मंत्र जप के द्वारा साधक परमेश्वर को पुकारता है।निर्मल चित्त से उठी पुकार एक तरह से परमेश्वर के लिए आमंत्रण बन जाती है और उन्हें आना ही पड़ता है।गज ने भगवान् का हजार बार नाम लिया, तब भगवान् उसे बचाने आए थे।नन्हे ध्रुव ने "ओउम् नमो भगवते वासुदेवाय" इस मन्त्र के जाप से भगवान् के साक्षात् दर्शन किए ।
क्यों न हम भी मंत्रों द्वारा परमेश्वर को पुकारते रहें।
'पुकार सुन लो दया के सागर तुम्हारे चरणों में आ गए हैं'
विज्ञान के विद्यार्थी जानते हैं कि ताप की तरह ही शब्द में भी एक प्रचंड शक्ति है।हमारे ऋषि-मुनियों ने जिन मंत्रों का उच्चारण किया, पहले उन्हें अंतर्मन में देखा, अनुभव किया और फिर उन्हें प्रकट किया, इसलिए वे मंत्रदृष्टा कहे जाते हैं, रचयिता नहीं। मंत्र जप के आधार पर ही ऋषि , मनीषियों, योगियों आदि ने ब्रह्माण्ड की अनंत शक्तियों पर विजय पाई थी।
मंत्र का प्रत्यक्ष रूप ध्वनि है।ध्वनि के क्रमबद्ध, लयबद्ध और वृत्ताकार क्रम से निरंतर एक ही मंत्र के उच्चारण से शब्द- तरंगें वृत्ताकार घूमने लगती हैं।इसके फलस्वरूप उत्पन्न हुए परिणामों को मंत्र का चमत्कार कहा जा सकता है।हमारे मुख से निकला प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कंपन उत्पन्न करता है और इस कंपन से लोगों में अदृश्य प्रेरणाएँ जाग्रत होती हैं ।
किन्हीं शब्द विशेषों को बोल देना ही मात्र 'मंत्र' नहीं है उसमें वाक्शक्ति, चिन्तन तथा प्राण एवं भावशक्ति का समावेश भी अनिवार्य है।
वस्तुतः मंत्र विज्ञान में इन्फ्रासोनिक स्तर की सूक्ष्म ध्वनियाँ काम करती हैं।मंत्र जप से एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय (इलेक्ट्रो मैग्नेटिक) तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं, जो समूचे शरीर में फैल कर अनेक गुना विस्तृत हो जाती हैं।इससे प्राणऊर्जा की क्षमता एवं शक्ति में अभिवृद्धि होती है ।
हम जो कुछ भी बोलते हैं, उसका प्रभाव व्यक्तिगत और समष्टिगत रूप से सारे ब्रह्माण्ड पर पड़ता है।जप से उत्पन्न प्रकंपन, शरीर के सूक्ष्म तंत्रों तथा हार्मोन प्रणाली पर अपना गहरा प्रभाव डालते हैं जिससे उनकी सक्रियता बढ़ जाती है और समुचित मात्रा में हार्मोन का स्राव होने लगता है।
मंत्र का चयन साधक अपनी रुचि और श्रद्धा के अनुसार भी कर सकते हैं या अपने गुरू से भी मंत्र ले सकते हैं ।
प्रणव (ओंकार) का जाप अत्यन्त प्रभावशाली यौगिक अभ्यास है।ओंकार परमात्मा का नाम, मंत्रों का अधिपति है।गायत्री मंत्र व महामृत्युंजय मंत्र भी प्रभावशाली हैं।
मंत्र जप तो बहुत लोग करते हैं लेकिन उसका लाभ व उसमें आनन्द उन्हीं को मिलता है जो मंत्र को अपने अन्दर आत्मसात् कर लेते हैं।
"तेरे नाम का जाप करूँ भगवन
प्रभु ध्यान में मेरे बस जाओ"
मंत्र जप एक विज्ञान इस लेख को पढ़ने वालों को सादर धन्यवाद
अद्भुत अद्वितीय सर्गरभित
ReplyDeleteसादर अभिवादन व धन्यवाद
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण