●●● सौन्दर्य बोध ●●●
सौन्दर्य बोध मनुष्य की जन्मजात विशेषता है ।सौन्दर्य सर्वत्र व्याप्त है , बस उसे देखने के लिए हमें अपनी आँखें खोलनी हैं ।बचपन की किलकारियों में, यौवन के रस व उमंग में, बुढ़ापे की अनुभवी झुर्रियों में सौन्दर्य के अलग-अलग रूप दिखाई देते हैं ।भगवान की बनाई इस दुनिया में कण-कण में सुन्दरता विद्यमान है।
सुन्दरता उसे कहते हैं जो हमारे मन को आकर्षित करे तथा हमें एक आंतरिक प्रसन्नता और खुशी का एहसास कराए।सुन्दरता के मायने सबके अपने-अपने व्यक्तिगत होते हैं ।एक ही वस्तु किसी को सुंदर और किसी को कुरूप लग सकती है, यह पूर्णतया व्यक्ति के सौन्दर्य बोध की क्षमता पर निर्भर है।सत्य यही है कि व्यक्ति या वस्तु का कोई भी गुण , जो हमें सुखद अनुभव प्रदान करे , वही सुन्दर है , वही खूबसूरत है।
●●● उपभोक्ता वादी संस्कृति में सौन्दर्य का आंकलन●●●
आज उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव में हमारे सौन्दर्यबोध की दृष्टि एकांगीपन का शिकार हो चुकी है।सुन्दरता के मूल्य और मानदंड, दैहिक सौन्दर्य के धरातल पर सिमट कर रह गए हैं ; जब कि देह तो सुन्दरता का एक माध्यम मात्र है।सुन्दर दीखने और सुन्दर होने में बहुत अन्तर है।प्रयः लोग शारीरिक सौन्दर्य, विशेषकर त्वचा के गोरेपन को ही सुन्दरता का मापदंड मान बैठते हैं और इसी भ्रांति के आधार पर अपना समय , ऊर्जा व धन सौन्दर्य प्रसाधनों में व्यर्थ ही नष्ट करते रहते हैं ।
हम लोग सुन्दरता का आंकलन त्वचा के गोरेपन से लगाते हैं ।सुन्दर होने के लिए कृतिमता का आवरण ओढ़े रहते हैं ।हमारे देश में न जाने कितने लोग ऐसे हैं, जो साँवले हैं और गोरा होना चाहते हैं ।लोग यह सोचते हैं कि गोरा दीखना ही सुन्दरता की पहचान है
और इसीलिए आजकल बाजार में न जाने कितने इस तरह के सौन्दर्य प्रसाधनों की भीड़ सी आ गई है।
त्वचा की खूबसूरती बढ़ाने का झूठा लालच देते सौन्दर्य प्रसाधन मनुष्य की मनोवैज्ञानिक कमजोरियों का लाभ उठाते हैं और मनुष्य इन प्रसाधनों पर अपना धन खर्च करता है और दिखावटी सौन्दर्य बढ़ाने के प्रयास में आंतरिक सौन्दर्य को बढ़ाने के प्रयासों से भी वंचित रह जाता है ।
अश्वेत और साँवला रंग भी सुन्दर हो सकता है , ऐसा लोग सोच नहीं पाते और गोरा होना चाहते हैं ।मैक्सिको सिटी में पैदा हुई अश्वेत लुपिटा न्योंगो को हाॅलीवुड फिल्म '12 इयर्स ए स्लेव' में बेहतरीन अदाकारी के लिए सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का पुरस्कार मिला ।इससे प्रभावित होकर एक अन्य लड़की ने लुपिटा को एक पत्र लिखा-- पत्र लिखने वाली लड़की भी अश्वेत थी और उसे लगता था कि काले रंग वाली लड़कियों को सफलता नहीं मिलती ।
'प्रिय लुपिटा , तुम बहुत किस्मत वाली हो ।तुम अश्वेत हो फिर भी तुम्हें इतनी शोहरत और सफलता मिली ।मैं अपने बाहरी सौन्दर्य को बढ़ाने के प्रयास में समय बिगाड़ती , उससे पहले तुम्हें मिली सफलता ने मुझे यह एहसास कराया कि सुंदरता बाहर की नहीं अंदर की होनी चाहिए ।तुमने मुझे बचा लिया ।
●●● सच्ची सुन्दरता ●●●
