"शिव की जटा से प्रकट हुई, तेरी निर्मल धारा
धरती माँ को पावन कर, सारे जग को तारा
● गंगा का आध्यात्मिक स्वरूप--
गंगा हमारी संस्कृति का स्रोत हैं तभी तो वे हम सबकी गंगा मैया
हैं ।भारतीय परंपराओं में श्री गंगा का सम्बन्ध देवलोक से है जो प्राणिमात्र के कल्याण हेतु स्वर्ग से धरा पर अवतरित हुई है।
स्कंध पुराण में श्री गंगा को परंब्रह्म का द्रव्य रूप कहा गया है।ब्रह्मवैवर्त पुराण में गंगा को प्रकृति का अंश एवं ब्रह्म पुराण में इनकी उत्पत्ति शिव जी द्वारा कही गई है।
आदिकाल से गंगा के पवित्र आँचल ने एक माँ की तरह , हमारे मूल्यों, हमारी संस्कृति और चेतना को पोषित किया है।भारतीय ऋषियों ने सभी नदियों में गंगा का दर्शन कर सर्वव्यापी रूप में गंगा की महिमा बताई है।अनेक प्रसिद्ध शासकों ने भी गंगा का महत्व स्वीकारा है।
भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक इतिहास में गंगा एक शाश्वत साक्ष्य के समान हैं ।हमारी प्राचीन आर्य सभ्यता का तो यह केंद्र स्थल हैं ।इतिहास के सभी कालों में श्री गंगा का भारतीय कलाओं से अभिन्न सम्बन्ध रहा है।श्री गंगा भारत की सांस्कृतिक, सांप्रदायिक और राष्ट्रीय एकता की प्रतीक हैं ।सभी विषमताओं और विविधताओं से पूर्ण होने के बावजूद हर भारतीय गंगा के प्रति आस्थावान, श्रद्धावान है।
माघ मास, कार्तिक मास , महाशिवरात्रि, गंगादशहरा व प्रत्येक अमावस्या और पूर्णिमा पर गंगा के तटों पर स्नानादि के लिए पूरे विश्व के कोने-कोने से श्रृद्धालु आते हैं ।भारतीय धर्मशास्त्रों में गंगा की स्तुति, स्रोत , मंत्र आदि को स्थान- स्थान पर देखा जा सकता है।गंगा के आध्यात्मिक गुणों में पवित्रता, निर्मलता, शीतलता, प्रवाहशीलता, करुणा, कर्तव्यपरायणता,समर्पण इत्यादि प्रमुख हैं ।
"एक बार तेरे द्वारे आकर जिसने विनय सुनाई
दूर हुए उसके सब संकट उसने मुक्ति पाई"
गंगा पहाडों से शुभविचार व वनौषधियों का गुण लेकर नीचे आती है।कुंभ में करोड़ों लोग ऐसे ही शुभविचार लेकर आते हैं ये विचार गंगा के जल में ऊर्जा की वृद्धि करते हैं ।
● गंगा का भौगोलिक स्वरूप
गंगा का भौगोलिक स्वरूप गोमुख से गंगासागर तक अत्यन्त विस्तृत है।यह भारत की सबसे लम्बी नदी हैं ।इनकी कुल लम्बाई
2525 किलोमीटर है।अपने सफर में गंगा माँ उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल के भरण-पोषण में मुख्य भूमिका निभाती हैं ।
●गंगा का भौतिक स्वरूप
भौतिक दृष्टि से श्री गंगाजल में आरोग्यवर्धक गुणों की पुष्टि की गई है ।आयुर्वेद शास्त्र में भी इनके जल को अमृत तुल्य माना है।आर्थिक महत्व की दृष्टि से भी गंगा का जल गोमुख से गंगासागर तक एक विशाल भू-भाग को सिंचित करता है।कृषि के साथ ही बिजली उत्पादन, पर्यटन, व अन्य उद्योगों के माध्यम से राष्ट्रीय आय बढ़ाने में गंगा का महत्वपूर्ण योगदान है ।
●पर्यटन की दृष्टि से गंगा का स्वरूप
गंगा तट पर अनेक आध्यात्मिक पर्यटन स्थल भी हैं ।पर्यटकों के लिए गंगा का शीतल जल और लौकिक स्वरूप तो आकर्षित करने वाला है ही ,साथ ही इन तीर्थों में अलौकिक लाभ भी प्राप्त होता है।गंगोत्री, ऋषिकेश, हरिद्वार, काशी, प्रयाग, गंगासागर जैसे भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों का यहाँ के तीर्थाटन और पर्यटन में सर्वाग्रणी स्थान है।
गंगा के बिना हमारा जीवन अधूरा व एकांगी है।अतः हम सबका परम कर्तव्य है कि हम हमारी गंगा मैया की पवित्रता व शुद्धता सदा बनाए रखें ।
" नित- नित करें आरती वन्दन दीपक धूप जलाएँ
निर्मल- निर्मल जलधाराओं को नित शीश झुकाएँ
जय गंगा मैया जय गंगा मैया"
सादर धन्यवाद ।
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