"भोर हुई, चाँद तारे छिपे
संसार में तेज प्रकाश हुआ
हे सूर्यदेव! तुमको प्रणाम"
सूर्य इस जगत की आत्मा है, जगत का केंद्र है।सूर्य समस्त जगत का आदिकारण है।इसलिए उसे आदित्य कहते हैं।सबको उत्पन्न करता है।इसलिए सविता कहते हैं ।
●●● सूर्य का वैज्ञानिक महत्व ●●●
वैज्ञानिक गणनाओं के अनुसार 4.5 अरब वर्ष पहले सूर्य व ग्रहों का निर्माण हुआ। 3.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी पर प्राथमिक सूक्ष्म जीवाणुओं की उत्पत्ति हुई ।प्रकाश के रूप में सूर्य से आने वाली प्राणशक्ति द्वारा ही पृथ्वी पर जीवन का आविर्भाव हुआ।
स्थूल विज्ञान की दृष्टि से सूर्य 'स्पाइरल' नामक आकाश गंगा के परिवार के लगभग डेढ़ खरब तारों में से एक छोटा सा तारा है।सूर्य परिवार में नौ ग्रह, ग्रहों के अनेक उपग्रह हैं।इसके अतिरिक्त हजारों छोटे ग्रह तथा ग्रहिकाएँ धूमकेतु, पुच्छल तारे इस सौर परिवार में सम्मिलित हैं।यह सब सूर्य की प्रबल आकर्षण शक्ति में जकड़े हुए निरन्तर उसकी परिक्रमा करते रहते हैं।
अपने इस सारे परिवार को लेकर सूर्य 'स्पाइरल' आकाश गंगा की परिक्रमा करता है।एक परिक्रमा में सूर्य को पच्चीस करोड़ वर्ष लगते हैं।ज्योतिषियों का अनुमान है कि जब से सूर्य पैदा हुआ है, तब से अब तक वह ऐसी सोलह परिक्रमाएँ कर चुका है।
●●●सूर्य का आध्यात्मिक महत्व ●●●
सूर्य की गर्मी और रोशनी सबको दीखती है, यह उसकी स्थूल शक्ति है।एक और सूक्ष्म सत्ता उसके अन्तर में मौजूद है वह है--जीवन शक्ति ।सूर्य की आत्मा को ही 'महाप्राण' कहा गया है।हर व्यक्ति के अन्दर उसकी जीवात्मा में सूर्य के समान प्रकाश मौजूद है।जो साधक आत्मदर्शन कर पाते हैं, वे उस प्रकाश तक पहुँचते हैं और तब उनका व्यक्तित्व आलोकित हो उठता है।
'
सूर्य नमस्कार' एक प्रभावी यौगिक क्रिया है।सूर्य नमस्कार स्वयं में सूर्य आराधना भी है और स्वास्थ्य का व्यायाम भी।इससे अनेक प्रकार के रोगों का निराकरण भी होता है।
वैज्ञानिक अब तक सूर्य प्रकाश की स्थूल गतिविधि को ही जान सके हैं। हमारा मानसिक सम्बन्ध भी सूर्य से है, जिसे मंत्र साधना के द्वारा अनुभव किया जा सकता है।गायत्री महाविज्ञान वस्तुतः सूर्य का ही विवेचन है।
"गायत्री के देव तुम्हीं हो
ध्यान के हो विज्ञान
हे सूर्यदेव ! तुमको प्रणाम"
सूर्य सर्वव्यापी और सर्वान्तर्यामी तत्व है।अब चाहे उसे आत्मा या प्राणपुञ्ज कह लें या हाइड्रोजन का जलता हुआ गोला ।आत्मा का स्वरूप भी प्रकाशयुक्त माना गया है, ध्यान प्रयोजन में आत्मा को सदा ज्योति मानकर ही चला जाता है।परम योगियों को 'आत्मसाक्षात्कार' सदा ज्योति पुँञ्ज के रूप में ही होता है।ध्यान में सबसे ऊँची स्थिति में तो ब्रह्म ज्योति ही एक मात्र अवलम्बन रह जाती है ।यही आध्यात्मिक यज्ञाग्नि है , इसी को आदित्य, दिव्य आभा कहते हैं ।
निरंतर ध्यान करते - करते यह दिव्य आभा जिसे जितनी मात्रा में मिलती चली जाती है, वह परब्रह्म परमात्मा के साथ एकाकार होता चला जाता है।संसार के समस्त जड़- चेतन में यही ज्योति प्रकाशमान है, इसी से देवशक्तियाँ और पंचतत्व अपना कार्य कर सकने में समर्थ होती हैं ।ग्रह- नक्षत्रों में यही प्रकाश जगमगा रहा है।
प्रकाश सूर्य से ही मिलता है, गर्मी सूर्य से ही मिलती है, वर्षा सूर्य कराता है।भूमि और पानी को अलग- अलग तरह की गर्मी भी वही देता है।लकड़ी, पत्थर का कोयला, जलप्रपात और पैट्रोल आदि सभी तत्व सूर्य ही देता है।यह सब वह अपनी बाहरी क्रिया और गर्मी से करता है।उसके तल का तापमान 11000 फारेनहाइट है।
पृथ्वी पर किसी वस्तु को 11000फारेनहाइट की गर्मी में सेकेन्ड तक ही रखा जा सकता है।वनस्पति का 95% भाग सूर्य से ही विकसित होता है।
हमें शायद इस बात का अन्दाजा नहीं है, कि हम एक ग्रह होने के नाते अपने सौरमण्डल के कितने श्रेष्ठ स्थान पर हैं ।हमारी सूर्य से दूरी भी एकदम ऐसी है, जैसे किसी ने स्केल से खींचकर तय की हो।सूर्य निरंतर हमें अनुशासन, संतुलन व निरंतरता की सीख देता है।वैज्ञानिकों का कहना है कि सूर्य इन दिनदिनों बदलाव के दौर से गुजर रहा है ।दुनिया भर के वैज्ञानिक इसका अध्ययन करने में जुटे हैं ।इस जगत में सूर्य भगवान् ही हमें साक्षात दर्शन देते हैं ।
" सुबह सबेरे सूर्य रूप में प्रभु आते हैं
जग में प्रकाश फैलाते हैं।"
हे सूर्यदेव !आप ही इस जगत को धारण करते हैं।आपसे ही यह लोक प्रकाशित होता है।आप ही इस जगत की आत्मा हैं ।
"हे जग के नयन, मेरे जीवन धन
करूँ तुमको नमन,करूँ तुमको नमन"
आप सभी पढ़ने वालों को सादर धन्यवाद।
Ati prernadayak Divya prayas
ReplyDeleteआपको सादर अभिवादन
Deleteजय श्री कृष्ण
सूर्यदेव के बारे में अच्छी और बहुत सारी जानकारी देने वाला बहुत ही अच्छा ब्लाग,
ReplyDeleteआपको शत शत नमन
आपको सादर अभिवादन
Deleteजय श्री कृष्ण
आपको सादर धन्यवाद
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
आज आंग्ल नववर्ष पर यह ब्लाग फिर से पढ़ और समझ कर अपने आपको अत्यंत उत्साह की अनुभूति हो रही है और स्वयं को भाग्यशाली समझता हूं कि आपसे जुड़ने का सौभाग्य मिला
ReplyDeleteजब मौका लगता है , यह ब्लाग पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता है ,सादर प्रणाम आपको 🙏
ReplyDeleteओम भास्कराय नमः