हम सभी का जीवन श्वास की डोर से बँधा हुआ है।जन्म से ही हम अनवरत श्वास लेते और छोड़ते रहते हैं और जीवन भर यह प्रक्रिया चलती रहती है।शरीर व मन का संतुलन प्राण के द्वारा होता है।
श्वास का संतुलन ही प्राणायाम कहलाता है।योग शास्त्रों में प्राणायाम की कई तरह की विधियाँ हैं, जिनके माध्यम से प्राणवायु ग्रहण किया जाता है और इसका आश्चर्यजनक प्रभाव हमारे शरीर में देखने को मिलता है।प्राण हमारे शरीर में विभिन्न केन्द्रों में उपप्राण के रूप में निवास करता है और शरीर की कई गति- विधियों के संचालन में अपनी भूमिका भी निभाता है।
●● श्वास में असंतुलन रोगों का कारण ●●
शारीरिक कष्ट-परेशानी होने पर अथवा मन में विक्षोभ होने पर श्वास की लय में भी व्यतिरेक उत्पन्न हो जाता है ।आजकल अस्वस्थता बहुत बढ़ गई है; क्योंकि आज शरीर, प्राण व मन में संतुलन व सामंजस्य नहीं रहा है।शरीर में ऊर्जाओं के आवर्तन हैं ।ऊर्जा की किरणों को श्वास-प्रकिया समृद्ध बनाती है।आज हमें श्वास लेने का सही तरीका नहीं मालूम है।
प्राणों का संतुलन बनाए रखने के लिए श्वास का सधा रहना बहुत आवश्यक है।जब भी हमारे शरीर में कष्ट होता है तो हमारे श्वास की लय स्वतः ही गड़बड़ा जाती है ।ऐसी स्थिति में हमारा प्राण दूषित हो जाता है और इस प्राण को परिष्कृत करने के लिए व मन के विक्षोभों को दूर करने के लिए श्वास को सँभालना सुधारना जरूरी होता है।इस दृष्टि से देखा जाए तो शरीर , मन व प्राण की डोर श्वास के साथ गहराई से जुड़ी है।
शरीर स्थूल है तो मन सूक्ष्म ।शरीर दृश्य है , पर मन अदृश्य ।इन दोनों में सही तारतम्य न होने के कारण ही शरीर में रोग व मन में शोक होता है तथा प्राण का स्तर प्रदूषित होता है।वर्तमान समय में शारीरिक- मानसिक अस्वस्थता का एक बड़ा कारण शरीर, मन व प्राण में असंतुलन व असामंजस्य है।
योगाचार्य बताते हैं कि हमारी बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ प्राणायाम यानी श्वास साधने से ही ठीक हो सकती हैं ।आज मनुष्य क्रोध , अनिद्रा , मानसिक उद्वेगों आदि विकारों से परेशान है ; क्योंकि उसका अपने श्वास पर नियंत्रण नहीं है।यदि श्वास संतुलित हो जाएगा , तो व्यक्ति की अन्य समस्याएँ भी आसानी से सुलझ जाएँगी।गहरे श्वास के अनेक शारीरिक व मानसिक लाभ भी हैं ।
गहरे श्वास से हम अधिक ऊर्जा या ऑक्सीजन ग्रहण कर पाते हैं ।
●●प्राणायाम विधि द्वारा प्राणों के संतुलन से लाभ●●
जीवन जीने की कला का प्रथम चरण श्वास सही ढंग से लेने के तरीके से तय होना चाहिए ।यदि मनुष्य ने लयबद्ध, तालबद्ध ढंग से श्वास लेना सीख लिया तो उसे शारीरिक और मानसिक, दोनों ही प्रकार के विकार नहीं होंगे।अन्य समस्याएँ भी दूर हो सकती हैं ।जो अपनी श्वास के प्रति सजग रहते हैं, वे स्वयं को बहुत से रोगों से दूर रखते हैं ।
जब मनुष्य श्वास के आने-जाने के प्रति सजग होता है तो न केवल शारीरिक क्रियाएँ संतुलित होती हैं, वरन मनुष्य का मन इधर-उधर भटकने के स्थान पर उस क्षण विशेष के लिए वर्तमान में आबद्ध हो जाता है, जिसके कारण उसके व्यक्तित्व में समग्र रूप से एकाग्रता का समावेश हो जाता है ।
योगियों ने श्वास पर गहन , गंभीर प्रयोग किए और यह निष्कर्ष निकाला कि प्राण को साध लेने पर सब कुछ साधा जा सकता है।प्राण के नियंत्रण द्वारा मन पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है और मन के सध जाने से शरीर स्वतः ही संतुलित हो जाता है।श्वास के हमारे अस्तित्व में इतना अधिक महत्व होने के कारण ही हिंदू, बौद्ध व सूफी आदि अन्य सभी मतों में श्वास को साधने की विधियाँ, आध्यात्मिक प्रकियाओं का अनिवार्य अंग रही है।
●●श्वास के संतुलन के लिए प्राणायाम के मुख्य तीन अंग●●
श्वास के संतुलन के लिए यों तो अनेक विधियाँ प्रचलित हैं, परंतु इसका सबसे सहज व सुलभ तरीका प्राणायाम ही है।प्राणायाम के तीन अंग होते हैं-- पूरक ( श्वास लेना ), कुंभक ( श्वास रोकना ), रेचक (श्वास बाहर निकालना)। इन तीनों में सबसे महत्वपूर्ण क्षण , श्वास के रुकने का क्षण कुंभक है ।कुंभक भी दो प्रकार का होता है --- बाह्य कुंभक ( श्वास को बाहर रोकना ) और अंतः कुंभक ( श्वास को अंदर रोकना )।कुछ दिनों के नियमित अभ्यास से हम बड़ी आसानी से प्राणायाम कर पाते हैं ।जैसे-जैसे हमारे श्वास में संतुलन होने लगता है वैसे-वैसे हमारा मन शान्त होने लगता है।
यह आवश्यक है कि शारीरिक व मानसिक दोनों ही रूप से स्वस्थ रहने के लिए शरीर में स्थित प्राण का परिष्कार किया जाए, उच्च स्तरीय प्राण को ग्रहण किया जाए ।यह प्रक्रिया मंत्र जप, प्राणायाम, उच्च चिंतन व भावमयी पुकार के आधार पर संभव है ।इसके साथ ही शरीर, मन व प्राण इन तीनों में संतुलन सामंजस्य जरूरी है ।ऐसा करके ही हम मानव-जीवन को सही अर्थों में समझ पाएँगे , अपने शरीर, मन और प्राण का सही उपयोग कर पाएँगे, अपनी समस्याओं को सुलझा पाएँगे।
स्वस्थ और शान्त जीवन के लिए स्वास में संतुलन होना अति आवश्यक है ।इसके लिए प्राणायाम की कोई भी विधियाँ अपनाई जा सकती हैं ।जब भी खाली बैठे हों तो अपनी श्वास को सुनने का अभ्यास करें ।आजकल हमारे देश में योग के प्रति जागरूकता बढ़ रही है और लोग श्वास के संतुलन का महत्व भी समझ रहे हैं ।कोई भी यौगिक क्रिया सदा अपनी क्षमता के आधार पर ही करें ।
" प्राणायाम से जीवन सधता, प्राणायाम करें "
'स्वस्थ हमेशा रहें'
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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