सच्ची सुन्दरता का मतलब है -- खूबसूरत एहसास और अच्छी भावनाएँ ।सच्ची सुन्दरता वही है , जो दिल और आत्मा को सुकून दे ।सुन्दरता वह नहीं जो बाहर से दीखती है, सुन्दरता एक एहसास है, जो इन्सान के अन्दर होती है।व्यक्ति की असली सुन्दरता उसके अच्छे कार्यों में निहित है।सुन्दरता का संबंध व्यक्तित्व की चमक से है और यह चमक तभी पैदा होती है जब व्यक्ति के भाव ,विचार व
व्यवहार अच्छे हों।
गोरा रंग और बाह्य सौन्दर्य के आधार पर लोगों को कुछ देर के लिए आकर्षित किया जा सकता है किन्तु केवल बाह्य सौन्दर्य के द्वारा आत्मीयता भरे संबंध बना पाना संभव नहीं होता। आत्मीय संबंध स्थापित करने के लिए आंतरिक सौन्दर्य ही आवश्यक है।
इस सदी की यह एक विडंबना ही है कि दैहिक सुंदरता की अपेक्षा आंतरिक सुन्दरता के महत्व से प्रायः सभी परिचित हैं, परंतु फिर भी दैहिक सुन्दरता को अधिक सफल समझा जाने लगा है और इस एकांगी सौन्दर्य दृष्टि ने देह सौन्दर्य का भी व्यवसाय और व्यापार बना डाला है।अनेक सौन्दर्य प्रतियोगिताएँ आयोजित होती रहती हैं जिनमें देह सौन्दर्य का ही आंकलन किया जाता है।
विश्व में विभिन्न स्थानों पर पैदा होने वाले लोगों के नाक-नक्श भिन्न-भिन्न होते हैं, जैसे --- जापानी , चीनी , अमेरिकी, रशियन, फ्रेंच, अफ्रीकी, भारतीय आदि।सभी लोगो की शारीरिक व चेहरे की बनावट में कुछ खास होता है, जो उन्हें उस स्थान विशेष की पहचान देता है।
विश्व के हर कोने में ऐसे लोग मिल ही जाते हैं, जिनमें से किसी की मुस्कान सुन्दर होती है , तो किसी की वाणी , किसी का व्यवहार तो किसी की प्रतिभा ।कोई जरूरी नहीं कि जो दिखने में सुन्दर हो , उसे ही सुन्दर कहा जाए ।सुन्दरता तो मनुष्य में किसी भी रूप में हो सकती है।
जो व्यक्ति जितने अच्छे भाव के साथ अपने कार्यों में लगा रहता है वह अपनी आंतरिक सुन्दरता को और निखारता है क्योंकि शारीरिक सुन्दरता तो उम्र बढ़ने के साथ-साथ कम हो जाती है।अपने अंदर सुन्दरता का एहसास जगाने के लिए सबसे पहले अपने आत्मविश्वास को जगाना होगा, फिर अपने अंदर के अच्छे गुणों को देखना होगा और फिर अपनी आंतरिक सुन्दरता को निहारना होगा।
सुखद एहसासों से मन को प्रसन्न कर देने सौन्दर्य बोध की दृष्टि कहीं खो सी गई है ।अब आवश्यकता है पुनः इसे प्राप्त कर लेने की , असली सुन्दरता के प्रति सजग हो जाने की।इसलिए सुन्दरता केवल शारीरिक सौन्दर्य तक सीमित नहीं है, इसकी सीमाएँ असीमित हैं ।
प्रकृति और परमात्मा ने मिलकर हरेक के जीवन में कुछ खास सुन्दरता को गढ़ा है , बस इसे महसूस करने व अभिव्यक्त करने की जरुरत है।तो आइए ! अपनी सौन्दर्यबोध की दृष्टि में इस वैभवशाली जीवन और प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को निहारें और सच्ची सुन्दरता के एहसासों को अंतःकरण में उतरने दें।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
तन की सुंदरता और मन की सुंदरता
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट आदरणीया
अच्छे और सच्चे विचार ,
प्रेरणादायक भी और मन को हर्षित करने वाले भी
धन्यवाद् 🙏