सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण काल में आहार क्यों नहीं करते - इस विषय पर वैज्ञानिक शोध होते रहते हैं ।वैज्ञानिकता का तात्पर्य वैज्ञानिक मानसिकता एवं वैज्ञानिक प्रयोगधर्मिता से है।यह तथ्य अनगिनत वैज्ञानिक प्रयोगों-परीक्षणों से प्रमाणित हो चुका है कि खगोल के प्रभाव भूगोल पर पड़ते हैं और यह खगोल-भूगोल एवं प्रकृति के सभी दृश्य-अदृश्य कारक मिलकर मानव जीवन पर अपना प्रभाव डालते हैं ।सूर्यग्रहण व चन्द्रग्रहण के समय भी वातावरण में कुछ परिवर्तन होता है।इस समय वातावरण में बैक्टीरिया व घातक कीटाणु प्रचुर मात्रा में होते हैं ।
भारतीय ऋषि इस तथ्य से भली-भाँति परिचित थे कि सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय वातावरण में कुछ परिवर्तन होता है, कुछ विषाक्तता होती है इसीलिए उन्होंने निर्देश दिया था कि सूर्य व चंद्रग्रहण के समय किसी भी प्रकार का अन्न अथवा आहार ग्रहण न किया जाए।उन्होंने उस दिन उपवास करने की परंपरा स्थापित की। तत्त्ववेत्ता ऋषि ग्रहण काल में पृथ्वी पर पड़ने वाले अंतर्ग्रहीय दुष्प्रभावों से अच्छी तरह से परिचित थे ।वे यह जानते थे कि ग्रहण के समय खान-पान का शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है ।
भारतीय ऋषियों ने ग्रहण काल में ग्रहण के समय अंतरिक्ष से आने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए उपासना , साधना आदि के निर्देश दिए हैं , जो आज भी विभिन्न स्थानों पर प्रचलित हैं ।सूर्य एवं चंद्रग्रहण के अवसर पर नदियों आदि में स्नान की परंपरा है।वैज्ञानिक भी मानते हैं कि प्रवाहित जल में प्राण-ऊर्जा की प्रचुरता रहती है।
●●● ग्रहण काल में किए गए वैज्ञानिक प्रयोग ●●●
अंतर्ग्रहीय प्रभावों के अध्ययन के क्रम में बोस इंस्टीट्यूट कोलकाता के माइक्रोबाॅयोलाजी के वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि सौरमण्डल के विकिरण से वायुमंडल के जीवाणुओं का नियंत्रण होता है । 16 फरवरी , 1980 के पूर्ण सूर्यग्रहण के अवसर पर कोलकाता के प्रख्यात 'बोटेनिकल गार्डन' के वायुमंडल में बैक्टीरिया,फंजाई एवं घातक जीवाणु प्रचुर मात्रा में पाए गए थे।
सूर्यग्रहण से पहले और उसके बाद विभिन्न जीवाणुओं का अध्ययन करने पर पाया गया कि सूर्यग्रहण के समय न केवल इनकी संख्या में वृद्धि हुई , बल्कि इनकी मारक क्षमता पहले से अधिक थी ।इस तथ्य की पुष्टि रीवा विश्वविद्यालयके 'विक्रम फिजिक्स सेंटर ऑफ एन्वायरन्मेंटल बाॅयोलाॅजी' के वैज्ञानिक प्रयोगों से हुई ।इन वैज्ञानिकों ने देखा कि #सूर्यग्रहण के अवसर पर पानी को खुला छोड़ देने पर उसमें विभिन्न प्रकार के विषाणु और जीवाणु आकर उसे विषाक्त कर देते हैं ।
आधुनिक युग में ग्रहण के समय के लिए बनाए नियमों का कम ही लोग पालन करते हैं ।ग्रहण के समय उपवास, स्नान, उपासना को कुछ लोग महत्वपूर्ण नहीं मानते , लेकिन नवीन वैज्ञानिक तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि ये सभी क्रियाएँ वैज्ञानिक हैं, जो शरीर सुरक्षा व उपचार के लिए सशक्त एवं सक्षम माध्यम हैं ।इसलिए स्थूल अध्ययन, विश्लेषण एवं उपचार के लिए किए गए प्रयत्नों के साथ-साथ अंतर्ग्रहीय प्रभावों की जानकारी रखना तथा उपचार के उपाय ढूँढना भी आवश्यक हो जाता है ।वस्तुतः यह सभी ज्ञान ज्योतिर्विज्ञान से सम्बंधित है।
भारतीय सनातन संस्कृति में ग्रहण के दौरान खाद्यान्न और दूध आदि में तुलसी के पत्ते डाले जाते हैं ।तुलसी कृमिनाशक होती है।
ग्रहण के दौरान मंदिरों के कपाट भी बन्द कर दिए जाते हैं ।सनातन संस्कृति में ग्रहण के समय दान की भी परम्परा है।
सभी तथ्यों को जान लेने के बाद अब हम सभी को ग्रहण के दौरान अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए एवं कुछ और नियम भी हैं जिनका पालन करना चाहिए ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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