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Saturday, April 18, 2020

पृथ्वी के दो ध्रुव , उत्तरी ध्रुव ( आर्कटिक महासागर) , दक्षिणी ध्रुव ( अंटार्कटिका महासागर ), दोनों ध्रुवों में आइसबर्ग

           ●●● पृथ्वी के दो ध्रुव ●●●
                  पृथ्वी के दो सिरे , उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव ऐसे स्थान हैं, जहाँ हमेशा बरफ जमी रहती है , तापमान शून्य से भी नीचे के स्तर पर रहता है ।इन कठिन परिस्थितियों में भी यहाँ विशिष्ट जीव-जन्तु एवं वृक्ष- वनस्पतियों के रूप में जीवन गतिशील है, जिसकी अपनी एक रहस्य-रोमांच भरी सृष्टि है।मानवीय जीवन इन ध्रुवों के आस-पास एक अनूठे ढंग से चल रहा है ।

पृथ्वी के दोनों ध्रुवों में बरफ की एक मोटी परत का होना स्वयं में एक अजूबा है।ध्रुवीय क्षेत्रों में बरफ की टोपी बनने का कारण इन उच्चतर क्षेत्रों पर सूर्य की किरणों का तिरछा गिरना है ; जबकि भूमध्य क्षेत्रों में सूर्य की किरणें सीधी बरसती हैं ।इसलिए ध्रुवों पर तापमान शून्य के निकट बना रहता है और वहाँ सदा बरफ की पर्त बनी रहती है।

        ●●● उत्तरी ध्रुव ( आर्कटिक महासागर) ●●●
                          
उत्तरी ध्रुव की खोज सबसे पहले कमांडर राॅबर्ट पीयरे ने सन् 1909 में की थी । उत्तरी ध्रुव में आर्कटिक महासागर है।उत्तरी ध्रुव बरफ के तैरते टुकड़ों एवं आर्कटिक महा- सागर की बरफ से मिलकर बनता है ।यहाँ सागरीय बरफ का क्षेत्रफल लगभग 90 से 120 लाख वर्ग किलोमीटर तथा बरफ की मोटाई तीन से चार मीटर तक तथा रिज की ऊँचाई 20 मीटर तक रहती है।उत्तरी ध्रुव का न्यूनतम तापमान साइबेरिया के एक गाँव में माइनस 67.8 तक मापा गया था।

  बरफ से ढके होने के कारण आर्कटिक क्षेत्र में वनस्पति कम उगती है और जीव- जन्तु के नाम पर यहाँ सील और ध्रुवीय भालू ही मुख्यतया पाए जाते हैं ।उत्तरी ध्रुव के आस-पास रहने वालों को एस्किमोज कहते हैं ।ये एस्किमोज ध्रुवीय क्षेत्र के चारों ओर ग्रीनलैंड से लेकर पश्चिम में अलास्का और बेरिंग जलडमरू मध्य के पार साइबेरिया के उत्तरी-पूर्वी चुकची प्रायद्वीप क्षेत्र तक निवास करते पाए गए हैं ।

एस्किमोज बरफ की सिल्लियों से बने अर्द्धगोलाकार घर में रहते हैं, इन घरों को इग्लू कहते हैं ।इनका प्रमुख आहार मछलियाँ हैं ।रेंडियर इनका प्रमुख पालतू जानवर है , जिनसे इनकी दूध, घी, मक्खन , मांस , वस्त्र आदि की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं ।ये स्लेज पर यात्रा करते हैं, जिन्हें पोलर कुत्ते खींचते हैं ।रेंडियर का उपयोग भी इन स्लेजों को खींचने में किया जाता है ।
               
               
    ●●● दक्षिणी ध्रुव ( अंटार्कटिका महासागर) ●●●

दक्षिणी ध्रुव में अंटार्कटिका महासागर है ।अंटार्कटिका सागर की परत लगभग 140 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक व्याप्त है और पृथ्वी का 90 प्रतिशत ताजा पानी इसमें मौजूद है।दक्षिणी ध्रुव में 3 किलोमीटर तक की मोटी बरफ की चादर ढकी है ।आर्कटिक और अंटार्कटिक की बरफ में एक मौलिक अंतर है ।उत्तरी ध्रुव में बरफ की परत सागर के ऊपर जमी परत से मिलकर बनती है  ; जबकि दक्षिणी ध्रुव की बरफ जमीन पर जमी गहरी बरफ की राशि से बनती है।

