अंग्रेजी भाषा में प्रायः प्रकृति का अनुवाद नेचर या क्रिएशन के रूप में किया जाता है।जब कि ये दोनों शब्द प्रकृति का ठीक-ठीक परिचय देने व इसे परिभाषित करने में असमर्थ हैं ।
सृजन होने से पहले किसी की शाश्वत उपस्थिति रही, वही प्रकृति है।जब कुछ भी विनिर्मित नहीं था, तब जो भी था---प्रि-क्रिएशन।
इसलिए अंग्रेजी भाषा में प्रि- क्रिएशन (कृति से पहले) शब्द प्रकृति को परिभाषित करने में समर्थ है।
प्रकृति शब्द अद्भुत है- भारत, भारतीय संस्कृति व भारतीय मनीषा ने इसे गढ़ा है।ऐसा अनूठा शब्द दुनिया की किसी दूसरी भाषा में नहीं है।
प्रकृति व शक्ति दोनों ही हमारे जीवन का मूल आधार हैं, उनके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं।हमारा शरीर प्रकृति के तत्वों से मिलकर बना है और यह संचालित भी होता है, प्रकृति की शक्ति से।भारतीय मनीषियों को इस सत्य का अहसास हो गया था कि इस परिवर्तनशील भौतिक जगत के पीछे एक शाश्वत और अपरिवर्तनीय सत्ता है।जिसे उन्होंने ब्रह्मांडीय अंतश्चेतना या परम आत्मा कहा।प्रकृति को जगज्जननी व परमेश्वर को परमपिता कहा गया है।
सूरज , चाँद , सितारे, पर्वत, नदियाँ, पृथ्वी आदि सब प्रकृति का ही तो स्वरूप हैं।भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है कि इस सृष्टि में हर वस्तु तीन गुणों से युक्त है।
इस सृष्टि की संपूर्ण रोचकता, रोमांचकता व रहस्यमयता तात्विक रूप से प्रकृति के तीन गुणों से ही निर्मित की गई है।
प्रकृति ही इन तीनों गुणों (सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण )के मध्य संतुलन स्थापित करते हुए सृष्टि के चक्र को माँ की तरह चलाती है।भारतीय दर्शन ने सदा से ही मनुष्य, प्रकृति एवं परमेश्वर को एक समग्र दृष्टि से देखने का प्रयत्न किया है ।
प्रकृति वह है, जिसमें से सब निकलता है और जिसमें सब विलीन हो जाता है।सभी रूप व आकारों के उद्गम व विसर्जन का स्थान है।प्रकृति के सभी नियम शाश्वत एवं चिरस्थायी हैं, जैसे कि-- हमारे सौरमण्डल के सभी ग्रहों में सदा से ही एक नियमबद्धता है।सभी ग्रह एक नियमित तरीके से सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं, लेकिन इस संसार में मनुष्य द्वारा निर्मित कुछ भी स्थाई नहीं है।
हमारी संपूर्ण प्रकृति ही इस संसार की अनमोल धरोहर है, क्योंकि जीवन के लिए शुद्ध हवा, शुद्ध जल सभी कुछ तो हमें प्रकृति से प्राप्त होता है।यदि हम गहराई से विचार करें तो हम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संपूर्णता से अपनी प्रकृति पर ही निर्भर हैं अर्थात सब कुछ हमें प्रकृति से ही प्राप्त होता है। अतः आज पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए प्रकृति में संतुलन अति आवश्यक है ।
वर्तमान समय में प्रकृति में असंतुलन पैदा हो गया है।उद्योगों के अवशिष्ट से हवा, पानी व जमीन सभी प्रदूषित होते चले जा रहे हैं।पेड़ों की कटाई से वर्षा चक्र बाधित हो रहा है।धरती की अधिक खुदाई से भूकंप जैसी आपदाएँ बढ़ रही हैं।ऐसे में स्वस्थ जीवन की कल्पना करना मुश्किल है।
बढ़ता तापमान अर्थात ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी पर खतरा मँडरा रहा है।पर्यावरण से हम जीवन का अमृत रस तो ले रहे हैं लेकिन बदले में उसमें विष घोल रहे हैं।
आज सम्पूर्ण विश्व को यह समझना होगा कि प्रकृति में इसी तरह असंतुलन बढता रहा तो मानव- जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
वर्तमान युग में सभी तरह के प्रदूषणों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि प्रकृति के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं अर्थात प्रकृति से ही जीवन है।प्रकृति की अनदेखी के कारण ही सभी तरह के प्रदूषणों की मार झेलनी पड़ रही है।
गोवर्धन पूजा के माध्यम से भगवान् ने प्रकृति का महत्व दर्शाया है।अतः अपनी प्रकृति का सौन्दर्य बनाए रखने के लिए हम सभी पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक बनें ।
धरती माता का पेडों से श्रृंगार करें और नदियों के जल को स्वच्छ रखें ।
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