पर्यावरण 'परि' तथा 'आ' उपसर्ग में 'वरण' शब्द को जोड़कर बना है- जिसका अर्थ है, चारों ओर से वरण अर्थात आवरण।
पर्यावरण तथा प्राणी एक दूसरे पर आश्रित हैं।भारतीय संस्कृति पर्यावरण के संरक्षण एवं विकास के प्रति पूर्णतः जागरूक रही है। भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं को ऋतुस्वरूप, वृक्ष स्वरूप, नदीस्वरूप एवं पर्वतस्वरूप कहकर प्रकृति के इन सभी घटकों का महत्व दर्शाया है।क्योंकि ये तत्व मानव जीवन के आधार हैं ।श्रीकृष्ण की गोवर्धन पूजा की शुरुआत का लौकिक पक्ष यही है कि जनसामान्य मिट्टी, पर्वत, वृक्ष, वनस्पति सभी का आदर सीखें।
ऋग्वेद के अनुसार- प्रकृति का अतिक्रमण तो देवों के लिए भी निषिद्ध है।अथर्ववेद के अनुसार- जिस प्रकार हृदय की धड़कन पर प्राणी का जीवन निर्भर है, उसी प्रकार अंतरिक्ष की सुरक्षा में ही पृथ्वी और पर्यावरण की सुरक्षा है।'ऋग्वेद' के ऋषि प्रदूषण रहित वायु को औषधि के समान दीर्घ जीवन प्रदायक तथा अमृत स्वरूप मानते हैं ।
वैदिक ऋषि प्रार्थना करता है--पृथ्वी, जल, औषधि एवं वनस्पतियाँ
हमारे लिए शान्त हों।ये शान्त तभी हो सकते हैं जब हम इनका सभी स्तरों पर संरक्षण करें ।
पर्यावरण संरक्षण क्या है-- हम अपने चारों ओर के आवरण को सुरक्षा प्रदान करें, उसके घेरे को अभेद्य बनाएँ तथा उसको अनुकूल बनाए रखें। जैवमंडल(बायोस्फियर)प्राणीजगत के जीवन के लिए अति उपयोगी है।सम्पूर्ण प्राणीजगत 'जलमंडल' से जल 'स्थलमंडल' से भोजन एवं निवास तथा 'वायुमंडल' से प्राणवायु ग्रहण करता है। ये तीनों मंडल एक दूसरे के पूरक हैं।
पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें वन- जंगलों को बचाना है, नदियों को प्रदूषित होने से बचाना है।हिमालय की रक्षा करनी है। क्योंकि हिमालय अनेक रत्नों का जन्मदाता है।उसकी पर्वतश्रंखलाओं में जीवनदायनी औषधियाँ उत्पन्न होती हैं । प्लास्टिक का उपयोग भी कम करना है।प्लास्टिक का प्रयोग भी पर्यावरण के लिए अति हानिकारक है।
'पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षों का सर्वाधिक महत्व है।पृथ्वी सूक्त के अनुसार वन तथा वृक्ष वर्षा लाते हैं, मिट्टी को बहने से बचाते हैं, बाढ़ तथा सूखे को रोकते हैं तथा दूषित गैसों को खींचते हैं।यही कारण है कि पुरातन काल में वृक्षों का देवता के समान पूजन किया जाता था।
पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण निराकरण के लिए सर्वोपरि आवश्यकता है- 'एक अखंडित अनुशासन'। प्रकृति के सारे घटक अनुशासित एवं नियमबद्ध तरीके से परिचालित हैं।पर्यावरण के संरक्षण एवं पोषण से ही मानव जीवन सुखी, शांत एवं समृद्ध हो सकता है।
पर्यावरण असंतुलन के कारण मौसम की असामान्यता मानव जीवन के लिए भीषण खतरा एवं चुनौती बन रही है। पर्यावरण असंतुलन का एक प्रमुख कारण है जनसंख्या वृद्धि। क्योंकि जनसंख्या बढ़ी तो पेड़ कटे, पेड़ कटे तो भूमि की उर्वरता घटी, संसाधन घटे। उनके घटने से जो एक समस्या बढ़ी, वह पर्यावरण में घुलता जहर है।यहाँ तक कि पर्यावरण की शुद्धि में सहायक सुदूर आकाश में उड़ने वाले गिद्धों की अनेक प्रजातियाँ समाप्त हो गईं ।पर्यावरण की सुरक्षा व भावी पीढ़ी के सुख के लिए हर वर्ग व हर धर्म को छोटे परिवार का महत्व समझना होगा।
पर्यावरण की रक्षा के लिए नदियों को बचाना भी जरूरी है, क्योंकि जीव- जन्तुओं की ऐसी अनेक प्रजातियाँ होती हैं जिनके लिए नदियों का प्रदूषण मुक्त होना जरूरी है।भूमिगत जलस्तर के लिए भी पर्याप्त वन क्षेत्र आवश्यक है।जंगल न होने से ही वर्षा का जल धरती में न समाकर धरती के ऊपर बहने लगता है।जिसके परिणाम बाढ़ और सूखे के रूप में हमारे सामने आते हैं ।
इलेक्ट्रॉनिक क्रान्ति ने हमारी जिंदगी को सुविधापूर्ण जीने का लालच दिया है लेकिन हमारा पर्यावरण प्रदूषित कर दिया।
प्रकृति, पर्यावरण एवं हम मनुष्य सभी एक दूसरे के परिपूरक हैं।अतः कर्तव्यनिष्ठ संतान के रूम में पर्यावरण की रक्षा के लिए धरती को पोषण, संरक्षण एवं सुरक्षा प्रदान करना हमारा परम कर्तव्य है।
पेड़ लगाकर, हरीतिमा संबर्धन करके हम पर्यावरण असंतुलन से उत्पन्न प्रदूषण का स्तर कम कर सकते हैं।पर्यावरण संतुलन में ही मानव जीवन की खुशहाली है।
"पेड़ लगाकर पर्यावरण बचाएँ
जीवन को खुशहाल बनाएँ"
पर्यावरण के बारे में यह जानकारी पढ़ने के लिए सादर धन्यवाद ।
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