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Monday, June 1, 2020

आध्यात्मिकता का अर्थ, आध्यात्मिकता का संबंध अंतर्यात्रा से, आध्यात्मिक जीवन की कसौटियाँ, आध्यात्मिकता द्वारा परमात्मा की अनुभूति

         ●●● आध्यात्मिकता  का अर्थ ●●●

        आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि व्यक्ति अपने अनुभव के धरातल  यह जाने कि वह स्वयं अपने आनंद का स्रोत है ।आध्यात्मिकता का वास्तविक संबंध व्यक्तित्व की अतल गहराई से है।आध्यात्मिकता की निधि उनके लिए है , जो जीवन के हर आयाम को पूर्ण जीवंतता के साथ जीते हैं और हर पल सजग व सक्रिय रहते हैं ।

 आध्यात्म का विषय ही मनुष्य के आंतरिक जीवन से जुड़ा हुआ है ।मनुष्य की वे सभी गतिविधियाँ जो मनुष्य को परिष्कृत,निर्मल बनाती हैं, आनंद से भरपूर करती हैं, पूर्णता का एहसास देती हैं, स्वयं का परिचय कराती हैं---- वे सब आध्यात्म के अंतर्गत आती हैं ।

लोगों ने अभी तक अध्यात्म व आध्यात्मिकता का सही अर्थ नहीं समझा है ।अधिकांश लोग यह समझते हैं कि आध्यात्मिकता का अर्थ है -- अभावग्रस्त जीवन जीना व स्वयं को कष्ट देना अर्थात आध्यात्मिकता जीवन-विरोधी व जीवन से पलायन है ; जबकि आध्यात्मिकता मूलतः व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया है।
   ●●● आध्यात्मिकता का संबंध अंतर्यात्रा से ●●●

आध्यात्मिकता का संबंध मनुष्य के आंतरिक जीवन से है और इसकी शुरुआत होती है -- उसकी अंतर्यात्रा से ।मनुष्य पूरी दुनिया में भ्रमण करता है लेकिन अंतर्यात्रा नहीं करता तथा अपने अंतर में प्रवेश ही नहीं कर पाता ।विरले ही होते हैं, जो इस अंतर्यात्रा में प्रवेश के अधिकारी होते हैं, इसके लिए सत्पात्र होते हैं। सामान्य जन आध्यात्मिक जीवन की पात्रता की कसौटी को जाने बिना ही अध्यात्म के मार्ग को कठिन समझ लेते हैं ।

बाहरी वेशभूषा व रहन-सहन से आध्यात्मिकता का कोई लेना-देना नहीं है ।आध्यात्मिक प्रक्रिया व्यक्ति की एक ऐसी अंतर्यात्रा है जिसमें निरंतर परिवर्तन घटित होता है और  इन परिवर्तनों के कारण उपजे उतार-चढ़ाव को सहने के लिए भी तैयार रहना चाहिए ।इसी कारण जो व्यक्ति आध्यात्मिक डगर पर आगे बढ़ते हैं, उनमें अदम्य साहस, सशक्त मन , स्वस्थ शरीर व संतुलित भावनाओं का होना जरूरी है।

अंतर्यात्रा के माध्यम से हम अपने व्यक्तित्व में जन्म-जन्मांतरों से पड़ी हुई गाँठों को खोल पाते हैं और अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर पाते हैं ।आध्यात्मिक मार्ग अपनाकर हम अपने बंधनों से मुक्त हो सकते हैं , स्वतंत्र हो सकते हैं  , स्वाधीन हो सकते हैं ।
 
                 आध्यात्मिकता न तो वैज्ञानिक क्रिया है और न ही सामाजिक ।यह शत-प्रतिशत हमारे अस्तित्व से संबंधित है।जब हम किसी कार्य में पूरी तन्मयता से डूब जाते हैं तो वहीं पर आध्यात्मिक प्रक्रिया की शुरुआत हो जाती है ; क्योंकि किसी चीज को सतही तौर पर जानना सांसारिकता है और उसे गहराई तक जानना आध्यात्मिकता है।

       ●●● आध्यात्मिक जीवन की कसौटियाँ ●●●

आध्यात्मिक जीवन की बहुत सी कसौटियाँ हैं , लेकिन कुछ ऐसी प्रमुख बातें हैं, जिन्हें जानकर यह  आंकलन किया जा सकता है कि हमारे अंदर आध्यात्मिकता का कितना अंश है ? जैसे किए जाने वाले कार्यों का उद्देश्य स्वार्थ न होकर परमार्थ है , तो यह आध्यात्मिकता की राह है ।यदि व्यक्ति अपने अहंकार, क्रोध , नाराज़गी, लालच, ईर्ष्या और पूर्वाग्रहों को गला चुका है तो समझ लो , वह आध्यात्मिक जीवन की डगर पर बढ़ रहा है ।

व्यक्ति की बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, पर यदि वह आंतरिक रूप से प्रसन्न रहता है तो इसका अर्थ है कि वह आध्यात्मिक जीवन को महसूस करने लगा है।यदि वह इस विशाल सृष्टि के सामने स्वयं को नगण्य और क्षुद्र मानने का एहसास कर पाता है तो वह आध्यात्मिक बन रहा है।

व्यक्ति के पास जो कुछ भी है , उसके लिए यदि वह सृष्टि या परमसत्ता के प्रति कृतज्ञता महसूस कर पाता है तो वह आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहा है । व्यक्ति में अपने संबंधियों के प्रति जितना प्रेम उमड़ता है , उतना ही अन्य सभी लोगों के लिए उमड़ता है तो वह आध्यात्मिक है।

 ●● आध्यात्मिकता द्वारा अदृश्य परमात्मा की अनुभूति ●●

आध्यात्मिक व्यक्ति को अपना संबंध परमात्मा से बनाना चाहिए ; क्योंकि वे ही एकमात्र पूर्ण हैं, जो उसके जीवन को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं ।परमात्मा यद्यपि प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, लेकिन व्यक्ति अपनी पवित्र भावनाओं के माध्यम से उन अदृश्य परमात्मा तक पहुँच सकता है और सतत उनके सान्निध्य को प्राप्त कर सकता है।

ज्ञानी जन कहते हैं कि " शून्य में विराट समाया है और इस विराट में भी शून्य है ।"  जो इस शरीर में ही रहकर परमात्मा के इस विराट रूप को समझ पाता है , उसे अनुभव कर पाता है , वही आध्यात्मिक है ।आध्यात्मिक दृष्टिकोण ही मनुष्यों को सही राह दिखा पाने में सक्षम है और यही हम सबके जीवन जीवन का ध्येय होना चाहिए ।

एक संसारी मनुष्य केवल सांसारिक कार्यों को कर पाने में सक्षम होता है  ; जबकि आंतरिक संतुष्टि के लिए उसे दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है ।इसके विपरीत एक आध्यात्मिक व्यक्ति अपनी आंतरिक संतुष्टि स्वयं अर्जित करता है और मात्र सांसारिक कार्यों के लिए संसार पर निर्भर रह सकता है ।

  "आध्यात्मिक मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्तम है ।"


2 comments:

  1. ज्ञानवर्धक और जीवन में उतारने योग्य

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  2. आपको सादर अभिवादन व जय श्री कृष्ण ।

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