पेड़ पौधे भी आपस में संवाद करते हैं और अपना संदेश एक-दूसरे तक पहुँचाते हैं, यह बात उतनी ही सत्य है जितना सत्य मनुष्यों का संवाद व अन्य पशु-पक्षियों का संवाद है।वास्तव में वृक्षों का अपना एक संचार तंत्र होता है , जिसके माध्यम से वे अपना संदेश प्रसारित करते हैं ।
हम भले ही वृक्षों के संवाद को न महसूस करते हों, लेकिन वे विभिन्न रूपों में संवाद करते ही हैं और प्रकृति को सतत देने के अपने दायित्व को निभाते रहते हैं ।आखिर पेड़-पौधे आपस में किस तरह बातचीत करते हैं- यह जानने के लिए पर्यावरणविद्
जिज्ञासा वश शोध करते रहते हैं ।
●●वृक्षों की संचार व्यवस्था पर पीटर वोल्लेबेन की शोध●●
पेड़-पौधों की संचार व्यवस्था पर गहन शोध करने वाले 'पीटर वोल्लेबेन' ने पेड़-पौधों की संचार व्यवस्था को सत्य प्रमाणित किया है ।पीटर वोल्लेबेन ने पेड़-पौधों व जीव-जन्तुओं पर दो अनूठी किताबें (दि हिडन लाइफ ऑफ ट्रीज, दि इनर लाइफ ऑफ एनीमल्स ) लिखी हैं ।इस कारण अब पीटर दुनिया के पर्यावरणविदों और जीवविज्ञानियों की चर्चा के दायरे में आ गए हैं ।
' दि हिडन लाइफ ऑफ ट्रीज' पुस्तक में " वर्ल्ड वाइड वेब' की तर्ज पर 'वुड वाइड वेब' शब्द का प्रयोग किया है ।इनका कहना है कि अगर 'वर्ल्ड वाइड वेब' मनुष्यता के इतिहास की सबसे बड़ी संचार क्रांति का आधार है तो 'वुड वाइड वेब' भी इसमें पीछे नहीं है ; क्योंकि पेड़-पौधों में भी अद्भुत संचार तंत्र होता है ।पीटर के अनुसार-- वन जैव-विविधता की प्रयोगशाला होते हैं ।
पीटर वोल्लेबेन ने पेड़ों के लिए जो 'वुड वाइड वेब' की संज्ञा दी है , वह वास्तव में पेड़ों का एक विशिष्ट संचार तंत्र है , जिसका माध्यम होते हैं--- मिट्टी में पाए जाने वाले पादप-कवक। ऊपर से सभी पेड़ चाहे कितने अलग दिखाई देते हों , लेकिन धरती के भीतर जड़ों के माध्यम से और पादप-कवक के नेटवर्क के माध्यम से वे सभी एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं ।अगर किसी जंगल को खोद दिया जाए , तो हम यह पाएँगे कि जंगल की उस धरती के भीतर पेडों की जड़ों व कवकों का एक घना संजाल बिछा हुआ है, इसी को पीटर वोल्लेबेन ने 'वुड वाइड वेब' कहा है।
वास्तव में पेड़-पौधे हमसे भी संवाद करना चाहते हैं लेकिन उनके पास संवाद करने के लिए हमारी तरह भाषा नहीं है इसलिए वे दूसरे माध्यमों से स्वयं को व्यक्त करते हैं और अपना संवाद संप्रेषित करते हैं ।हालाँकि पीटर के दिए गए पेड़-पौधों से सम्बंधित तथ्यों को पश्चिम के लोगों ने नहीं स्वीकारा और उन पर
'एंथ्रोपोमोर्फाइजिंग ऑफ ट्रीज' अर्थात 'वृक्षों के मानुषीकरण' का आरोप लगाया, इसके पीछे यह कारण बताया गया कि पेडों को मनुष्यों की तरह देखना मात्र भावुकता है ।
●●●साल वृक्ष सामुदायिक भावना का उदाहरण ●●●
पीटर वोल्लेबेन के मूल तथ्यों व संप्रत्ययों के अनुसार-- 'वृक्षों में सामुदायिकता की भावना मनुष्यों की तरह ही बहुत प्रबल होती है ।वृक्षों के भी अपने परिवार व समुदाय होते हैं ।' पीटर के इस तथ्य को दिल्ली की वनसंपदा पर प्रामाणिक व लोकप्रिय शोध करने वाले पर्यावरणविद् प्रदीप कृष्ण स्वीकारते हैं ।अपनी बात व तथ्यों को प्रमाणित करने के लिए वे साल वृक्षों का उदाहरण देते हैं ।
साल वृक्ष की लकड़ियों का इस्तेमाल भारत में बहुत बड़े व्यावसायिक पैमाने पर होता है ।ये वृक्ष हिमालय की तराई से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बंगाल से लेकर ओडिशा और उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश तक पाए जाते हैं ।वास्तविकता यह है कि साल वृक्ष बहुत ही सामुदायिक किस्म के होते हैं और यही कारण है कि किसी भी जगह ये अकेले नहीं पैदा होते ।
