एकांत और अकेलेपन में बहुत अन्तर होता है।दोनों एक जैसे लगते हैं, पर ऐसा है नहीं ।एकांत और अकेलापन दोनों में ही हम अकेले होते है, परंतु भारी अन्तर है दोनों में ।अकेलापन तब होता है जब हम अपने अकेलेपन से दुखी होते हैं ।हमारा मन उस अकेलेपन से भागने लगता है और अपनों की भीड़ में समा जाना चाहता है।अकेलेपन में एक दुःखद और कष्टप्रद अनुभव होता है।इसके विपरीत एकांत वह है जहाँ हम अकेले होने में प्रसन्न एवं खुश होते हैं ।एकांत हमें शान्ति एवं सुकून प्रदान करता है।एकांत में हमारे जीवन में सुमधुर संगीत फूटता है।
अकेलापन एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की सहज घटना है।सामान्य रूप से व्यक्ति अकेलेपन का अनुभव करता है ; जबकि एकांत योगी का साथी-सहचर है।सामान्य व्यक्ति अकेलेपन से घबराता है और इससे बचने के लिए वह भीड़ की ओर भागता है।उसके लिए अकेलापन किसी दंड से कम नहीं है ; क्योंकि उसका मन अकेलेपन के इस अनुभव को बरदाश्त नहीं कर पाता है।इसके विपरीत योगी को कभी भी अकेलेपन का एहसास नहीं होता है।योगी एकांत में ही अपनी अंतर्यात्रा की शुरुआत करता है, उसकी सभी आंतरिक विभूतियाँ उसे एकांत में ही उपलब्ध होती हैं ।
●●● अकेले पन की समस्याएँ ●●●
सामान्य रूप से अकेलेपन का एहसास हर कोई अपने जीवन में करता है , लेकिन लंबी अवधि तक इसको अनुभव करना अनगिनत समस्याओं को जन्म देता है।अधिक समय तक अकेले पन का अनुभव हमारे मन मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।अकेलापन-- तनाव, चिंता , व्यग्रता और अवसाद का कारण बनता है । ये मनोविकार हमारे समग्र व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं और हमारा व्यक्तित्व कुंठाग्रस्त हो जाता है।
●●● अकेलापन महसूस करने के कारण●●●
अकेलापन महसूस करने के कई कारण होते हैं , जैसे पारिवारिक परेशानी , सामाजिक समस्या, व्यक्तिगत उलझन , अपनों से दूर होना आदि।कई बार तो ऐसा होता है कि व्यक्ति भीड़ में भी स्वयं को अकेला पाता है और भीड़ में भी व्यक्ति किसी कोने में खड़े रहने के लिए विवश हो जाता है।भीड़ में अकेलापन इसलिए होता है ; क्योंकि व्यक्ति लोगों से अर्थपूर्ण संबंध स्थापित नहीं कर पाता, संबंध नहीं बना पाता और सामंजस्य नहीं बैठा पाता।जब व्यक्ति दूसरों से सामंजस्य एवं सहज संबंध बनाने में सक्षम हो जाता है, तो फिर भीड़ में अकेलापन महसूस नहीं करता।
अकेलापन विशुद्ध रूप से मानसिक एवं भावनात्मक समस्या है ।अकेलापन अर्थात अधूरापन एवं खालीपन ।अकेलापन हमें भावनात्मक रूप से अतृप्त करता है ।
●●● अकेलापन दूर करने के उपाय ●●●
हम अकेलापन दूर करने के लिए तरह-तरह के उपाय सोचते हैं ।संगीत सुनते हैं, किसी से मोबाइल पर बात करने लगते हैं या फिर कहीं और व्यस्त रहने की कोशिश करते हैं ।अकेलापन दूर करने के लिए हमें किसी मनपसंद काम में व्यस्त हो जाना चाहिए ।
अकेलेपन का समुचित एवं सहज समाधान है कि हम अपने मन को शान्त एवं भावनाओं को स्थिर करें ।जो अपने मन पर नियंत्रण रखना सीख जाता है और जो अपनी भावनाओं को स्थिर करना समझ जाता है वह कभी भी अकेलेपन का एहसास नहीं करता और एकांत में रमने लगता है।अब उसके लिए एकांत एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बन जाता है ।एकांत में वह अपने जीवन के उद्देश्य एवं अपने लक्ष्य से परिचित होने लगता है।वह अपने जीवन का दिव्य संगीत इसी एकांत में सुन पाता है।
