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Thursday, April 2, 2020

शंख - भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का महत्व, शंख के प्रकार, शंख स्थापना एवं शंख ध्वनि ,शंख के विभिन्न लाभ

●●●●● भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का महत्व●●●●●
भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है।मंदिरों एवं मांगलिक कार्यों में शंखध्वनि का प्रचलन है।माना जाता है कि शंख का प्रादुर्भाव समुद्रमंथन से हुआ था।समुद्रमंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में शंख भी एक है।विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है।अतः यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है , वहीं लक्ष्मी का वास होता है ।स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है।भगवान विष्णु इसे अपने हाथों में धारण करते हैं ।

शंख निधि का प्रतीक है ।इस मंगल चिन्ह को घर में पूजास्थल पर रखने से स्वयमेव अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है ।धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है ।प्राचीनकाल में प्रत्येक घर में शंख की स्थापना की जाती थी।शंख को देवता का प्रतीक मानकर पूजन करते एवं इसके माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति करते थे।पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना , आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का आयुर्वेदिक व वैज्ञानिक महत्व भी है।शंख की विशिष्ट पूजन पद्धति एवं साधना का विधान भी है।

            <<<<<<<< शंख के प्रकार >>>>>>>>>

                                         शंख की आकृति के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं ।मुख्यतः शंख तीन प्रकार के होते हैं--- दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख, वामावृत्ति शंख।जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है , वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है।जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है , वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बाएँ हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है।

                             मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृत्ति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं ।इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं ।इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख , राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि अनेक प्रकार पाए जाते हैं ।उच्च श्रेणी के शंख कैलास मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह , श्री लंका एवं भारत में पाए जाते हैं ।

महाभारत में सभी योद्धाओं ने युद्घ घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाए थे।श्री मद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय के श्लोक 15 - 19  में इसका वर्णन मिलता है--
श्री कृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन, देवदत्त और भीमसेन ने पौंड्र शंख बजाया ।कुंती -पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय शंख , नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखनाद किया। इसके अलावा काशीराज, शिखंडी , धृष्टद्युम्न , राजा विराट , सात्यिक , राजा द्रुपद , द्रोपदी के पाँचों पुत्रों और अभिमन्यु आदि सभी ने अलग-अलग शंखनाद किया।

       <<<<<<<< शंख स्थापना और शंख ध्वनि >>>>>>>>>>


घर में पूजा वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है ।निर्दोष एवं पवित्र शंख को दीपावली, होली , महाशिवरात्रि, नवरात्र, रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में विशिष्ट कर्मकांड के साथ स्थापित किया जाता है ।विष्णु शंख को दुकान, ऑफिस, फैक्टरी आदि में स्थापित करने पर वहाँ के वास्तुदोष दूर होते हैं तथा व्यवसाय में लाभ होता है।रुद्र , गणेश, भगवती, विष्णु भगवान आदि के अभिषेक के समान शंख का भी गंगाजल, दूध, घी , शहद, गुड़, पंचद्रव्य आदि से अभिषेक किया जाता है ।इसका धूप दीप नैवेद्य से नित्य पूजन करना चाहिए और लाल वस्त्र के आसन में स्थापित करना चाहिए ।

शंखराज सबसे पहले वास्तुदोष दूर करते हैं ।मान्यता है कि शंख में कपिला ( लाल) गाय का दूध भरकर भवन में छिड़काव करने से वास्तुदोष दूर होते हैं ।परिवार के सदस्यों द्वारा आचमन करने से असाध्य रोग एवं दुःख - दुर्भाग्य दूर होते हैं ।

                        शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है । वैदिक अनुष्ठानों में विभिन्न प्रकार के शंख का प्रयोग किया जाता है ।पारद शिवलिंग, पार्थिव शिवलिंग एवं मन्दिरों में शिवलिंगों पर रुद्राभिषेक करते समय शंख ध्वनि की जाती है।आरती में, धार्मिक उत्सव में, हवन-क्रिया में, राज्याभिषेक , गृहप्रवेश, वास्तुशान्ति आदि शुभ-अवसरों पर शंख ध्वनि से लाभ मिलता है ।पितृ तर्पण में शंख की अहम् भूमिका होती है ।

           <<<<<<<<<<शंख के विभिन्न लाभ >>>>>>>>>>

पूजास्थली पर दक्षिणावृत्ति शंख की स्थापना करने एवं पूजा-आराधना करने से माता लक्ष्मी का चिरस्थायी वास होता है।इस शंख की स्थापना के लिए नर-मादा शंख का जोड़ा होना चाहिए ।स्वयं लक्ष्मी माता कहती हैं कि शंख जहाँ होगा वहाँ पर वे भी होंगी।देव प्रतिमा के चरणों में शंख को रखा जाता है।

अन्नपूर्णा शंख की व्यापारी व सामान्य वर्ग द्वारा अन्नभंडार में स्थापना करने से अन्न, धन,लक्ष्मी, वैभव की उपलब्धि होती है।मणिपुष्पक एवं पांचजन्य शंख की स्थापना से भी वास्तुदोषों का निराकरण होता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार शंखध्वनि से वातावरण का परिष्कार होता है ।इसकी ध्वनि के प्रसार-क्षेत्र तक सभी कीटाणुओं का नाश हो जाता है ।इस संदर्भ में अनेक प्रयोग- परीक्षण भी हुए हैं ।पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजाएँ तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं ।दूध का आचमन कर कामधेनु शंख को कान के पास लगाने से " ॐ " की ध्वनि का अनुभव किया जा सकता है ।यह सभी मनोरथों को पूर्ण करता है।

वर्तमान समय में वास्तुदोष के निवारण के लिए जिन चीजों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं ।यह न केवल वास्तुदोषों को दूर करता है बल्कि आरोग्य वृद्धि भी करता है।

आज विज्ञान का युग है इसलिए कभी-कभी हमें यह संदेह होता है कि क्या यह अन्धविश्वास तो नहीं ।लेकिन यह भी सच है कि हमारी वैदिक परम्परा अत्यन्त श्रेष्ठ है।हमारे ऋषि-मुनियों ने पूजा पद्धति में प्रयोग होने वाली सभी वस्तुओं पर शोध की है ।इसलिए हमें संदेह नहीं करनी चाहिए ।

आज भी हम देखते हैं कि हवन और पूजन में शंखध्वनि का प्रचलन है ।घरों में पूजा स्थान पर शंख स्थापित किए ही जाते हैं ।
वैज्ञानिक इन विषयों पर अनुसंधान भी करते रहते हैं ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।




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