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Friday, November 22, 2019

"जीवन दायनी नदियों का संरक्षण आवश्यक"

 

          "हम नदियों के पावन जल की महिमा नहीं घटाएँ 
           जीवन दायनी नदियों को हम निर्मल पुनः बनाएँ"
प्रकृति  की सभी कड़ियाँ एक श्रंखला की तरह आपस में जुड़ी हुई हैं, एक की भी अवमानना करना इस श्रंखला को तोड़ना है।नदी भी इस श्रंखला की अहम् कड़ी है।नदियों के बिना हमारा जीवन अधूरा है ।नदियाँ हमारी संस्कृति व सभ्यता की मूलाधार हैं। हमारी प्राचीन सभ्यता उत्तर में  सिंधु ,सतलज और सरस्वती नदी के किनारे विकसित हुई तो दक्षिण में यह कृष्णा, कावेरी और गोदावरी के किनारे विकसित हुई।

हमारे ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रकृति के सभी घटकों का आदर करना सिखाया।ऋषि- मुनियों ने नदियों, पहाडों, तालाबों, झीलों व पेड़- पौधों को दैवीय शक्तियों का रूप दिया, इसीलिए तालाबों, कुओं आदि जलस्रोतों की पूजा की जाने लगी और नदियों को माता कहा गया।हिमालय से निकलने वाली गंगा के पवित्र जल का स्पर्श करके भारत ही नहीं, दुनिया के लोग अपने आप को धन्य मानते हैं। विदेशी नागरिक बताते हैं कि गंगा किनारे बैठकर उनका ध्यान सहज लग जाता है, इस प्रकार के अनुभव गंगा की मनोवैज्ञानिक शक्ति की देन हैं ।

नदियों ने हजारों वर्षों से हमारा पालन- पोषण किया है।लेकिन आज हमने इन्हें इतना प्रदूषित कर दिया है कि ये नदियाँ अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं ।यदि नदियों के जल को स्वच्छ नहीं किया गया तो यह प्रदूषित जल मनुष्य व अन्य जीव-जन्तुओं के लिए तरह-तरह के संकट पैदा कर सकता है।

हम सोचते हैं कि पानी के कारण पेड़ हैं जब कि सच्चाई यह है कि पेडों के कारण पानी है।भारत की नदियों में पाए जाने वाले जल का चार प्रतिशत जल ही ग्लेशियरों से आता है।शेष सभी नदियाँ वनों पर आधारित हैं ।इसलिए नदियों का अस्तित्व बचाने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना होगा।

नदियों के आसपास की मिट्टी नम होनी चाहिए, यह तभी संभव है जब वहाँ पेड़- पौधे हों, क्योंकि पेड़- पौधे आकाश से और आसपास से जल खींचकर धरती को हरा-भरा रखते हैं ।
    
पिछले बीस वर्षों में जल में रहने वाली मछलियाँ व अन्य जीवों की प्रजातियाँ लुप्त हो गईं हैं।जल में रहने वाली डाॅलफिन अब मुश्किल से दिखाई देती है।घडियालों की प्रजातियाँ खतरे में हैं।
इन सभी के अस्तित्व के लिए नदियों का शुद्ध जल  से परिपूर्ण  होकर बारह महीने लगातार बहना आवश्यक है।

भू जल बढ़ाना, प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों को बेअसर कर, स्वयं को निर्मल रखना, मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाना नदियों के ही कार्य हैं, अतः फैक्ट्रियों से निकलने वाले दूषित जल को नदियों में जाने से रोकना होगा, नदियों में गन्दे नाले का प्रवाह भी रोकना होगा।
इसके बाद नदियों की तलों 


की सफाई करनी पड़ेगी ।बरसात के मौसम में गंदगी, रेत आदि भी नदी के प्रवाह में अवरोध बनते हैं और जल को प्रदूषित करते हैं ।
      यदि नदियों को समृद्ध बनाना है तो हमें इन्हें प्रदूषित करने वाले सभी कारणों की रोकथाम करनी होगी ।नदियाँ कभी स्वयं के लिए नहीं बहतीं।
               "नदिया न पिए कभी अपना जल 
                वृक्ष न खाए कभी अपना फल"
यदि हम नदियों का माँ के रूप में अनुभव करेंगे तो उनकी जलधारा हमें समृद्धि, संपन्नता और पवित्रता स्वतः ही देती चली जाएँगीं।
          "कहीं न कोई तट नदियों का रहे वृक्ष से खाली
          "भारत की नदियों के तट पर सजी रहे हरियाली"
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
          

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