अकेलेपन को एकांत में परिवर्तित करने में कुछ योग-साधनाएँ बड़ी सहायक हो सकती हैं ।जब कभी अकेले हों तो थोड़ी देर ' ॐ' का उच्चारण करके , फिर श्वास को सुनते हुए ध्यान करे।ऐसा करने से धीरे-धीरे आप अपने मन को शान्त रखना व भावनाओं को स्थिर रखना सीख सकते हैं ।यदि आपको पढ़ने का शौक हो तो कुछ अच्छी किताबें पढें ।किताबें अकेलेपन में एक मित्र की तरह साथ देती हैं ।यदि संगीत , चित्रकला या लेखन का शौक हो तो जब भी आप अकेले हों तो इन कलाओं में व्यस्त होने की कोशिश करें ।
●●●अकेलेपन को एकांत में परिवर्तित करने के लाभ●●●
अकेलेपन को सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहते हुए एकांत में परिवर्तित किया जा सकता है , रूपांतरित किया जा सकता है ।जब मन को शान्त एवं भावना को स्थिर किया जाता है तो अकेलापन , एकांत के सरगम में बदलकर एक दिव्य संगीत का निर्माण करता है और संगीत के इस स्वर में अकेलापन बुलबुले के समान विलीन हो जाता है, फिर कहीं भी किसी को खोजने की जरूरत नहीं पड़ती और नही कहीं जाने की आवश्यकता पड़ती, न किसी को बुलाने की और न किसी में अपनेपन की तलाश रहती है।
अकेलेपन में जिसे सोचकर भय उत्पन्न होने लगता है , उससे भागने का मन करता है, वही अकेलापन जब एकांत में रूपांतरित हो जाता है तो जीवन की वास्तविकता से हमारा परिचय होता है कि हमारे अन्दर कितनी अद्भुत एवं आश्चर्यजनक विभूतियाँ भरी पड़ी हैं, कितने रहस्य समाए हुए हैं, कितनी परतें पड़ी हुई हैं, वे सब एकांत में धीरे-धीरे प्रकट होने लगती हैं ।एकांत में अनगिनत रहस्यों से सिमटा हुआ जीवन परत-दर-परत खुलने लगता है और अज्ञात के विविध आयाम प्रकट होने लगते हैं ।
एकांत में ही जीवन की गहराई में प्रवेश पाने का प्रारंभ किया जा सकता है ।जिस प्रकार समुद्र की अपार लहरों की जलधाराओं को देखकर यह कल्पना नहीं की जा सकती कि समुद्र के अंदर बहुमूल्य रत्नराशियाँ होगीं , वेशकीमती वस्तुएँ होंगी, परंतु जो इन लहरों को चीरकर समुद्र के अंदर प्रवेश करता है , उसे वह सब हासिल हो जाता है ।ठीक उसी प्रकार बाहरी जीवन के कोलाहल से दूर एकांत में प्रवेश करने पर अपने अंदर दबी हुई सुप्त क्षमताओं का पता चलता है।यह सब एकांत में ही संभव है।
इसलिए सांसारिक जीवन में ऐसी बहुत सी परिस्थितियाँ आती हैं जब हम अकेलापन अनुभव करते हैं लेकिन हमें अपने इस अकेलेपन से भागने की जरूरत नहीं है, बल्कि आवश्यकता है कि इस अकेलेपन को सहजता से एकांत में परिवर्तित कर दिया जाए ।एकांत में जीवन का सौन्दर्य मुखर उठता है।
हम अकेलेपन और एकांत का अन्तर समझते हुए अपने कुछ अल्प प्रयासों से अकेलेपन को एकांत में परिवर्तित करके महत्वपूर्ण उपलब्धियों के स्वामी बन सकते हैं और अपने जीवन को श्रेष्ठता की ओर अग्रसर कर सकते हैं ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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