पहला प्लास्टिक बैग सन् 1957 में लोगों के सामने आया ।उसके कुछ वर्षों बाद उपभोक्ता वाद शुरु होने के कारण पाॅलीथिन की थैलियाँ कागज की थैलियों से भी सस्ती हो गईं और इनके कारण दूध, जूस जैसे तरल पदार्थों का व्यापार करना भी सरल हो गया।
तब से आज तक हमने खुले दिल से एक नई जीवनशैली का दौर समझकर इन्हें अपनाया।
आजकल हमारे उपयोग की हर छोटी - बड़ी वस्तु प्लास्टिक की पैकिंग में ही आती है।आज बाल्टियाँ, कुर्सी, मेज, डिब्बे, पानी , व ड्रिन्क की बोतलें, दूध-दही , तेल- घी की पैकिंग, दवाइयों की पैकिंग सब प्लास्टिक से ही निर्मित है।प्लास्टिक हमारे पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। यह जानते हुए भी यह हमारे जीवन का अहम् हिस्सा बना हुआ है।
सामान्य रूप से प्लास्टिक बैग्स को फाॅसिल फ्यूल्स से बनाया जाता है, जिसकी उत्पादन प्रक्रिया में बाॅयोप्रोडक्ट्स जैसे हैवी मैटल्स, पाॅलीसाइकल एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स, वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउन्ड्स, सल्फर ऑक्साइड और डस्ट के साथ गहन औद्योगिक प्रक्रिया अपनाई जाती है।ज्यादातर प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल ( विघटित) नहीं होते और सैकड़ों वर्ष तक बने रहते हैं ।प्लास्टिक को फोटोडिग्रेडेशन प्रक्रिया द्वारा या सूर्य के प्रकाश के जरिए नष्ट होने होने में पाँच सौ साल लग जाते हैं ।
प्लास्टिक से बनी बोतलें या डिब्बों में रखे खाद्य पदार्थों का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ; क्योंकि गर्मी धूप आदि कारणों से रासायनिक क्रियाएँ प्लास्टिक के विषैले प्रभाव उत्पन्न करती हैं।जो कैंसर आदि भयंकर बीमारियों पैदा कर सकती हैं ।प्लास्टिक में अस्थिर प्रकृति का जैविक कार्बनिक एस्सटर ( अम्ल और अल्कोहल से बना घोल) होता है, जो कैंसर पैदा करने में सक्षम है।सामान्य तौर पर प्लास्टिक को रंग प्रदान करने के लिए उसमें कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं के अंश मिलाए जाते हैं ।इसलिए प्लास्टिक की रंगीन वस्तुओं में रखे हुए खाद्य या पेय पदार्थ को ग्रहण करने से अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं ।
वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लास्टिक बोतलों में पाए जाने वाले खास तत्व, जैसे- थैलेट्स हमारी सेहत पर बुरा असर डालते हैं ।इनकी वजह से हार्मोनों का रिसाव करने वाली ग्रन्थियों की कार्यप्रणाली बिगड़ जाती है।घटिया किस्म की पॉलीथिन का प्रयोग करने से साँस व त्वचा सम्बन्धी रोग हो सकते हैं ।
ऐसा अनुमान है कि हर साल बीस लाख से ज्यादा पशु- पक्षी और मछलियाँ पॉलीथिन थैलियों के कारण अपनी जान गँवाते हैं ।पाॅलीथिन नष्ट नहीं होती , इसीलिए यह धरती की उपजाऊ क्षमता को नष्ट करके इसे जहरीला बना रही है और मिट्टी में दबे रहने के कारण मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता भी कम कर रही है, जिससे भूजल स्तर कम हो रहा है।
नदियों के जल प्रवाह में भी प्लास्टिक की थैलियाँ तैरती मिल जाती हैं भारत ही नहीं, विश्व भर में अनेक पहाड़ों पर स्थित सभी पर्यटनस्थलों पर प्लास्टिक व पाॅलीथिन एक समस्या बनी हुई है।
प्लास्टिक से बनी पतंगों व ताँत के धागों का प्रचलन भी हानिकारक है।इनके कारण सड़कों पर अनेक दुर्घटनाएँ हो जाती हैं ।
हाल ही में हुए शोध के अनुसार सुरक्षित प्लास्टिक यानी बीपीए ( बिस्फेनोल) फ्री प्लास्टिक भी तीन पीढ़ियों के स्वास्थ्य लिए खतरनाक है।अध्ययन के अनुसार बीपीए फ्री प्लास्टिक से प्रजनन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं ।
हालाँकि हमारी सरकार ने 50 माइक्रोन से पतली प्लास्टिक पन्नी पर बैन लगा दिया है।लेकिन अनुकूल परिणाम न आने का मुख्य कारण है -- इसके अच्छे विकल्प का अभाव। प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए बायोप्लास्टिक ( जैव प्लास्टिक) को विकसित करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
पिछले सौ वर्षों में हम लगभग 83 अरब टन प्लास्टिक का उत्पादन कर चुके हैं ।इसमें से लगभग 63 अरब टन प्लास्टिक बेकार हो चुका है। आज हम सब प्लास्टिक से होने वाले नुकसानों से भलीभांति परिचित हैं ।
यह उपयोगी जानकारी पढ़ने के लिए सादर धन्यवाद ।
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