शास्त्रों में सूर्यदेव को अनेक रूपों से अलंकृत किया गया है । "सूर्यो वै सर्वेषां देवानामात्मा" अर्थात सूर्य ही समस्त देवों की आत्मा है ।'सर्वदेवामय रविः' अर्थात सूर्य सर्वदेवमय हैं।मनुस्मृति के अनुसार- ' सूर्य से वर्षा , वर्षा से अन्न और अन्न से प्राणी का जन्म होता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण ' काश्यप ' कहलाए ।उनका लोकावतरण महर्षि की पत्नी अदिति के गर्भ से हुआ, अतः सूर्य का नाम 'आदित्य' भी लोकविख्यात एवं प्रसिद्ध हुआ।उपनिषदों में आदित्य को ब्रह्म के रूप में दर्शाया गया है ।
ऋग्वेद में सर्वव्यापक ब्रह्म तथा सूर्य में समानता का स्पष्ट रूप से बोध होता है ।यजुर्वेद सूर्य और भगवान में भेद नहीं करता ।कपिला तंत्र में सूर्य को ब्रह्मांड के मूलभूत पंचतत्वों में से वायु का अधिपति घोषित किया गया है ।हठयोग के अंतर्गत श्वास ( वायु ) को प्राण माना गया है और सूर्य इन प्राणों का मूलाधार है , अतः
' आदित्यो वै प्राणः ' कहा गया है ।स्कंद पुराण में सविता की गायत्री के साथ एकरूपता- समरूपता प्रदर्शित की गई है।
योगसाधना में प्रतिपादक मणिपूर चक्र को "सूर्य चक्र" भी कहते हैं । भविष्योत्तर पुराण में कृष्ण-अर्जुन के संवाद में सूर्य को त्रिदेवों के गुणों से विभूषित किया गया है ।इस संवाद के अनुसार सूर्य उदयकाल में ब्रह्मा, मध्यान्हकाल में महेश्वर और सांयकाल में विष्णु रूप हैं ।शतपथ ब्राह्मण में 'असौ व आदित्यो देवः' सविता कहकर सूर्यदेव की प्रतिष्ठा की गई है।
छांदोग्योपनिषद् 'आदित्यो ब्रह्म' कहता है तो तैत्तिरीयारण्यक
'असावादित्यो ब्रह्मः' की उपमा देता है ।अथर्ववेद की भी यही मान्यता है ।अथर्ववेद के अनुसार आदित्य ही ब्रह्म का साकार
स्वरूप है ।हमारा नाभिकेन्द्र ( सूर्य चक्र ) प्राण का उद्गम स्थल ही नहीं बल्कि अचेतन मन के संस्कारों तथा चेतना का संप्रेषण केन्द्र
भी है।सूर्य इस चराचर जगत में प्राणों का प्रबल संचार करते हैं--
' प्राणः प्रजानामुदयत्येषं सूर्यः।'
सूर्य भगवान को मार्तण्ड भी कहते हैं, क्योंकि ये जगत को अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश से ओत-प्रोत कर जीवनदान देते हैं ।सूर्यदेव कल्याण के उद्गम स्थान होने के कारण शंभु कहलाते हैं ।भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने के कारण इन्हें त्वष्टा भी कहते हैं ।सूर्यदेव किरणों को धारण करने वाले हैं इसलिए ये अंशुमान् के नाम से भी जाने जाते हैं ।
●● सूर्योपासना से आध्यात्मिक लाभ व रोगों से मुक्ति ●●
●सूर्योपासना से आध्यात्मिक लाभ--- भारतीय सूर्योपासना के मूल में आध्यात्मिक लाभ ,शारीरिक स्वास्थ्य एवं भौतिक लाभ का भाव निहित हे।सूर्य कालचक्र के महाप्रणेता हैं ।सूर्य से ही दिन-रात , मास, अयन एवं संवत्सर का निर्माण होता है ।भारतीय संस्कृति में किसी वार का प्रारंभ सूर्योदय से ही होता है।
योगशास्त्र में पतंजलि उल्लेख करते हैं कि "भुवनज्ञानं सूर्य संयमात्" अर्थात "सूर्य का ध्यान और उपासना करने से समस्त संसार का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है । वैदिक साहित्य में सूर्यदेव की महिमा-गरिमा का भावभरा गायन किया गया है।
सनातन संस्कृति में प्रातःकाल सूर्यदेव को अर्ध्य समर्पण करने का विधान है।उगते हुए सूर्य के दर्शन करने से भी आध्यात्मिक लाभों का अनुदान मिलता है।गायत्री उपासक प्रातः गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्योपासना करते हैं ।नियमित सूर्य दर्शन करते हुए गायत्री मंत्र का जप करने से भी चमत्कारिक लाभ होते हैं ।
