इस वर्ष 1 ( एक ) जून को गंगा दशहरा पर्व है।गंगा भारतीय संस्कृति का आधारस्तंभ है ।गंगा दशहरा के दिन माँ गंगा का धरा पर अवतरण हुआ ।इस पर्व को गंगा दशहरा इसलिए कहते हैं ; क्योंकि इस दिन दस विशेष ज्योतिष योग एक साथ होते हैं ।
इस दिन ज्योतिष की दृष्टि से ज्येष्ठ मास ,शुक्ल पक्ष , दशमी तिथि , वार, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग , गर करण , आनंद योग , कन्या राशि का चन्द्रमा, वृष राशि का सूर्य---- ये दस विशेष योग एक साथ होते हैं, इसी कारण इसे दशहरा अर्थात दस योगों को हरा या प्रसन्न करने वाला कहा जाता है ।इन दस ज्योतिष योगों के कारण इस दिन गंगा नदी के जल में दिव्य प्रकाश का अवतरण होता है, जिसके कारण यह जल भौतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से परम लाभकारी होता है।
इस पर्व पर लाखों श्रद्धालु गंगा मैया के पवित्र जल में स्नान करके स्वयं को सौभाग्यशाली समझते हैं ।सभी श्रद्धालु गंगा मैया के आँचल का स्पर्श पाकर संतापमुक्त हो जाते हैं ।ऐसा माना जाता है कि गंगाजल से जीवात्मा के सभी जन्मों के पाप धुल जाते हैं व इसके जल में रोगों को दूर करने की शक्ति भी है।
●● ● गंगा का अवतरण ●●●
" शिव की जटा से प्रकट हुई तेरी निर्मल धारा
धरती माँ को पावन कर सारे जग को तारा "
गंगा माँ है , गंगा का धरती पर अवतरण ही शापयुक्त संतानों को सांसारिक संताप से मुक्त करने के लिए हुआ है। शापग्रस्त सगर सुतों को उबारने के लिए भागीरथ ने कठोर तप करके गंगा का आह्वान किया था। अपने दिव्य गुणों के कारण गंगा नदी विश्व की सबसे पवित्रतम नदी मानी जाती है ।गंगा की मान्यता सभी पुराणों में है, सभी स्थानों पर है।
कहते हैं कि राजा भगीरथ के पूर्वज राजा सगर के साठ हजार पुत्र थे ।साठ हजार उनके पुत्र होंगे कि नहीं होंगे , लेकिन साठ हजार उनकी प्रजा तो होगी ही , और ये सभी अपने अहंकार के कारण कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो गए थे ।अब सबको शापमुक्त करना था ।देश अभिशाप से मुक्त हो , हमारे पूर्वज अभिशाप से मुक्त हों , हमारा कुल अभिशाप से मुक्त हो और इसके लिए रघुकुल ने , इक्ष्वाकुकुल ने , मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पूर्वजों ने अनवरत पीढ़ी-दर-पीढ़ी साधना की, गंगा के अवतरण के लिए ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया , भगवान शिव को प्रसन्न किया, ऋषि जनों को प्रसन्न किया और तब गंगा हिमालय की कोख से अवतरित होकर गंगासागर तक पहुँचीं ।
●●● सनातन संस्कृति में गंगा का महत्व ●●●
गंगा शब्द से परिचय होता है -- भारत की पवित्रता का , भारत की
संस्कृति का।गंगा की गरिमा का उल्लेख भारत के प्राचीन साहित्य में जगह-जगह पर आया है कहते हैं कि आर्य यानी सभ्य मानव हिमालय से आए, हिमालय में जन्मे ।गंगा का उद्गम हिमालय में ही है ।हिमालय और गंगा भारत का परिचय हैं।
सनातन धर्मावलंबियों के घर में गंगा जल को सहेजकर अवश्य रखा जाता है ; क्योंकि बिना गंगा जल के कोई भी पावन कार्य अधूरा माना जाता है ।सनातन धर्म के सभी ग्रन्थों में गंगा की महिमा का गुणगान किया गया है।हर युग के कवि , साहित्यकारों एवं विचारकों ने गंगा का गुणगान किसी न किसी रूप में अवश्य किया है।
यूरोप के कवियों ने भी गंगा के गुणों का गान किया है।अमेरिका में वाल्डेन के तट से थोरो ने गंगा की पावनता का अहसास किया।
गंगा के दिव्य गुणों के कारण विश्व के कोने-कोने के लोग गंगा से अभिभूत रहे हैं ।हिंदू ही नहीं, मुगल सम्राटों ने भी गंगा के पावन जल का स्पर्श व पान करके अपने जीवन को धन्य किया।
गंगा प्रकट रूप में मनुष्य के पापों का शमन कर उसे पवित्र करती है।गंगा माता के रूप में वन्दनीय है ।गंगा किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करती और समान भाव से सबका पालन-पोषण करती है ।गंगा के बिना भारत देश की पवित्रता व महानता अधूरी है।गंगा आध्यात्मिक जीवन का मुख्य सोपान है ; गंगा से हमें पवित्रता मिलती है।
गंगा नदी के 2500 किलोमीटर लंबे मार्ग पर मानव सभ्यता व संस्कृति फलती-फूलती रही ।गंगा एक बड़े भूखंड की जीवन रेखा है ।पूरे भारतवर्ष की संस्कृति के तार गंगा से जुड़े हैं ।हिमालय की कृपा से वनों में विचरण करते हुए जड़ी-बूटियों एवं खनिज तत्वों का सत्व गंगा में मिल जाता है जो इसके जल को औषधीय गुणों से भरपूर कर देता है।
गंगा ठहरी स्वर्ग लोक की वासिनी । इसलिए दैवी गुण तो गंगा को विरासत में मिले हैं ।ब्रह्मा जी के कमंडल , विष्णु के चरण नख से निस्सृत होने व देवाधिदेव शिव की जटाओं से अवतरित होने के कारण गंगा का दिव्यत्व सहज रूप से अद्वितीय रहा है।गंगा के तट पर आत्मानुसंधान में निमग्न ऋषि-मुनियों, यति-तपस्वियों की तपःऊर्जा भी गंगा में समाहित होती रहती है।अनेक तीर्थों का जल गंगा में समाहित होता है जिससे गंगा चलता-फिरता प्रवाहमान तीर्थ बन जाती है ।
" एक बार तेरे द्वारे आकर , जिसने ज्योति जलाई
दूर हुए उसके सब संकट , उसने मुक्ति पाई
जय गंगा मैया , जय गंगा मैया "
गंगा नदी हम सबको शीतल, पवित्र, मीठा जल देती है लेकिन आज उसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है ।यदि गंगा नदी की वर्तमान स्थिति को सुधारा नहीं गया तो इतिहास में गंगा नदी के अवतरण व प्रवाहमान होने के समय की एक पौराणिक कथा मात्र रह जाएगी , फिर शायद उसे बहते हुए नहीं देख सकेंगे।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।