धरती पर जीवन संतुलन के लिए प्रकृति ने जीव कोशिका ( जीव- जगत) उत्पत्ति के साथ ही पादप कोशिका (पेड़- पौधे) की भी रचना की थी।प्रकृति को यह अच्छी तरह से पता था कि मनुष्य व पेड़ दोनों ही अपने अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर आश्रित रहेंगे।
आज जब आबादी विस्तार ले रही है, पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं, इस कारण हमारी धरती की हरियाली कम हो गई है।कहीं-कहीं तो वृक्ष -वनस्पतियों के दर्शन भी नहीं होते।आज प्राकृतिक असंतुलन के कारण जलवायु प्रदूषित हुई है, परिणाम- स्वरूप पूरे विश्व में प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी हो रही है ।इस जलवायु-असंतुलन को पेड- पौधे ही संतुलित कर सकते हैं ।
पेड़-पौधे हमारे वातावरण को शुद्ध करने के साथ जलवायु के बीच आवश्यक संतुलन भी बैठाते हैं ।इसलिए हर स्तर पर इन्हें बचाने, उगाने व देखभाल करने की कोशिश करनी है।
पेड़-पौधों की शाखाएँ व पत्ते छाया देते हैं व हवा की रफ्तार तेज करते हैं ।इनकी पत्तियाँ हवा में मौजूद हानिकारक तत्वों को छानने में सक्षम होती हैं और वाष्पोत्सर्जन द्वारा वातावरण को नम रखने में सहायक होती हैं ।पेड़ों की जड़ें मिट्टी के स्थिरीकरण के द्वारा क्षरण को रोकती हैं ।पेड़ों की पत्तियाँ, टहनियाँ व शाखाएँ ध्वनि प्रदूषण को सोखती हैं ।इनकी जड़ें, पत्तियाँ व तने पक्षियों, जानवरों व कीटपतंगों के लिए आवास का माध्यम बनते हैं ।
नीम, पीपल, बरगद, तुलसी आदि अधिक ऑक्सीजन छोड़ते हैं ।इनके साथ और भी कई ऐसे वृक्ष हैं जिनके औषधीय गुणों का महत्व है, इनकी जड़, शाखा, पत्ते, फल ,बीज आदि विभिन्न रोगों को दूर करने में उपयोगी होते हैं ।वनस्पतियों का औषधि विज्ञान बहुत प्रसिद्ध है।महर्षि चरक व महर्षि सुश्रुत ने इस क्षेत्र में अनेक अनुसंधान किए और आयुर्वेद विज्ञान का विकास किया।महर्षि धन्वंतरि औषधियों के देवता माने जाते हैं ।
वृक्ष लगाना , उनकी सेवा करना अत्यन्त पुण्य का कार्य है ।हमारे पूर्वजों ने जो वृक्ष लगाए , आज वे ही बड़े होकर हमें फल, फूल, लकड़ियाँ प्रदान करते हैं ।यदि हमें किसी कारणवश पेड़ काटना पड़े तो उसके बदले में दस पेड़ और लगाने चाहिए ।
हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी कुछ प्रकृति से ही प्राप्त होता है और पेड़- पौधों से ही प्रकृति का संरक्षण व संवर्धन किया जा सकता है।वृक्ष- वनस्पतियों की सेवा से ही हमें प्रकृति माँ, धरती माता का दुलार मिलता है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार एक स्वस्थ वृक्ष जो शीतलता देता है, वह 10 वातानुकूलित संयंत्रों के 20 घंटे लगातार चलने के बराबर होता है।एक एकड़ क्षेत्र में लगे वन 6 टन कार्बन-डाइऑक्साइड
अवशोषित करते हैं और 4 टन ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं ।पीपल जैसे वृक्षों में धुँआ तथा धूल को सोखने की असीमित शक्ति होती है।तुलसी हमें शुद्ध वायु प्रदान करती है तथा घातक कृमि,
कीटों को नष्ट करती है।
आधुनिक युग में भौतिकता का विकास तो बहुत हुआ लेकिन प्रकृति के महत्व को भुला दिया गया।इस कारण आज मानव जीवन अनेक प्रकार के प्रदूषणों का सामना कर रहा है।अनेक प्रकार की समस्याएँ व रोग उत्पन्न हो रहे हैं ।समाधान एक ही है- अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगा कर समग्र पर्यावरण को दूषित होने से बचाएँ ।
एक अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार विश्व में लगभग तीन लाख करोड़ पेड़ हैं परंतु इनकी संख्या अब लगातार सिमटती जा रही है।विश्व में प्रतिवर्ष 70 लाख हेक्टेयर की गति से वन नष्ट हो रहे
हैं ।यदि इस गति से वन क्षेत्र कम होते रहे तो आगामी 15 वर्षों में वृक्षों की 15 प्रतिशत प्रजातियाँ लुप्त हो सकती हैं ।पेड़ों की विलुप्ति मानव जीवन के लिए घातक है।वनों की कटाई, भूमि के उपयोग में बदलाव, वन प्रबंधन और मानवीय हस्तक्षेप के कारण विश्व में लाखों पेड़ प्रतिवर्ष कम हो रहे हैं ।
हमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के सुख के लिए जीवनदायी पेड़ों को बचाना होगा।हमारी संस्कृति में वनों को देवता व पेड़ों को पूज्य, इसके बावजूद वनों का विनाश व पेड़ों की कटाई अत्यन्त चिंतनीय विषय है।पेड़ एक ऐसी प्राकृतिक संपदा है जिसका यदि विनाश होता है तो मनुष्य जीवन की सुखद संभावनाओं की आशा नहीं की जा सकती ।
वृक्ष हमारे लिए जीवन तत्वों का सृजन करते हैं इसलिए हमें भी वृक्षों के विकास में सहायक होना चाहिए।हमारे देश में कई तरह के वृक्षारोपण अभियान चलाए जा रहे हैं ।इन अभियानों को सफल बनाने के लिए उन पेड़- पौधों की विशेष देखभाल करने की भी जरूरत है।
हमें अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगा कर अपनी वसुधा के सौन्दर्य को पुनः स्थापित करना है।प्रकृति हमें सदा देती ही रहती है-
"पेड़ लगाकर धरती माँ की हरियाली लौटाएँ
पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाएँ "
सादर अभिवादन व जय श्री कृष्ण
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