यदि हम अपने शास्त्रों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि भगवान राम, भगवान कृष्ण आदि सभी नियमित सूर्योपासना करते रहे हैं ।सूर्य समस्त जगत की आत्मा है , सूर्य से ही यह सृष्टि संचालित होती है।नियमित सूर्योपासना से साधक की आंतरिक शक्ति में वृद्धि होती है ।
●सूर्योपासना से रोगों से मुक्ति---- सूर्योपासना कई रोगों से मुक्ति दिलाती है।सूर्य की दिव्य किरणों में कुष्ठ तथा अन्य चर्मरोगों के कीटाणुओं को नष्ट करने की अपार क्षमता एवं शक्ति सन्निहित है ।ऋग्वेद में सूर्य की रश्मियों को हृदयरोग तथा पीलिया की चिकित्सा में लाभकारी बताया गया है ।कुष्ठरोग का शमन भी सूर्यदेव की कृपा से हो जाता है ।श्रीकृष्ण एवं जांबवती के पुत्र सांब सूर्य की उपासना से ही रोग मुक्त हुए थे।
कृष्ण यजुर्वेदीय 'चाक्षुषोपनिषद्' में सभी प्रकार के नेत्ररोगों से मुक्ति का उपाय सूर्योपासना को बताया गया है ।तंत्र शास्त्र की यह मान्यता है कि नित्य सूर्य नमस्कार करने पर सात पीढ़ियों से चली आ रही महादरिद्रता दूर हो जाती है ।सूर्य नमस्कार स्वयं में सूर्य आराधना भी है और स्वास्थ्य का व्यायाम भी ।इससे अनेक प्रकार की बीमारी एवं विकृतियों का निराकरण एवं शमन होता है।
सूर्य रश्मियाँ नदी की निर्मल धारा के समान पावन हैं, जो अपने संपर्क-सान्निध्य में आने वाले हरएक व्यक्ति को तेजस्विता, प्रखरता
एवं पवित्रता से भर देतीं हैं ।सूर्य को आरोग्य का देवता कहा गया है और उसकी किरणों को पवित्र,तेजस्वी एवं अक्षत माना गया है ।
'आरोग्यं भास्करादिच्छेत्' से स्वतः ही विदित होता है कि सूर्य आरोग्य प्रदान करने वाले देवता हैं ।यह आरोग्य केवल शरीर के धरातल तक ही सीमित नहीं है, वरन् मानसिक एवं आत्मिक स्तर पर प्रभाव छोड़ने में समर्थ एवं सक्षम है।अतः सूर्योपासना सभी रूपों में लाभदायक है।
●●● समस्त विश्व में अनादिकाल से सूर्योपासना ●●●
सूर्योपासना भिन्न-भिन्न रूपों में अनादिकाल से भारतवर्ष में ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व के विभिन्न भागों में भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक की जाती रही है।अमेरिका के रेड इंडियनों द्वारा आबाद क्षेत्रों में अनेक सूर्य मन्दिर पाए जाते हैं ।हवाई द्वीप , जापान, दक्षिण अमेरिका तथा कैरिबियन द्वीपों में कई प्रकार की सूर्यगाथाएँ प्रचलित हैं, जो बताती हैं कि सूर्य सबका उपास्य रहा है।
जापान सूर्य पूजक राष्ट्र है तथा दिनमान का आगमन सर्वप्रथम उसी देश से हुआ माना जाता है ।चीन के विद्वान सूर्य को 'यांग' मानते हैं ।बौद्ध जातकों में सूर्य का प्रसंग वाहन के रूप में स्थान-स्थान पर आया है तथा अजवीथि, नागवीथि एवं गोवीथि नाम के मार्गों के आधार पर उसकी तीन मतियाँ मानी गई हैं ।
इस्लाम में सूर्य को 'इल्म अहकाम अननजुमे' का केन्द्र माना गया है ।अर्थात सूर्य इच्छाशक्ति को बढ़ाने वाली चैतन्य सत्ता का प्रतीक है ।ईसाई धर्म में न्यूटेस्टामेंट में सूर्य के धार्मिक महत्व का विशद एवं विस्तृत वर्णन है।सेंटपाल ने इसीलिए रविवार का दिन पवित्र घोषित कर इस दिन प्रभु की आराधना व दान करने को अत्यन्त फलदायी माना है।ग्रीक और रोमन विद्वानों ने भी रविवार को पूजा का दिन स्वीकार किया है।
यद्यपि कालचक्र के दुष्प्रभाव से वर्तमान समय में सूर्योपासना का महत्व उतना नहीं रह गया है परंतु धर्मप्रधान भारतवर्ष में सनातन धर्म को मानने वाले लोग आज भी किसी-न-किसी रूप में सूर्य को देवता मानकर उनकी पूजा-अभ्यर्थना करते हैं ।
"हे सूर्यदेव तुमको प्रणाम, हे सूर्यदेव तुमको प्रणाम"
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
बहुत ही अच्छी और उपयोगी जानकारी , विभिन्न धर्मों और देशों के संदर्भ में भी अच्छी जानकारी ।
ReplyDeleteईश्वर आपको हमेशा स्वस्थ और सुखी रखें 🙏🙏