head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): "गायत्री मंत्र साधना द्वारा शरीर में स्थित सुषुप्त शक्ति केंद्रों का जागरण सम्भव "

Monday, November 25, 2019

"गायत्री मंत्र साधना द्वारा शरीर में स्थित सुषुप्त शक्ति केंद्रों का जागरण सम्भव "

            ●●● गायत्री मंत्र साधना ●●●
           
                   "जय- जय हो माँ गायत्री की 
                      जय हो वेदों की माता की" 

इस सृष्टि के आदि से अब तक जितना उच्चारण गायत्री मंत्र का हुआ है, उतना किसी का नहीं हुआ।गायत्री 'वैदिक संस्कृति' का एक छन्द है।गायत्री का अर्थ है- "प्राण रक्षक"।
गय =प्राण
त्री = त्राण ( संरक्षण करने वाली)

गायत्री मंत्र केवल पूजा-उपासना का या जप- ध्यान करने का छोटा सा 'मंत्र' मात्र नहीं है।यह मंत्र तो विश्व-ब्रह्मांड की सर्वोपरि शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।शब्द शक्ति ( मंत्र शक्ति )वस्तुतः मानवीय काया तथा 'अंतरिक्ष जगत' को प्रभावित करने वाली एक समर्थ ऊर्जा शक्ति है, यह मन एवं अंतःकरण से प्रकट होती है।

भारतीय ज्ञान- विज्ञान की उत्पत्ति वेदों से हुई ।वेद ज्ञान को कहते हैं ।वेद चार हैं' ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद ।ये चारों वेद वस्तुतः गायत्री मंत्र के तीन चरण व एक शीर्ष ही हैं, जिन्होंने कालान्तर में चारों वेदों के रूप में विस्तार पाया है।इसलिए माँ गायत्री को 'वेदमाता' कहकर पुकारा गया है।

ऋषि-मुनियों ने 'गायत्री महामंत्र' के तीन चरण बताए हैं, इसलिए गायत्री को त्रिपदा भी कहा गया है।
गायत्री के प्रारंभ व अंत में "ओउम् " यह स्पष्ट करता है कि मानव- जीवन का 'अथ' व 'इति' केवल परमात्मा है।
गायत्री का  प्रथम चरण "तत्सवितुर्वरेण्यं"  की शक्ति को धारण करने वाला साधक तेजस्वी बनता है।
गायत्री महामंत्र का दूसरा चरण "भर्गोदेवस्यधीमहि" देवत्व का वरण करने की, शालीनता को अपनाने की एवं सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
इस मंत्र के तृतीय चरण "धियो यो नः प्रचोदयात् " में बुद्धि को परिमार्जित करने वाला 'गीता' का दर्शन है।

गायत्री मंत्र तत्वज्ञान एवं दर्शन का सार है, इसका प्रत्येक अक्षर जाग्रत बीजमंत्र है।गायत्री मंत्र की 'सूक्ष्म शक्ति' ऊर्जा रूप में ओंकार गुंजन के रूप में समग्र अंतरिक्ष में व्याप्त है।इसलिए इस मंत्र के उच्चारण का प्रभाव द्विगुणित हो जाता है।क्योंकि समधर्मी कंपन एक दूसरे को प्रभावित करते हैं ।गायत्री मंत्र के रहस्यों का अध्ययन करने पर जीवन के अनेक रहस्य उद्घाटित होते हैं ।इस तरह प्रकाश का स्रोत, ज्ञान का स्रोत है 'गायत्री' ।

असंभव को संभव करने वाली शक्ति- साधना की परम विद्या गायत्री महामंत्र के चौबीस अक्षरों में समाई है।जो अनुभवी हैं, वे इस सच्चाई को जानते हैं ।मंत्र जप का लाभ मंत्र को आत्मसात करने वाले को ही मिलता है।इसके सभी  अक्षर ऐसे सद्गुणों की ओर संकेत करते हैं , जो साधक के व्यक्तित्व के हर पक्ष का सम्यक रूप से विकास करते हैं।गायत्री मंत्र की शक्ति संपदाओं को अर्जित करने के लिए उससे जुड़े तत्वज्ञान को समझकर अपने व्यक्तित्व में आत्मसात् करना पड़ता है।

मंत्र की शक्ति उसके क्रमबद्ध रूप से बहुत समय तक जप करने से उभरती है।गायत्री मंत्र के अनुष्ठान व पुरश्चरण का यही रहस्य है।निराकार ब्रह्म के उपासक नियमित अपने घर में गायत्री मंत्र की पाँच या सात आहुतियों के साथ हवन करते हैं ।ओउम् एवं गायत्री मंत्र के जप से एक प्रकार के सुखद वातावरण का निर्माण होता है।

गायत्री का प्रत्येक अक्षर एक विशेष यौगिक ग्रन्थि को खोलता है 
एवं उसको जाग्रत करने के साथ ही निहित शक्ति को जगाता है।
विभिन्न प्रकार के शोधों के अनुसार- गायत्री मंत्र जप से मस्तिष्क की पिट्यूटरी ग्रन्थि से बारह प्रकार के हार्मोन्स स्रावित होते हैं।वस्तुतः मंत्र जप से एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय (इलेक्ट्रो मैग्नेटिक) तरंगें उत्पन्न होती हैं ।इससे प्राणऊर्जा की क्षमता एवं शक्ति में वृद्धि होती है ।गायत्री में महामंत्र के सभी आयाम हैं ।
गायत्री मंत्र की साधना के आरंभ से ही 'तेजपुंज सूर्य'  की आध्यात्मिक चेतना का अंतःकरण में, चित्तभूमि में अवतरण होने लगता है।अनुसंधान कर्ताओं के अनुसार गायत्री मंत्र के नियमित जप से शरीर और मन के बीच एक लयात्मकता उत्पन्न होती है।

गायत्री महामंत्र छोटा सा शब्द- समुच्चय मात्र दिखाई पड़ता है किन्तु इसमें सृष्टि का समूचा ज्ञान एवं शक्तियाँ- सभी बीज रूप में सन्निहित हैं ।महर्षि विश्वामित्र बनने से पूर्व राजा विश्वरथ ने जब कठिन तप किया तो उन्होंने यह अनुभव किया कि विश्वामित्र अर्थात विश्व का मित्र बनकर ही गायत्री मंत्र तक पहुँचा जा सकता है ।
गायत्री मंत्र साधना आरंभ होते ही शरीर में स्थित चक्रों, ग्रन्थियों एवं उपत्यिकाओं को प्रभावित करने लगती है।चित्त में जन्म- जन्मांतरों से जमी संस्कारों व कर्मराशि के मैल की परतें टूटती हैं ।

गायत्री साधना अंधविश्वास नहीं, एक ठोस वैज्ञानिक कृत्य है और उसके द्वारा लाभ भी सुनिश्चित ही होता है।भविष्य में अचानक एक दैवी प्रवाह उमड़ेगा जो त्रिपदा गायत्री की महिमा को पुनः स्थापित करेगा।
गायत्री महामंत्र--भारतीय संस्कृति की परिभाषा, परिचय व पर्याय की पूर्णता है।
            "जय हो ब्रह्माण्ड प्रकाशिनी की
            जय हो वेदों की माता की 
            जय सिद्धि दायनी माता की
             जय हो वेदों की माता की" 
 सादर धन्यवाद ।

3 comments:

  1. सादर धन्यवाद
    जय श्री कृष्ण

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  2. हर बार कुछ और नया और अच्छा जानने समझने योग्य मिलता है आपके ब्लाग में,
    जय श्री कृष्ण , सादर अभिवादन 🙏

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