एक बार ब्रिटिश शासन काल में ब्रिटिश राज्य द्वारा रेल की पटरियाँ बिछाई जा रहीं थीं तब रेलवे स्लीपर्स बनाने के लिए बड़े पैमाने पर साल की लकड़ियों की माँग हुई थी ।उस समय भारतीय वन विभाग ने बहुत कोशिशें कीं कि साल वृक्षों को उनके दायरे के बाहर भी विकसित किया जाए, लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके और इस बात को भी वे नहीं समझ पाए कि ये साल के वृक्ष उस क्षेत्र के बाहर क्यों नहीं विकसित हो सकते हैं ।
वन विभाग को यह नहीं पता था कि साल के वृक्ष अकेले पैदा नहीं होते।भारतीय जन-मानस को अच्छी तरह से पता है कि किसी एक साल वृक्ष को अकेले विकसित करना असंभव है और ये सदा छोटे-मोटे वन के रूप में ही विकसित होते हैं तथा ये अपने सघन समुदाय के बाहर नहीं पनप सकते ।अगर किसी विकसित साल वृक्ष को ले जाकर दूसरी जगह रोप दिया जाए तो वह एकाकीपन का शिकार होकर मर जाता है ; क्योंकि वह अपने समुदाय से बात नहीं कर पाता ।
●टिम फ्लैनेरी के अनुसार वृक्षों की संवाद व्यवस्था पर शोध●
एक अन्य पर्यावरणविद् टिम फ्लैनेरी के अनुसार---- बचपन में हम सभी ने ऐसी कहानियाँ पढ़ी हैं, जिनमें वृक्षों की आँखें होती हैं, वे बोल सकते हैं, यहाँ तक कि चल भी सकते हैं ।ये निश्चित ही हमारी कल्पनाएँ हैं, लेकिन वृक्ष कभी भी इतने जड़वत् नहीं रहे, जितना कि हमने उन्हें मान लिया है अगर हम वृक्षों की जीवन-प्रणाली को समझ जाएँ तो हमारे लिए हरेक जंगल एक अनूठे आश्चर्यलोक में बदल जाएगा।
पेड़-पौधे किस तरह संवाद करते हैं, इस बारे में टिम फ्लैनेरी का कहना है कि पेडों के पास गंध को अनुभव करने की सामर्थ्य होती है ।इस बात का प्रमाण वे अफ्रीका के उदाहरण से देते हैं ।वहाँ यदि कोई जिराफ किसी एक प्रजाति के पेड़ को बार-बार चरने लगता है , तब उस प्रजाति के सारे पेड़ हवा में एक किस्म का रसायन छोड़ते हैं, यह संकेत होता है, अन्य पेडों को खतरे से अवगत कराने का । अन्य पेड़ इस रसायन की गन्ध से खतरे को भाँपने के बाद कहीं भागकर तो नहीं जा सकते , इसलिए इस खतरे की जानकारी होने के बाद वे एक किस्म का विषैला रसायन छोड़ने लगते हैं, जो बाद में उस जिराफ के मन में उन पेडों के प्रति अरुचि उत्पन्न कर देता है ।
●●● पेडों की संवेदनशीलता ●●●
पेड़-पौधों भी संवेदनशील होते हैं ।हम यह नहीं जानते कि पेड़-पौधे काटे जाने पर अपना दुःख आपस में किस तरह बाँटते हैं ।लेकिन पर्यावरणविदों के अनुसार--- पेड़ जब भी काटे जाते हैं तो वे अपने दुःख को अन्य पेडों के साथ मिलकर साझा करते हैं ।अगर किसी जंगल में कोई पेड़ काट दिया जाए , तो उसके आस-पास के पेड़ मिलकर उसके कटे हुए तने को पोषित करने का हर संभव प्रयास करते हैं ।
एक अकेला वृक्ष अनेक अर्थों में गूँगा और बहरा होता है ।वह कभी भी उतने लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता, जितने समय तक जंगल का एक वृक्ष जी सकता है ; क्योंकि अकेला वृक्ष अपने समान वृक्षों के समुदाय से अलग हो जाता है ।इस तरह वृक्षों में भी संवाद होता है , यह तथ्य प्रमाणित होता है ।
●महर्षि चरक की पेड़पौधों के साथ की जाने वाली संवादशैली●
हमारे देश भारत में महर्षि चरक वृक्षों से वाकई संवाद करते थे , उनका यह संवाद आध्यात्मिक संवाद की श्रेणी में आता है ।ऐसा कहा जाता है कि वे हर वृक्ष के पास जाते थे और वृक्ष वनस्पतियाँ
सांकेतिक भाषा में उन्हें अपनी उपयोगिता बताते थे ।वृक्ष-वनस्पतियों के इसी संवाद के आधार पर महर्षि चरक ने " चरक-संहिता" की रचना की , जो कि आयुर्वेद का एक प्रमुख ग्रन्थ है।
मानव जाति के लिए यह ग्रन्थ एक वरदान है।
हम अनुभव करें या न करें लेकिन यह सत्य है कि पेड़-पौधे भी आपस में संवाद करते हैं तथा वे संवेदनशील व सामुदायिक किस्म के होते हैं । अतः हमारा कर्तव्य है कि हम सदा पेड़-पौधों का सम्मान करें ।बिना जरूरत उनकी कटाई न करें ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
कण कण में ईश्वर 🙏
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