अंतर्मुखी होने का अर्थ है-- अपनी वास्तविकता के साथ , अपने वर्तमान के साथ , अपनी संभावनाओं के साथ , अपनी संपूर्णता के साथ होना।
प्रायः लोग अंतर्मुखता को एक अवगुण समझते हैं ; क्योंकि उन्हें अंतर्मुखी होने का वास्तविक अर्थ ही पता नहीं ।लोग अंतर्मुखी होने का मतलब यह समझते हैं कि किसी से बात न करना, अपनी अभिव्यक्ति न देना , शांत व मौन रहना , सामाजिक क्रियाकलापों में भाग न लेना ।जबकि अंतर्मुखी होने का वास्तविक अर्थ है -- अपने साथ होना, और यह तभी संभव है , जब व्यक्ति भीड़ का हिस्सा न हो , भीड़ से दूर एकांत व शान्त हो।
यह सच है कि अंतर्मुखी होकर हम संपूर्ण रूप से एकाग्र हो सकते हैं, अपनी क्षमताओं व शक्तियों का सही आंकलन करके उनका सही उपयोग कर सकते हैं और अपनी अंतश्चेतना का विकास कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए सबसे पहले उपयुक्त मनोभूमि तैयार करना आवश्यक है।बिना उपयुक्त मनोभूमि के एकांत वास व्यर्थ की समस्याओं के विषय में सोचने का माध्यम बन जाएगा और उसके कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाएँगे।
हमें धीरे-धीरे एकांत वास का अभ्यास करना चाहिए और प्रारंभ में दिन के कुछ मिनटों से बढ़ाकर अपनी क्षमता के अनुसार उसे एक निर्धारित अवधि तक ले जाना चाहिए ।अवधि बढ़ाने के साथ एकांत वास में अंतर्मुखी चिंतन को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि
उस समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सके ।
जब व्यक्ति अपनी संपूर्णता के साथ होता है और इसके आधार पर अपने लक्ष्य का निर्धारण करता है, अपनी समस्याओं का समाधान ढूँढता है तो इसके परिणाम चमत्कारी होते हैं ।जब व्यक्ति एकांत में शान्त होता है तो वह अपनी संपूर्णता के साथ होता है।तब उसमें सृजनात्मक शक्ति का उदय होता है।
●●●सृजनात्मक शक्ति क्या है ?●●●
सृजनात्मक शक्ति वह है , जो नए समाधान देने में सक्षम है ।यही कारण है कि श्रेष्ठ व महान आत्माएँ अपने जीवन का अधिकांश समय एकांत में व्यतीत करती हैं ।जीवन में सफल होना है, कुछ श्रेष्ठ व कुछ नया करना है तो अंतर्मुखी होना होगा अर्थात अपने साथ, अपने वर्तमान के साथ, अपनी वास्तविकता के साथ, अपनी संपूर्णता के साथ होना होगा और इसके लिए आवश्यकता है एकांत व शान्ति की।
सामान्य जीवन से कुछ अलग कुछ देर अपने साथ समय बिताना अद्भुत एहसासों से भरा होता है।प्रतिदिन कुछ समय एकांत में बिताने से हमारा संपर्क हमारी उन शक्तियों से होता है ,जो हमें सफलता के नजदीक ले जाती हैं ।व्यक्ति जैसे ही आधुनिक संसार के बंधनों से बाहर निकलकर प्रकृति में हरियाली के बीच कुछ समय गुजारना शुरू करता है , मस्तिष्क सामान्य विचारों की बेड़ियों से मुक्त होने लगता है व उसमें रचनात्मकता जन्म लेने लगती है।
●●● एकांत के लाभों के पीछे छिपा विज्ञान ●●●
एकांत में रहने के लाभों के पीछे छिपा विज्ञान बड़ा ही विलक्षण है ।एकांत स्व-आलोचना करने वाले मस्तिष्क को शान्त कर देता है और नैसर्गिक प्रतिभा के अब तक के दबे हिस्सों को सक्रिय कर देता है ।इसे अंग्रेजी में " ट्रांजिएंट हाइपोफ्रंटैलिटी " कहते हैं ।इस तरह व्यक्ति जीवन की चुनौतियों के लिए सही मायने में तैयार हो जाता है ।
जब कोई व्यक्ति एकांत में होता है, तो उसके मस्तिष्क की बीटा तरंगें धीमी होकर अल्फा में बदल जाती हैं ।एकांत पाते ही जब ऐसा होता है , तो स्व-आलोचना , चिंता, द्वंद आदि के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क का हिस्सा निष्क्रिय पड़ने लगता है ।इसके आगे की प्रक्रिया में ही एकांत का अभ्यास करने का लाभ छिपा है।
एकांत, शांत व प्रसन्न मनःस्थिति की अवस्था में व्यक्ति की न्यूरोकेमिस्ट्री भी बदल जाती है ।ऐसी अवस्था में प्रसन्नता, आनंद और चेतना जगाने वाले न्यूरोकेमिकल तेजी से बनने लग जाते हैं और नए रचनात्मक विचार आने शुरू हो जाते हैं; रचनात्मकता बढ़ने लगती है ।ऐसी-ऐसी समस्याओं के समाधान मिलते हैं; जिनके समाधान निकालना साधारणतया संभव नहीं हो पाता है ।इसलिए ऋषियों का यह कथन है कि शांत व प्रसन्न मनःस्थिति में दिव्य चेतना अवतरित होती है ।
आज के समय में छोटे परिवार होते हैं, काम के सिलसिले में सबको अलग-अलग जाना आना पड़ता है अतः इस कारण से कुछ व्यक्तियों को काफी समय अकेले भी रहना पड़ता है , कभी नकारात्मक विचार भी सताने लगते हैं ।इसलिए ऐसे लोग एकांत के समय को सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहते हुए एकांत में अपनी सृजनात्मक शक्ति का उदय कर सकते हैं ।जीवन को खुशहाल बना सकते हैं ।एकांत में उत्पन्न होने वाले भय से भी बच सकते हैं ।
एकांत के पलों का समुचित उपयोग करके सृजनात्मक शक्ति का उदय करें ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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