दक्षिणी ध्रुव में सबसे पहला शोध केन्द्र अमेरिका द्वारा 1956- 57 में स्थापित हुआ था ।भारत ने इसकी शुरुआत सन् 1983 में दक्षिण गंगोत्तरी स्टेशन के रूप में की , जो वहाँ की बदलती भौगोलिक परिस्थितियों के बीच आज अस्तित्व में नहीं है।इसके बाद सन् 1989 में 'मैत्री'  एवं सन् 2012 में 'भारती' नाम से दो शोध केन्द्र वहाँ स्थापित हुए और आज भी सक्रिय हैं । 

दक्षिणी ध्रुव का औसत तापमान माइनस 49 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है ।यहाँ पृथ्वी का  मापा गया अभी तक का न्यूनतम तापमान माइनस 89 डिग्री सेंटीग्रेड है।साल में छः मास सूर्य यहाँ चौबीसों घंटे चमकता है , लेकिन इसका तापमान इतना नहीं होता कि खास गरमाहट दे सके ।यहाँ हवा 320 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से बहती रहती हैं।बाकी के छः मास यहाँ अंधकार छाया रहता है ।

               अंटार्कटिका ( दक्षिणी ध्रुव ) में वनस्पति के नाम पर ज्यादातर मोस और लीबरबाॅर्ट पनपती है ।इनके अलावा एल्गी , फफूँद , ब्रायोफाइट्स और लाइकेन भी पाए जाते हैं ।जल के रोटिफर,  क्रिल, नेमाटोड और सप्रिंगटेल जैसे सूक्ष्म जीव यहाँ पाए जाते हैं। सबसे बड़ा जमीनी जन्तु यहाँ 12 मिलीमीटर लंबा मिज बेल्जिका है।कई जलीय जन्तुओं ने अंटार्कटिका को अपना बसेरा बनाया है , जैसे--- सील, नीली व्हेल , शार्क्स और पेंग्विन ।

दक्षिणी ध्रुव की विषम परिस्थितियों में प्राकृतिक रूप में मानवीय जीवन की संभावनाएँ दुष्कर हैं, इसके बाबजूद इसके निकटवर्ती क्षेत्रों में लोग बसे हैं, जिनका अपना एक जोखिमों से भरा रोमांचक संसार है ।यहाँ मानवीय जीवन न के बराबर है ।यहाँ वर्ष में एक ही बार सूर्योदय होता है , जो सितंबर माह में होता है।

जो वैज्ञानिक लोग दक्षिणी ध्रुव में किन्हीं प्रयोग-परीक्षणों के लिए वहाँ जाते हैं, वे ध्रुव की टोपी से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहते हैं ।गर्मियों के मौसम में तो लोग ज्यादा संख्या में जाते हैं, लेकिन ठंड पड़ते ही बहुत सीमित लोग ही विशेष तकनीकी संरक्षण में वहाँ रह पाते हैं ।

        ●●● दोनों  ध्रुवों में आइस बर्ग ●●●

आइसबर्ग ध्रुव क्षेत्रों की एक खास विशेषता हैं ।ये बरफ के भारी पर्वत तुल्य खंड हैं, जिनका थोड़ा सा हिस्सा ही पानी के बाहर दिखता है व अधिकांश हिस्सा पानी में डूबा रहता है ।हर वर्ष ग्लेशियर से टूटकर हजारों आइसबर्ग बनते हैं और पानी के बहाव के संग सैकड़ों मील दूर तक तैरते देखे गए हैं और अंततः सागर में पिघलकर विलीन होते हैं ।अतः इन्हें गरम क्षेत्रों में भी विचरण करते देखा गया है।।हर वर्ष ग्लेशियर से छिटककर बनते ये हिमखंड धरती पर ताजा जल के सबसे बड़े स्रोत के रूप में करोड़ों लोगों की आवश्यकता पूरी करते हैं ।

                              आर्कटिक क्षेत्र के हिमखंड स्पेन जैसे दक्षिणी देशों तक देखे गए हैं ; जब कि अंटार्कटिका के हिमखंड उत्तर में दक्षिण अफ्रीका के तटों तक पहुँचते देखे गए हैं ।अब तक का सबसे बड़ा आइसबर्ग अंटार्कटिका क्षेत्र से छिटककर सन् 2000 में बना आइसबर्ग माना जाता है, जिसकी लंबाई 295 किलोमीटर और चौड़ाई 37 किलोमीटर थी इसका क्षेत्रफल 11000 वर्ग किलोमीटर था , जो जांबिया , कतार या बहमोस के जितना था।

 इस तरह ध्रुवीय जगत की इन विषम परिस्थितियों के बीच भी इनसानी जीवन मनुष्य की अपरिमित क्षमता को दर्शाता है, जिसके बल पर वह किन्हीं भी परिस्थितियों में रह-बस सकता है और इनके रहस्य को अनावृत कर सकता है ।

सचमुच ध्रुव जगत का बड़ा अनूठा संसार है।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।

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