धन धान्य भरे फल फूल सजे
तुम शोभित हो वन उपवन से
चहुँ ओर सजी है हरियाली
पृथ्वी को समूचे सौरमण्डल में, विश्व ब्रह्माण्ड में अनुपम स्थान प्राप्त है ।भारतीय चिंतन में आदिकाल से यही बोध है कि हमारी पृथ्वी मात्र भूमि का टुकड़ा न होकर जीती-जागती-जीवंत माँ है।इसी संवेदना से अभिभूत होकर वेदों के ऋषि यह घोषणा कर पाने में सक्षम हो पाए कि---
" माता पृथ्वीः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।"
धरती हम सभी जीवों की धरणी है अर्थात वह हम सभी को पैदा करती है हमें धारण करती है और हमारा पोषण भी करती है
सोना, चाँदी , हीरा, मोती, अन्न, जल , हवा पैट्रोल सभी तो हमें पृथ्वी से मिलता है ;क्योंकि यह धरती रत्नगर्भा है और हम सब इसकी संतानें हैं ।
" हम सब तेरी ही सन्तानें
पृथ्वी माता तेरी जय हो
ममता की छांव हमें देती
पृथ्वी माता तेरी जय हो "
श्री वंकिम चन्द्र चटर्जी की सुन्दर शब्दावली से हम धरती की वंदना करते हैं-- 'वन्दे मातरम्'। सुजलाम् सुफलाम, मलयज शीतलाम् । धरती की यह कल्पना सचमुच ही बड़ी मनोहारी है ।वह जीवन दायनी, स्रोतस्विनी है, पावन है और बिना किसी भेदभाव के अपना असीमित प्रेम लुटाती है।
पृथ्वी निरंतर घूम रही है, लेकिन हम में से किसी को उसकी गतिशीलता का कोई एहसास नहीं है; क्योंकि अन्य सब कुछ भी तो उसी के साथ गतिशील है ।पृथ्वी की गतिशीलता का तो तब पता चला जब उसे सूर्य की स्थिरता के परिप्रेक्ष्य में अनुभव किया गया।धरती पर सभी कार्य समय पर होते हैं, निर्धारित समय पर वर्षा होती है,निर्धारित समय पर सर्दी, गर्मी की ऋतुएँ आती हैं ।
विगत दो- तीन शताब्दियों से जब से औद्योगीकरण ने अपने पैर पसारने शुरु किए तब से धरती माँ के सीने को छीलने की विकृति भी पूरे ज़ोर से पनपने लगी। तभी से स्वार्थ के वशीभूत तथाकथित बुद्धिवाद ने यह दलील दावे के साथ प्रस्तुत की कि पृथ्वी एक निर्जीव भूमि का टुकड़ा है ।इसके बाद से अब तक पृथ्वी का बहुत अधिक मात्रा में दोहन हुआ है।
विगत कुछ वर्षों में हुए वैज्ञानिक प्रयोग ऐसे तथ्यों का प्रतिपादन करते नज़र आते हैं कि धरती और कुछ नहीं बल्कि एक जीवित तंत्र है जो अपने वातावरण का न केवल निर्माण करती है बल्कि उसी सक्षमता के साथ उसका संतुलन भी बनाए रखती है ।
इन्हीं दिनों अमेरिका के अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र नासा में कार्यरत जेम्स लवस्टाॅक ने मंगल पर जीवन की संभावना का पता लगाने के लिए वहाँ के वातावरण का अध्ययन किया । जब उस अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों की तुलना धरती के वातावरण से की तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा ।उन्होंने पाया कि मंगल ग्रह के वायुमंडल में बहुत कम ऑक्सीजन, बहुत ज्यादा कार्बन-डाइऑक्साइड एवं न के बराबर मीथेन गैसें थीं; जबकि धरती के वायुमंडल में बहुत ज्यादा ऑक्सीजन, कम कार्बन-डाइऑक्साइड
और संतुलित मात्रा में मीथेन गैसें उपस्थित थीं ।
डाॅ लवस्टाॅक जानते थे कि पिछले चालीस करोड़ वर्षों में सूर्य का तापमान 25 प्रतिशत बढ़ गया है, जिसके कारण हमारे सौरमण्डल के प्रत्येक ग्रह का तापमान 25 प्रतिशत बढ़ा है, लेकिन मात्र पृथ्वी ही ऐसी है जो अपना तापमान उसी स्तर तक रोके हुए है, जैसा आज से चालीस करोड़ वर्ष पूर्व था।उन्होंने इसके आधार पर अनुमान लगाया कि धरती एक जीवित प्राणी की तरह सोचती है और स्वप्रबंधन के माध्यम से आवश्यकता के अनुसार अपने वातावरण और तापमान को संतुलित करती रहती है, ताकि यहाँ प्राणी मात्र का जीवन निर्बाध चलता रहे।
इस वैज्ञानिक सोच को संतुष्ट करने के लिए उन्होंने प्रसिद्ध माइक्रोबायलोजिस्ट लिव मार्ग्यूलिस के साथ प्रमाण एकत्रित करने प्रारम्भ किए।उन्होंने पाया कि धरती के वातावरण में ऑक्सीजन एवं कार्बन-डाइऑक्साइड सदा एक निश्चित अनुपात में बनी रहती है; क्योंकि जितनी ऑक्सीजन हमारे शरीर के भीतर जाती है, उतनी ही कार्बन-डाइऑक्साइड बाहर आ जाती है।इसी प्रकार पहाड़ों के और ज्वालामुखी आदि के अध्ययन में पाया कि ये सब भी धरती के वातावरण में संतुलन बनाने में सहयोग करते हैं ।
धरती के वायुमंडल एवं वातावरण के संतुलन को बनाए रखने में मात्र जीवित प्राणी जैसे--मनुष्य, पौधे, बैक्टीरिया आदि ही भाग नहीं लेते, बल्कि पहाड़, चट्टानें, समुद्र एवं ज्वालामुखी भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।आज के समय में जरूरत है - विज्ञान के आध्यात्म सम्मत होने की, और आध्यात्म के वैज्ञानिक सम्मत होने की ।वैदिक काल के ऋषियों के अनुसंधान से जो दर्शन विकसित हुआ, उसी दर्शन के आधार पर समाज की उन्नति सम्भव है।
वैदिक ऋषियों ने बड़े आत्मविश्वास के साथ अथर्ववेद
( 12/ 1/12) में यह उद्घोषणा की है---
यत् ते मध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं
यास्त ऊर्जस्तन्वः संबभूवुः।
तासु नो धेह्यभिः नः पवस्व
पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तुः।।
आज जब विज्ञान भी इसी वैदिक चिंतन का प्रतिपादन करता नज़र आता है तो हम भी प्रकृति और पृथ्वी को माता मान कर उसका आदर करें ।
पृथ्वी माता तेरी जय हो, पृथ्वी माता तेरी जय हो ।
सादर अभिवादन के साथ धन्यवाद ।
बहुत ही अच्छी और उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद पवित्रा जी 🙏
एक बार फिर से पढ़ कर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण