head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): मन क्या है ? -- "मन है विचारों का एक रोमांचक एवं आश्चर्यजनक यंत्र" महर्षि अरविंद मन के विकास की यात्रा के पाँच भाग

Saturday, November 23, 2019

मन क्या है ? -- "मन है विचारों का एक रोमांचक एवं आश्चर्यजनक यंत्र" महर्षि अरविंद मन के विकास की यात्रा के पाँच भाग

                       ●●● मन क्या है? ●●●
मन के बारे में हमारे अंतर्मन में अनेक प्रश्न बिजली के समान कौंधते रहते हैं ।लेकिन समुचित उत्तर नहीं मिलने के कारण ये प्रश्न हमारे लिए एक पहेली बन जाते हैं ।इनका समाधान उनसे मिलता है, जिनकी दृष्टि स्वच्छ, सूक्ष्म एवं पारदर्शी होती है, जिन्हें हम "ऋषि"  कहते हैं ।

ऋषि की अंतर्दृष्टि कहती है कि- मन है विचारों का एक बेहद ही रोमांचक एवं आश्चर्यजनक यंत्र ।इस यंत्र का ईंधन है- विचारों का अर्जन।मन में कुछ ऐसी चमत्कारिक सामर्थ्य है जो शरीर की सामर्थ्य से कई गुना ज्यादा है ।

● महर्षि पतंजलि के अनुसार मन का निरूपण---  
सामान्य मन तमस् से आच्छादित होता है ।जिसका प्रमुख लक्षण है- जड़ता, निष्क्रियता ।तमोगुण मन की मूढ़ अवस्था को कहते हैं।
जब मन में रजोगुण का संचार होता है तो उसे क्षिप्तावस्था कहते हैं ।जिसका लक्षण है - क्रियाशीलता ।रजोगुण में विचारों की क्रियाशीलता अपने चरम पर होती है।जब सतोगुण की वृद्धि होती है तो यह मन की विक्षिप्त अवस्था होती है।

 ● महान ऋषि अरविन्द के अनुसार मन का निरूपण---
सामान्य मन में विचार नकारात्मक एवं सकारात्मक, दो छोरों के बीच झूलते हैं, या कहें तो नकारात्मक विचारों के प्रभाव अधिक दीखते हैं ।विचारों की प्रकृति को देखकर मन की स्थिति एवं स्तर का पता चलता है ।सामान्य मन में विचार अस्पष्ट एवं अत्यन्त क्रियाशील होते हैं ।श्री अरविन्द का यह भी कहना है कि सतोगुण में आते ही मन में बहने वाले विचारों की अवस्था में परिवर्तन आने लगता है।

महर्षि अरविन्द ने मन की विकास यात्रा को पाँच वर्गों में वर्गीकृत किया है।
●1---  ऊर्ध्व मानस   (Higher Mind)
महर्षि अरविन्द सामान्य मन के आगे ऊर्ध्व मानस की चर्चा करते हैं, यहाँ विचारों का प्रवाह ऐसा होता है जैसे पूर्णिमा की चाँदनी में चमकती हुई गंगा की धारा।यहाँ विषय की  सही एवं समुचित ढंग से समझ विकसित होती है।यहाँ संकल्प उठते हैं और प्रतिफलित भी होते हैं ।यहाँ आनन्द अधिक टिकाऊ एवं प्रेम अधिक व्यापक होता है।मानस की यह झलक दार्शनिकों एवं चिंतकों में दिखाई देती है।परंतु मन अभी भी बोझिल होता है जो ऊपर से आने वाले पारदर्शी प्रकाश को अपने में समा लेता है।

