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Thursday, April 30, 2020

डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जीवन परिचय,विद्यार्थी जीवन, अध्यापन काल , भारत के राष्ट्रपति, महान दार्शनिक, उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ

  ●●● डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय ●●●
डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को चेन्नई से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक गाँव तिरुत्तणी में एक सामान्य स्थितियों वाले विद्याव्यसनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था ।उनके पिता वीरस्वामी उय्या पौरोहित्य कर्म करते थे।जिस सर्वपल्ली शब्द का उपयोग उनके नाम से पहले किया जाता है-- यह गाँव ( सर्वपल्ली) वास्तव में उनके पूर्वजों का गाँव है , परन्तु राधाकृष्णन का जन्म तिरुत्तणी में हुआ था।

       यदि राधाकृष्णन की प्रतिभा और संस्कारों पर दृष्टिपात करें तो यह बोध सहज ही होने लगता है कि उनमें धर्मानुरागता और ईश्वरानुराग बचपन में ही पैदा हो गया था और इसके लिए उनके परिवार का वातावरण का योगदान था ।उनमें प्रारम्भ से ही यह गुण पैदा हो गया था कि वे अज्ञात शत्रु थे अर्थात उनके मन में किसी के प्रति वैर-भाव जन्मा ही नहीं था।न राग , न रोष , न द्वेष ।

       ●●● राधाकृष्णन का विद्यार्थी जीवन●●●

                                उनकी जो शिक्षा हुई उसमें भी समभाव का स्वर गुंजित था।गाँव के स्कूल से लेकर ईसाई मिशनरियों की पाठशालाओं में अध्ययन करने के बावजूद वे सबसे कुछ न कुछ सीखते रहते थे।उन्होंने अपनी शिक्षा केवल भारतीय पाठशालाओं और विश्वविद्यालयों में ही पूरी की ।इस तरह वे समग्र रूप से भारतीयता के पर्याय बने रहे ।अपने छात्र जीवन में मिशन काॅलेज में पढ़ाई करते समय ही उनको बाइबिल को पढ़ने का अवसर मिला था।

डाॅ राधाकृष्णन ने एम.ए. करने के पूर्व वेल्लूर में स्कूली शिक्षा पाई और एम. ए. करने तक उनको कठिनाई के दिनों को भी देखना पड़ा था।शिक्षा प्राप्त करने के दिनों में ही उनमें भारतीय दर्शन के प्रति गहरी आस्था ने जन्म लिया और इसके लिए वे स्वामी विवेकानंद के भाषणों को प्रेरणा का सूत्र मानते थे। वे लोकमान्य तिलक से भी बहुत प्रभावित थे।वे 1911 में एम. ए. हो गए थे।

राधाकृष्णन द्वारा लिखे हुए निबन्ध से प्रभावित होकर उनके एक अध्यापक ए. जी. हाॅग ने टिप्पणी की -- कि एम. ए. की परीक्षा के लिए इस विद्यार्थी ने जो निबंध लिखा है -- वह इस बात का प्रमाण है कि वह मुख्य-मुख्य दार्शनिक समस्याओं को भली भाँति समझता है और उनको उसने हृदयंगम कर लिया है ।वह विकट और पेचीदा तर्कों को बहुत अच्छी तरह से प्रकट करने की योग्यता और क्षमता रखता है ।इसके अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा पर उसका विलक्षण प्रभुत्व है।

 ●●● डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का अध्यापन काल ●●●
यह कितना आश्चर्यजनक तथ्य है कि मात्र बीस साल की आयु में वे मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शन और तर्कशास्त्र के सहायक प्राध्यापक बन गए ।उनका जन्मदिवस 5 सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में इसलिए मनाया जाता है ; क्योंकि उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा वह रहा है , जब उन्होंने एक शिक्षाविद् के रूप में शिक्षाएँ प्रदान कीं। एक संवेदनशील शिक्षक के रूप में वे अपने समय के साक्षी रहे।

