head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): "यज्ञ" एक महान वैज्ञानिक प्रयोग प्रक्रिया, सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित, यज्ञ स्वास्थ्य एवं वातावरण के लिए लाभदायक, यज्ञ जीवन की विधा

Thursday, November 7, 2019

"यज्ञ" एक महान वैज्ञानिक प्रयोग प्रक्रिया, सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित, यज्ञ स्वास्थ्य एवं वातावरण के लिए लाभदायक, यज्ञ जीवन की विधा


      ●●● यज्ञ एक महान वैज्ञानिक प्रयोग,प्रक्रिया ●●●
आज जब हम प्रदूषण की भीषण त्रासदी से गुज़र रहे हैं ऐसे में हमें यज्ञों की वैज्ञानिकता समझने की जरूरत है,कि किस प्रकार यज्ञ हमारे वायुमंडल को शुद्ध रखते हैं।हमारे ऋषि-मुनियों ने दीर्घकाल तक यज्ञ विज्ञान पर व्यापक, सूक्ष्म एवं गहन अन्वेषण किया।
   
यज्ञ एक महान वैज्ञानिक प्रयोग प्रक्रिया है, यज्ञ प्रक्रिया में यज्ञ कुंड का बड़ा महत्व है, क्योंकि यह अपने आकार- प्रकार के आधार पर यज्ञ से उत्पन्न ऊर्जा को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करता है।यज्ञ प्रयोग में भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों शक्तियों का सामंजस्य पूर्ण, संतुलित एवं सर्वोत्कृष्ट उपयोग होता है।यज्ञ में समिधाओं का चुनाव एवं हवन सामग्री का निर्धारण ऋतुओं, रोगों एवं देवताओं के निमित्त होता है।
   
मंत्रों के साथ हवन- सामग्री की आहुति देने से इनकी सूक्ष्म संरचना बदल जाती है।हवन- सामग्री को जलाने से जो रासायनिक पदार्थ निकलते हैं, वे हैं--एल्केलाइड, अमाइन्स, पिलोनिमिक, साइक्लिक, टारमेनिक आदि।ये वातावरण को परिष्कृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं ।
  
●● यज्ञ स्वास्थ्य एवं वातावरण दोनों के लिए लाभदायक ●

यज्ञ में मंत्रों का चुनाव एक विशिष्ट प्रक्रिया है।यज्ञ में अग्नि प्रज्ज्वलित करने के लिए गाय का घी प्रयोग किया जाता है जो अग्नि के ताप को नियंत्रित एवं मर्यादित कर देता है।घृत वाष्पीकृत होकर हवन सामग्रियों के सूक्ष्म कणों को चारों ओर से घेर लेता है और इसमें विद्युत शक्ति का ऋणात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है जो कि स्वास्थ्य एवं वातावरण दोनों के लिए लाभदायक होता है।
    
हवन में मंत्रों का प्रभाव तब और बढ़ जाता है, जब विशिष्ट तिथियों एवं मुहूर्तों में किया जाता है, जैसे गायत्री यज्ञ का प्रभाव रविवार और बृहस्पतिवार को प्रातःकाल करने पर अधिक होता है।
यज्ञ में तीव्र ध्वनि के साथ अच्छी तरह से प्रज्जवलित अग्नि में सामग्री अर्पण करनी चाहिए ।
  महर्षि याज्ञवल्क्य का आश्रम महाराजा जनक के मिथिला राज्य में स्थित था जिसमें वे यज्ञ अनुसंधान कार्य करते रहते थे।निःसंदेह ही यज्ञ की वैज्ञानिकता अद्भुत एवं आश्चर्यजनक है।

●●सर्वव्यापी परमअक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित●●

सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही  यज्ञ में प्रतिष्ठित हैं ।अतः यज्ञ में हम जो आहुति देते हैं, वो हम व्यक्ति के लिए नहीं देते, बल्कि समष्टि के लिए देते हैं ।यज्ञ की प्रक्रिया में हम समस्त लोकों के साथ , समस्त चराचर के साथ एक हो जाते हैं ।

श्रीमद्भगवद्गीतामें भगवान कहते हैं कि सभी यज्ञों का भोक्ता मैं हूँ---- तो वो यज्ञ की आहुति भगवान तक पहुँचाता कौन है ? कहते हैं कि देवों का मुख अग्नि है और अग्नि के स्वामी, समस्त लोकों के स्वामी यज्ञपुरुष भगवान नारायण हैं ।जब हम यज्ञपुरुष को आहुतियाँ देते हैं तो यज्ञपुरुष परमेश्वर, वो हमारी आहुति, वो हमारी चुटकीभर हवन सामग्री, वो हमारी स्वाहा समस्त लोकों तक पहुँचा देते हैं ।एक साथ , सुगंध के रूप में, सत्कर्म के रूप में, सद्भाव के रूप में, समस्त लोकों में वो भाव फैल जाता है।

           ●●● 'यज्ञ' जीवन की विधा ●●●

भगवान कहते हैं कि जो अपना हिस्सा दूसरों को देता है , वह भी यज्ञ करता है ।जो इदं न मम का उद्घोष करता है , वो यज्ञ करता है कि यह मेरे लिए नहीं है ।यज्ञ केवल यज्ञकुंड में हवन करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह जीवन की विधा है, जीवन का विधान है ।यज्ञ जीवन सबके लिए जीने का नाम है, यज्ञ सबके लिए प्रेम गीत गाने का नाम है।हमारी संस्कृति ने हमको दधीचि दिए , उन्होंने कहा कि अगर बात देवशक्तिओं के, शुभ शक्तियों के हित की है, अगर बात लोकहित की है , तो हम अपनी अस्थियाँ भी दान करते हैं ।

जब यज्ञ चलता है और उसमें वेदमंत्रों का गायन हो रहा होता है , जब सामगीत गाए जाते हैं, जब वेदमंत्रों की ध्वनि गूँजती है, तो यह वेदमंत्रों की ध्वनि क्या है ? ये प्रेमगीत हैं जो सबके लिए गाए जा रहे हैं, किसी व्यक्ति के लिए नहीं ये समष्टि के लिए होते हैं, ये यज्ञपुरुष के लिए होते हैं ।यज्ञ के रूप में हमारी संस्कृति ने हमको अमूल्य धरोहर दी है। ऐसे आदर्श जीवन की कल्पना, ऐसे उन्नत जीवन की कल्पना हमारी संस्कृति ने की ।यज्ञ मनुष्य जीवन की सामाजिक श्रेष्ठता का प्रतीक है।
    वस्तुतः यज्ञ एक पूर्णाहुति कर्म भी है अर्थात साधक का अनुष्ठान तभी पूर्ण एवं सफल होता है, जब विधि- विधान पूर्वक यज्ञ किया जाता है।
आज प्रदूषण के समय में हमारे देश को पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने ऋषि- मुनियों के बताए मार्ग पर चलना पड़ेगा ।
सादर धन्यवाद 

2 comments:

  1. काश आधे भारतीय भी आपके ब्लाग पढ़ें समझे और उनमें से आधे भी उस पर अमल करने लग जाए तो हमारे देश का काया कल्प हो जाए.......

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  2. आपको सादर धन्यवाद
    जय श्री कृष्ण

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