पादहस्तासन, हस्तोत्थानासन, प्रणामासन ।
● श्वसन --- सूर्य नमस्कार की समस्त गतिविधियाँ श्वसन प्रक्रिया के नियंत्रण के साथ संपन्न की जाती हैं ।प्रत्येक आसन का संबंध पूरक, रेचक, और कुंभक में से किसी एक के साथ निर्धारित है।
● मंत्र--- सूर्य नमस्कार के बारह आसनों में प्रत्येक के साथ एक बीजाक्षर युक्त मंत्र संबद्ध है ।आसनों की स्थिति के अनुरूप ही अभ्यास कर्ता को मंत्रों का उच्चारण एवं मंत्र भावना को आत्मसात् करना होता है । योगाचार्य इन मंत्रों की विवेचना के साथ ही इनकी प्रक्रिया एवं लाभों को भी समझाते हैं ।
अनेक प्रसिद्ध योगकेन्द्रों में सूर्य नमस्कार पर महत्वपूर्ण शोध कार्य किए जाते हैं ।सूर्य नमस्कार के रूप में योग की विशिष्ट तकनीक के द्वारा शरीर के साथ-साथ मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की वृद्धि की विधियों पर शोध अध्ययन किया जाता है ।
अतः यह कहा जा सकता है कि सूर्य नमस्कार एक संपूर्ण यौगिक अभ्यास है।जो नियमित सूर्य नमस्कार का अभ्यास करते हैं वे इस यौगिक प्रक्रिया से अवश्य ही लाभान्वित होते हैं ।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ सूर्याय नमः, ॐ सूर्याय नमः
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
बहुत बहुत बढ़िया पवित्रा जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन
Deleteजय श्री कृष्ण
अच्छी जानकारी आदरणीया 🙏
ReplyDeleteआपको सादर प्रणाम
सादर अभिवादन
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
हर थोड़े दिन में पढ़ लो और अपने मन को मजबूत कर लो 🙂
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