1931 में वे जब आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति बने तब तक उनकी ख्याति विश्वव्यापी हो चुकी थी। उनकी प्रतिभा को पहचान कर कोलकाता विश्वविद्यालय ने उन्हें प्रोफेसर नियुक्त किया था और इस विश्वविद्यालय के कारण उनकी प्रसिद्धि में अभूतपूर्व वृद्धि हुई थी।इस विश्वविद्यालय ने उन्हें सन् 1936 में ब्रिटिश साम्राज्य के विश्वविद्यालयों के एक सम्मेलन में अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा ।अपने जीवन के प्रारंभिक काल से ही उन्हें चमत्कारिक ख्याति और सम्मान मिलने लगा था जो उनकी जन्मजात प्रतिभा का प्रमाण कहा जाएगा

काशी हिंदू विश्वविद्यालय का उनका कार्यकाल भी अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है ।एक महान शिक्षाशास्त्री होने के साथ-साथ दर्शन शास्त्र के मनीषी की यह प्रतिभा विलक्षणता का समुच्चय कही जाएगी। अपने अध्यापन काल में वे हमेशा छात्रों की सहायता करते रहे , इसलिए छात्र उनके प्रति असीम श्रद्धा रखते थे। शिक्षकों के हित की चिन्ता भी उन्हें सदा बनी रहती थी।

            ●●● भारत के  राष्ट्रपति ●●●

वे 12 मई , 1962 को विश्व इस सबसे बड़े प्रजातांत्रिक राष्ट्र के राष्ट्रपति बने ।इस सर्वोच्च पद पर उनका प्रतिष्ठित होना इसलिए भी उल्लेखनीय है ; क्योंकि वे एक दार्शनिक थे और अध्यात्म के प्रति गहरी रुचि रखने वाले प्रतिभाशाली व्यक्ति थे।उन्होंने अनेक गौरवशाली पदों पर रहकर अपनी सूझ-बूझ और विद्वता का परिचय दिया था।सन् 1951 में वे मास्को में न केवल भारत के राजदूत थे , वरन् ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राच्य धर्मों और आचार संहिता के प्रोफेसर भी थे।

राजनीति, धर्म, संस्कृति, अध्यात्म, दर्शन,समाज शास्त्र और शिक्षा के अद्भुत ज्ञानकोष ने उनकी प्रतिभा को विश्व में प्रसारित किया था।उनकी राजनीतिक सोच में भी जीवनदर्शन और अहिंसा की अनुगूँज सुनाई देती है ।
    
 ●●● डाॅ राधाकृष्णन महान भारतीय दर्शनशास्त्री ●●●

वास्तव में डाॅ राधाकृष्णन भारतीय परंपरा के ही नहीं, भारतीयता के प्रतीक और पर्याय भी थे।वे जब-जब विदेशियों के बीच रहे या उनसे वार्तालाप किया , तो उनके वार्तालापों में अपना देश, उसकी संस्कृति-संस्कार , उसका सम्मान उनके लिए सर्वोपरि रहा ।अपने राष्ट्रपतिकाल में उन्होंने अनेक देशों की यात्रा की , लेकिन प्रत्येक यात्रा में भारतीय संस्कार ही उनके सहचर रहे।वे संस्कृति की अनेक विशेषताओं को स्वीकारते हुए भी उन्हें भारतीय दर्शन का अंग मानते थे।

उनके विभिन्न भाषणों और उनकी पुस्तकों को पढ़ने से लगता है कि डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन संस्कृति और राष्ट्रीयता के सबसे बड़े समर्थक थे।उन्हें गर्व होता था कि वे इस पवित्र और ऋषि-मुनियों की धरती पर जन्मे।लोकतंत्र के प्रति उनकी गहरी निष्ठा थी ।पाश्चात्य संस्कृति और संस्कार से उनका मानस कभी प्रभावित नहीं रहा।वे जब अपने देश में रहे तब भी और बाहर गए तब भी ; उनकी वेषभूषा में कोई अंतर नहीं आया।वे अनजाने लोगों, सत्ताधारियों और राजनेताओं के बीच हुए तब भी वे केवल भारतीय ही रहे उनका हर विचार भारतीय जीवनदर्शन की आहट देता रहा।

डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन के अनेक पक्ष रहे हैं ।उनके जैसी प्रतिभाएँ बहुत कम जन्म लेती हैं ।भारतीय मनीषा के अनेक चमत्कार उनकी बौद्धिक ऊर्जा से झरते थे। एक बार उन्होंने अंग्रेजी सभ्यता को ध्यान में रखकर कहा कि आपने हमें धरती पर तेज दौड़ना , हवा में काफी ऊँचाई तक उड़ना और पानी पर तैरना तो सिखा दिया , लेकिन मनुष्यों की तरह रहना आपको नहीं आया।

एक बार जब वे अमेरिका की यात्रा पर थे तो उन्होंने पत्रकारों से कहा कि भारत में विभिन्न धार्मिक विश्वासों, जातियों और आर्थिक स्तरों के 44 करोड़ लोगों ने पिछली दो शताब्दियों के मध्य राष्ट्रीय सामंजस्य और लोकतंत्रीय भावना उत्पन्न करने में अद्भुत सफलता हासिल की है।इसे देखकर निराशावादी भविष्यवक्ताओं को दाँतों तले उँगली दबानी पड़ी है।अनेक देशों के दर्शन शास्त्री भी उनको महान दार्शनिक और प्राच्य धर्मों की आचार संहिता का गहन अध्येता मानते रहे।

    ●●● डाॅ राधाकृष्णन की महत्वपूर्ण कृतियाँ ●●●

कम आयु में ही उनके दर्शन ने बड़ी-बड़ी प्रतिभाओं और विद्वानों को प्रभावित किया ।32 वर्ष की आयु में उनके दो महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ ।ये ग्रन्थ हैं-- दि रेन ऑफ रिलीजन इन कांटेपरेरी फिलाॅसफी और दी फिलाॅसफी ऑफ रवीन्द्रनाथ।उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे प्राचीन ग्रन्थों-- उपनिषद्, दर्शनशास्त्र और अन्य आध्यात्मिक ग्रन्थों के अध्येता थे।

डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जिन महत्वपूर्ण कृतियों का अवदान साहित्य को दिया उनमें भी भारत को देखा जा सकता है, जैसे---- 
दि हिंदू व्यू ऑफ लाइफ , दि हार्ट ऑफ हिन्दुस्तान, दि गौतम बुद्ध ,
दि फिलाॅसफी ऑफ रवीन्द्रनाथ,   महात्मा गाँधी, भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र, इंडिया एंड चाइना, रिलीजन एंड सोसायटी , ग्रेट इंडियन्स , दि धम्मपद , दि प्रिंसिपल ऑफ उपनिषद्, आदि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों में उनका सांस्कृतिक प्रेम , राष्ट्रीयता और विभिन्न धर्मों के प्रति सम्मान की झलक मिलती है।

उनकी भावनाएँ जितनी अपने धर्म के लिए उदात्त और उदार रहीं, उतना ही सम्मान वे अन्य धर्मों का भी करते रहे ।वास्तव में वे एक ऐसे महापुरुष थे जिनमें हम समूचे मानव समाज , उनके संस्कार, उनके विचार , जीवन दर्शन और उनकी आस्थाओं को देख सकते हैं ।विश्व के सर्वोत्कृष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है , यह कथन ऋषियों की परंपरा में जन्मे डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर सर्वथा चरितार्थ होता है।
         "उनकी दिव्य प्रतिभा को शत्-शत् नमन।"
 
   सादर अभिवादन व धन्यवाद ।

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