एकांत एक वरदान है ।एकांत हमारे मन की प्रकृति के अनुरूप परिभाषित होता है ।एकांत हमें आनंदित भी करता है और डराता भी है।एक साधक एवं योगी के लिए एकांत के पल ध्यान एवं समाधि का सोपान है, एक भक्त के लिए भगवान से मिलन का मधुर अनुभव और एक वैज्ञानिक एवं चिंतक के लिए ये ही शोध एवं विचार के पल हैं परंतु कुछ लोगों के लिए ये पल अकेलेपन के बोझ की तरह हो जाते हैं ।
मन यदि मजबूत हो तो एकांत में ही सर्वश्रेष्ठ कार्य का संपादन किया जा सकता है ।इतिहास गवाह है कि विश्व के श्रेष्ठतम कार्य एकांत में संपन्न हुए हैं, जिस एकांत से लोग डरते हैं, उसी एकांत में महान विचारकों ने आश्चर्यचकित करने वाले आविष्कार एवं अनुसंधान संपन्न किए हैं ।
जीवन को गंभीरता से समझने वाले संत, महात्मा जीवन को ही सर्वोच्च ग्रंथ मानते हैं, जिसके पन्नों में रहस्य- रोमांच के अद्भुत सूत्र समाहित हैं ।जीवन सूत्रों की विवेचना , विश्लेषण एवं व्याख्या लोगों की भीड़ में संभव नहीं, केवल एकांत में ही की जा सकती है।इसीलिये तो कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर ने " एकला चलो रे " का नारा दिया।
स्वामी विवेकानंद ने अकेले रहने का उपदेश देते हूए कहा - कि अकेले रहो ।जो अकेला रहता है, न तो वह दूसरों को परेशान करता है और न दूसरों से परेशान रहता है।जीवन में अकेलेपन को वरदान बनाओ न कि अभिशाप।अतः हमें श्रेष्ठ विचार, पवित्र भाव एवं सदाचरण के द्वारा अकेलेपन को दूर कर उसे बहुमूल्य क्षण में परिवर्तित करना चाहिए ।
लौकिक जगत में किए गए वैज्ञानिक आविष्कार हों अथवा अलौकिक जगत में संपन्न की गई साधनाएँ , ये सभी एकांत के दुर्लभ क्षणों में ही सम्भव हैं ।जिन क्षणों में सामान्य व्यक्ति घबराए और चिंतातुर हो, उन क्षणों को प्रभु का वरदान मानकर उन्हें साधना की अनुभूति में बदल लेने का कार्य महान तपस्वियों द्वारा ही संभव है।
●●● सामान्य मानस एकांत को वरदान कैसे बनाएँ ●●●
मनोविज्ञान भी कहता है कि यदि हम सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहें तो बहुत सी चिन्ताओं और तनाव से बचे रह सकते हैं ; क्योंकि यदि हम खाली बैठे रहने की आदत बना लें तो मन में अक्सर नकारात्मक भाव उत्पन्न होने लगते हैं ।अतः हमें कोशिश करनी चाहिए कि अपने आवश्यक कार्यों को करने के अलावा हमें जो खाली समय मिले उसका सदुपयोग करने की कोशिश करनी चाहिए ।
एकांत को वरदान बनाने के लिए सकारात्मक सोच, रचनात्मक चिंतन एवं सदाचरण की आवश्यकता है।सकारात्मक सोच से हम सदा स्वयं के प्रति सावधान एवं जागरूक बने रहते हैं ।इसके लिए हमें अपनी रुचि के अनुसार किसी भी कार्य में व्यस्त रहने की आदत बनानी चाहिए ।जैसे-- किसी को संगीत में, किसी को चित्रकला में, किसी को लेखन में, किसी को पढ़ने में, किसी को खेल में आदि-आदि अर्थात अकेलेपन से जन्मी समस्याओं से बचने के लिए हमें स्वयं को रचनात्मक एवं अच्छे कार्यों में नियोजित करना चाहिए ।
हमें अपने मन को उस कार्य में व्यस्त रखना चाहिए, जिसे हम पसन्द करें,हमारा मन उसमें रम जाए।हमें अच्छे व रचनात्मक कार्यों की सूची रखनी चाहिए; ताकि मन को कभी अनियंत्रित होने का अवसर न मिले।व्यस्त रहने से हम कुछ नया सृजन कर पाएँगे ।जिससे हमारा मन भी प्रफुल्लित रहेगा।रचनात्मक सृजन से हम जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ भी हासिल कर सकते हैं ।
अपने एकांत के प्रति जागरूक रहने से हम अपने नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में परिवर्तित कर सकते हैं ।यदि हमें स्वाध्याय में रुचि हो तो हमको अपने एकांत के पलों में स्वाध्याय करना चाहिए ।स्वाध्याय मन का स्नान है जिससे नकारात्मक विचार मिटते रहते हैं ।अच्छी पुस्तकें अकेलेपन की सच्ची मित्र होती हैं ।जिनकी मित्रता अच्छी किताबों से हो गई, समझो वे कभी अकेले हो ही नहीं सकते ; क्योंकि उनका मन सदा सद्विचारों से भरा रहता है।
यदि हमारा मन स्वस्थ, सुदृढ़ एवं शान्त होता है तो एकाकीपन हमारा सबसे बड़ा मित्र एवं शुभेच्छु बन जाता है ।जो धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं वे अकेले में हर्षविभोर होकर कीर्तन करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रहते हैं ।योगी, महात्मा एवं संत अपने जीवन में कभी अकेलेपन का एहसास नहीं करते ।वे अकेले हो ही नहीं सकते।
यदि एकांत के क्षणों का सम्यक उपयोग किया जा सके तो उन्हें सामान्य व्यक्ति भी जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में परिवर्तित कर सकते हैं और सदा सकारात्मक चिंतन बनाए रख सकते हैं ।आवश्यक है कि सामान्य मनुष्य भी एकांत के इन बहुमूल्य क्षणों का महत्व समझे और उन्हें सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए प्रयत्नशील हो।
हम अपने समय का सदुपयोग करते हुए, रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रहते हुए एकांत को वरदान बना सकते हैं ।एकांत में व्यस्त रहकर हम स्वयं को बहुत सी समस्याओं से बचा सकते हैं ।
" एकांत को वरदान बना लें "
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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