● 2  उद्भासित मानस  ( Illumined Mind )
महर्षि अरविन्द के अनुसार जैसे- जैसे मन शान्त एवं स्थिर होने लगता है, वह ऊर्ध्व मन से उद्भासित मानस की ओर बढ़ने लगता है।ऊर्ध्व मन में विचार प्रकाशित होते हैं जब कि उद्भासित मन में विचार शान्त हो जाते हैं और दृष्टि विकसित होती चली जाती है।
दृष्टि विकसित होने के कारण घटने वाली घटनाओं के कारणों को स्पष्ट देखा जा सकता है, साथ ही मन के सभी विचार दीपमाला के समान ज्वलंत हो उठते हैं ।उद्भासित मन की नवीन चेतना में सृजनात्मक शक्तियाँ स्वतः ही प्रस्फुटित हो जाती हैं ।यहाँ प्रकाश का रंग सुनहला होता है जो नदी की धारा के समान निरंतर बहने लगता है।

श्री अरविन्द कहते हैं कि उद्भासित अवस्था में बोध और अनुभव बड़ी तेजी से होने लगता है।लेखन व रचनात्मक कला विकसित हो जाती है।श्री अरविन्द ने अपनी कृति "फ्यूचर पोयट्री"  में उद्भासित मानस से सम्बंधित कविताओं के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं-
इसमें वर्डस्वर्थ, मिल्टन ,शेक्सपियर, शैली, श्री रविन्द्रनाथ टैगोर , महादेवी वर्मा की कविताएँ दिखाई देती हैं ।उद्भासित मन का सार है -आनन्द ।

● 3---   अंतर्बोधी मानस  (Intuitive Mind )
महर्षि अरविन्द के अनुसार उद्भासित मानस के पार अंतर्बोधी मानस है यह  सत्य का साक्षात्कार, स्पर्श एवं अनुभव कराता है।इन अनुभवों से साधक ज्ञान की खोज बाहर नहीं , स्वयं में ही करता है ।मन की इस अवस्था में ऋषियों ने उपनिषदों का दर्शन किया था लेकिन यहाँ भी  बौद्धिक ज्ञान के सहारे परमात्मा के अनुभव को पाने का प्रयास निष्फल सिद्ध होता है, क्योंकि यहाँ सत्य तो है परन्तु सम्पूर्ण रूप में नहीं ।

● 4---  अधिमानस  (Over Mind )
श्री अरविन्द के अनुसार अंतर्बोधी मानस के उच्चतम शिखर पर अधिमानस झलकता है, जो कि किसी मनुष्य के लिए अति दुर्लभ है।इस अवस्था में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा श्री मद्भगवद्गीता का प्रवाह निःसृत हुआ था। यहाँ कला का विशेष महत्व है ।ऋषियों ने इसी अवस्था में मंत्रों को ऋचाओं के रूप में छन्दबद्ध किया था।लेकिन यहाँ भी संपूर्णता नहीं ।


● 5--- अतिमानस  (Super Mind)
महर्षि अरविन्द के अनुसार अधिमानस के ऊपर अतिमानस का साम्राज्य है। जहाँ सब कुछ एक है, प्रकृति और परमेश्वर में कोई भेद नहीं है। यहीं आकर पता चलता है कि मानसिक चेतना अविभाजित एवं अखंड है।सृष्टि केवल परमात्म तत्व से विनिर्मित है।यहाँ आकर मानसिक चेतना अतिमानसिक चेतना में रूपांतरित हो सकती है ।मनुष्य जीवन की सभी समस्याओं का समाधान इसमें सन्निहित है।

मन की शक्ति प्रचंड है।वह एकाग्र होने पर ही जीवंत- जाग्रत रहती है।यदि ध्यान द्वारा उसे एक केंद्र पर इकट्ठा कर लिया जाए तो उसका प्रभाव, परिणाम चमत्कारी होता है।
सचमुच मन बड़ा अद्भुत यंत्र है।
        "प्रभु नाम की मीठी- मीठी धुन
        इस मधुर प्रीति के राग को सुन 
        मन की वीणा के तारों में
        अंतर्मन की झंकार को सुन"



मन के बारे में यह जानकारी पढ़ने के लिए सादर धन्यवाद ।


No comments:

Post a Comment