head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): श्री मद्भगवद्गीता- साक्षात भगवान् के द्वारा गाया गया गीत (महान योग शास्त्र, सुन्दर उपनिषद् , ब्रह्म विद्या)

Thursday, November 28, 2019

श्री मद्भगवद्गीता- साक्षात भगवान् के द्वारा गाया गया गीत (महान योग शास्त्र, सुन्दर उपनिषद् , ब्रह्म विद्या)

               ।। ओउम् श्री परमात्मने नमः ।।
               "ये ब्रह्म शास्त्र खोले प्रभु के द्वार 
                     भगवद्गीता को नमस्कार"
● श्रीमद्भगवद्गीता की महिमा----- 
श्रीमद्भगवद्गीता की महिमा अगाध और असीम है।भगवद्गीता का उपदेश महान अलौकिक है।यह परम पावन ग्रन्थ एक ऐसा रहस्यमय ग्रन्थ है, जिसमें वेदों का सार है। गीता में  धर्म का उपदेश समाहित है, जीवन जीने की कला का ज्ञान है एवं मनुष्य के स्वधर्म का ज्ञान है ।गीता की वाणी दिव्य है।इसे कहते समय भगवान् स्वयं अपने परमात्मस्वरूप में स्थित थे।

इसका विशेष नाम श्रीमद्भगवद्गीता है ;क्योंकि यह भगवान् के द्वारा गाया गया गीत है।यह सूपनिषद् ( सुन्दर उपनिषद्) है।उपनिषद् वह है, जिसमें शिष्य गुरू के समीप बैठकर ज्ञान प्राप्त करता है।गीता में शिष्य अर्जुन जगद्गुरु भगवान् श्रीकृष्ण के पास बैठकर
ज्ञान प्राप्त करता है , जो कि सर्वोत्कृष्ट पल हैं ।

● श्रीमद्भगवद्गीता  महान योग शास्त्र----  श्री मद्भगवद्गीता को महान योगशास्त्र कहा गया है । आत्मा के परमात्मा से मिलन का नाम योग है।गीता देह की नश्वरता और आत्मा की अमरता- शाश्वतता का संदेश देती है । इसमें योगशास्त्र की परिभाषा,साधना की विधियाँ, तत्व विवेचना आदि सभी निहित हैं। इसमें कर्म योग, भक्ति योग एवं ज्ञान योग का अद्भुत संगम है।

कर्मयोग का तात्पर्य है-- 'शुभ व निष्काम कर्म करना' , भक्तियोग है---'भगवच्चेतना को धारण करना'  और ज्ञानयोग है-- 'भगवद्तत्व को जानना' । 

श्रीमद्भगवद्गीता ब्रह्म विद्या है।ब्रह्म अर्थात जो जीवन का आधार व सार है, और इसी कारण ब्रह्म विद्या वेदांत का आधार है, वेदों का सार है।गीता में भी यह निहित है।
           "पावन पुनीत है शान्ति गीत
           मनभावनी है भक्तों की प्रीति "

मार्गशीष शुक्ल एकादशी थी।मध्यान्ह के समय सूर्य देव सम्पूर्ण तेज के साथ विद्यमान हो रहे थे।अर्जुन के प्रश्न प्रकट हुए, जिज्ञासाएँ जगीं।तब अर्जुन की  जिज्ञासाओं के समाधान के लिए श्री भगवान् ने  "श्रीमद्भगवद्गीता" के अठारह सोपानों में ,अर्जुन को निमित्त बनाकर,  सम्पूर्ण मानव जाति को जीवन का तत्वदर्शन दिया।
           सारथी बनकर पार्थ को ज्ञान गीता का दिया ।
           विश्व का दर्शन दिखाकर धन्य अर्जुन को किया ।।

श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्यायों में कुल सात सौ (700) श्लोक हैं ।700 श्लोकों तक एक ही धारा व चिंतन को बनाए रखने की अद्भुत विशेषता के कारण हर श्लोक एक महामंत्र है।
गीता के श्लोकों में दिव्य ऊर्जाओं के स्रोत समाए हैं ; क्योंकि भगवान् ने अपने दिव्य रूप में, चेतना के उच्चतम शिखर पर स्थिर होकर इसे गाया है।

●श्रीमद्भगवद्गीता में मुख्यतः चार पात्र हैं-----

श्रीमद्भगवद्गीता श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के रूप में कही गई है।इनके बीच में जो संवाद हो रहे हैं, जो जिज्ञासा व समाधान हो रहे हैं---उन संवादों को संजय, धृतराष्ट्र को सुनाते हैं ।

धृतराष्ट्र, संजय और अर्जुन--- ये मनुष्यता के तीन तल हैं ।मनुष्यता के ये तीनों तल हमारे चारों ओर भी हैं ।कहीं हमें मोहग्रस्त धृतराष्ट्र खड़े मिलेंगे, तो कहीं साधना , तपस्या, ऋषि की कृपा में लीन संजय मिलेंगे, लेकिन अर्जुन कहीं- कहीं ही मिलेंगे। अर्जुन वे हैं, जिनकी चेतना भगवान् की ओर उन्मुख है, वे भगवान् श्रीकृष्ण को सब कुछ समर्पित करने का साहस रखते हैं ।श्री कृष्ण, भगवान् रूप में सर्वत्र व्याप्त हैं ।

महाभारत में अनेक पात्र हैं लेकिन श्रीमद्भगवद्गीता को सुनने का निमित्त केवल अर्जुन ही बन सके ; क्योंकि शिष्य बनने के लिए विवेक और भावना दोनों चाहिए । अर्जुन प्रतिभाशाली हैं, शास्त्रज्ञानी हैं,  शस्त्रज्ञानी हैं ,महानधनुर्धर हैं, निरंतर सीखते रहते हैं, झुकना जानते हैं   उनमें सत्य को पाने की अभीप्सा है।वे कहते हैं---शिष्यस्तेऽहं ! भगवन् मैं आपका शिष्य हूँ ।इसी के साथ आरंभ होता है --- श्रीमद्भगवद्गीता का  दिव्य ज्ञान व दिव्य गान।

श्रीमद्भगवद्गीता आरंभ में ही याद दिलाती है--
       धर्मक्षेत्रे  कुरुक्षेत्रे   समवेता   युयुत्सवाः।
        मामकाः  पाणडवाश्चैव  किमकुर्वत संजय ।।

यह संसार भी एक तरह का धर्मक्षेत्र व कुरुक्षेत्र है, जिसमें हर व्यक्ति हर पल- हर क्षण युद्ध कर रहा है, स्वयं से व अन्य लोगों से।

श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों को हम जितना गहराई से आत्मसात् करेंगे, उतना ही हमारे व्यक्तित्व में परिमार्जन, परिवर्तन, रूपान्तरण हो जाएगा।

भगवान् आश्वासन देते हैं, जहाँ धर्म होगा, वहाँ मैं उपस्थिति रहूँगा। भगवान् अनन्त हैं, उनका सब कुछ अनन्त है, फिर उनके मुखारविंद से निकली हुई गीता के भावों का अन्त आ ही कैसे सकता है।
               "भगवद्गीता को नमस्कार 
                भगवद्गीता को नमस्कार "





1 comment:

  1. प्रणाम आदरणीया 🙏
    बहुत ही अच्छा संकलन

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