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Wednesday, November 13, 2019

"जल है तो कल है' शुद्ध जल के संरक्षण में पेड़-पौधे कितने आवश्यक


                      ●●● जल है तो कल है ●●●
प्रकृति ही जल का मूल स्रोत है, अतः शुद्ध जल के संरक्षण के लिए व जल प्रदूषण दूर करने के लिए प्रकृति का संतुलन अति आवश्यक है।पेड़ ऐसी प्राकृतिक संपदा है, जिसका यदि विनाश होता है, तो मनुष्य जीवन की सुखद संभावनाओं की आशा नहीं की जा सकती।
  सामान्यतः हम सोचते हैं कि पानी के कारण पेड़ हैं जब कि सच्चाई यह है कि पेडों के कारण पानी है।यदि जंगल नहीं होंगे तो कुछ समय बाद नदियाँ भी नहीं बचेंगी।
   पानी को व्यर्थ न बहाना - यह अति आवश्यक है, साथ ही पानी के स्थाई समाधान के लिए समग्र पर्यावरण की रक्षा अनिवार्य है।
     वर्षा ऋतु के बादल त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपना अस्तित्व मिटाकर हमें जल प्रदान करते हैं- अतः हमारा भी कर्तव्य है कि जीवन में जल की उपयोगिता को समझते हुए जल संरक्षण करें ।
शहरीकरण के साथ शहर में पेडों की वृद्धि हो और हरे-भरे वन- उपवन बनाए जाएँ ।देश भर में नदियों के किनारे भवन-निर्माण कार्य रोककर वृक्ष लगाए जाएँ ।आज की वास्तविकता यह है कि हमारे देश की 70% नदियाँ प्रदूषित हैं।हम सब की प्राथमिकता होनी चाहिए कि जीवन-दायनी नदियों को प्रदूषित होने से बचाएँ ।
   शुद्ध जल के स्थाई समाधान के लिए वन व जंगलों का विस्तार होना आवश्यक है।
    पर्यावरण संतुलन के लिए जनसँख्या को नियंत्रित करने की कोशिश भी अनिवार्य है क्योंकि जनसँख्या वृद्धि से हमारी जरूरतें बढ़ती हैं और हमारे वन - जंगल कम होते चले जाते हैं ।अधिक भवन- निर्माण के कारण भू जल- स्तर कम हो रहा है।
  भूमिगत जल- स्तर के संतुलन के लिए 33% वन- जंगल ( कच्ची भूमि) होना जरूरी है।
   भारत में औसतन 110 सेंटीमीटर वर्षा होती है जो अधिकांश देशों से बहुत ज्यादा है परंतु हम इस बरसात के जल का महज 15% ही संचित कर पाते हैं ।शेष जल नदियों से होते हुए समुद्र में जाकर मिल जाता है।धरती पर पानी सदा एक निश्चित मात्रा में रहता ही है बस संतुलन बिगड़ गया है।
   भारत समेत 14 देशों के पीने के पानी पर किए गए विश्लेषण में यह पाया गया कि 83 % पानी में माइक्रोप्लास्टिक शामिल है।अतः शुद्ध जल बचाने के लिए प्लास्टिक का उत्पादन व उपयोग कम करना पड़ेगा ।
       हमने भौतिक विकास पर ध्यान दिया लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कदम नहीं उठाए।अब धीरे-धीरे लोगों में जल - संरक्षण हेतु जागरूकता बढ़ रही है।सरकारें भी इस ओर ध्यान दे रही हैं ।
      आने वाली पीढ़ियों को जल- संकट का सामना न करना पड़े- इसके लिए जल संरक्षण हेतु पेड़- पौधो का महत्व समझना ही पड़ेगा ।
      " हम प्रकृति के बनें पुजारी "

3 comments:

  1. आज की सबसे ज्वलंत समस्या पर आपने जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करी है , माइक्रोप्लास्टिक के बढ़ते खतरे को भी उजागर किया है , मेरा मानना है कि आप हमेशा बहुत ही अच्छी कोशिश कर रही है और जितने भी आपके ब्लाग/ पोस्ट पढ़ते हैं उनके ह्रदय और मस्तिष्क पर एक विशिष्ट छाप रहे जाती है और हम सब भी आप से प्रेरित हो कर कुछ न कुछ इसी दिशा में करने को अग्रसर होते हैं ।
    बहुमुखी प्रतिभा की धनी पवित्रा जी को मेरा करबद्ध प्रणाम

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  2. कोशिश एक आशा-
    आपकी बातों से मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।आपको सदा सादर अभिवादन व जय श्री कृष्ण

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