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Tuesday, June 2, 2020

इलेक्ट्रॉनिक कचरा ( ई- वेस्ट )क्या है ? भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरा, ई-वेस्ट पर्यावरण को कैसे दूषित करता है ,बढ़ते मोबाइल फोन, ई-वेस्ट निस्तारण के लिए स्थाई नीति जरूरी,


   ●●●इलेक्ट्रॉनिक कचरा ( ई-- वेस्ट ) क्या है ? ●●●
एक समय था , जब मानव जीवन एकदम सादा था ; क्योंकि तब सभी लोग पूर्ण प्राकृतिक जीवन जीते थे ; यहाँ तक कि बिजली का आविष्कार भी नहीं हुआ था ।रात्रि के समय दीपक जलाते थे ।
गर्मी के मौसम में प्राकृतिक हवा पर ही निर्भर रहते थे। 

आज का समय इलेक्ट्रॉनिक क्रान्ति का है ।तरह-तरह की इलेक्ट्रॉनिक सुविधाएँ हमें उपलब्ध हैं । आज हमारे जीवन को सुविधापूर्ण बनाने वाली इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं की लंबी सूची है , जैसे -- फैक्स मशीन, फोटो काॅपी, स्कैनर मशीन, डिजिटल कैमरे, लैपटॉप, आयपैड , प्रिंटर , इलेक्ट्रॉनिक खिलौने व गैजेट , एअर कंडीशनर, माइक्रोवेव कुकर , इन्डक्शन कुकर , फ्रिज, वाॅशिंग मशीन इत्यादि उपकरणों ने हमें सुविधापूर्ण जीने का लालच दिया है।लेकिन जब इन्हीं उपकरणों के पुराना होने पर या खराब होने पर ये हमारे कुछ काम के नहीं रहते , यही इलेक्ट्रॉनिक कचरे  ( ई - वेस्ट ) कहलाते हैं ।

ई-वेस्ट से वैसे तो किसी को कोई खास मतलब नहीं है, लेकिन जब यह बड़ी समस्या बनकर हमें नुकसान पहुँचाएगा , तब इसे नजरअंदाज करना मुश्किल होगा ।अभी तो सिर्फ सभी देशों का ध्यान विकास की ओर है ; क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रयोग से मनुष्य का जीवन बहुत आसान हो गया है । कंम्प्यूटर और मोबाइल फोन आदि से हम घर बैठे कई काम कर सकते हैं ।यहाँ तक कि ऑनलाइन कुछ भी खरीदा जा सकता है ।बाजारों और दुकानों में जाने की जरूरत अब नहीं रही।

   ●●● भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरा ( ई-वेस्ट )●●●

      वर्ष 2013 में इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल एजुकेशन एंड रिसर्च ( आईटीईआर ) द्वारा  'मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग ऑफ ई-वेस्ट'
विषय पर आयोजित सेमिनार में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के विज्ञानियों ने एक सर्वेक्षण के आधार पर यह बताया कि भारत में हर साल 8 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न हो रहा है ।

भारत में यद्यपि देश के 65 प्रमुख शहरों का योगदान है , परंतु , सबसे अधिक ई-वेस्ट देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई में पैदा हो रहा है।इस बारे में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार-- चीन दुनिया का सबसे बड़ा ई-वेस्ट डंपिंग ग्राउन्ड है ; क्योंकि जो भी टीवी, फ्रिज , एअर कंडीशनर, मोबाइल फोन , कंम्प्यूटर आदि दुनिया में भेजे जाते हैं ; कुछ वर्षों बाद चलन से बाहर हो जाने और कबाड़ में तब्दील हो जाने पर वे सारे उपकरण मुख्यतया चीन और कुछ हद तक भारत में भी लौट आते हैं ।

 ●●● ई- वेस्ट पर्यावरण को कैसे दूषित कर सकता है ●●●

ई-वेस्ट हमारे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचा सकता है, यहाँ तक कि मानव जीवन पर संकट खड़ा कर सकता है।इसका अंदेशा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि कबाड़ में फेंके गए मात्र एक मोबाइल फोन में इस्तेमाल हुआ प्लास्टिक और विकिरण पैदा करने वाले कल-पुरजे सैकड़ों साल तक नष्ट नहीं होते।सिर्फ एक मोबाइल फोन की बैटरी अपनी मौजूदगी से हजारों लीटर पानी को दूषित कर सकती है।

एक  पर्सनल कंम्प्यूटर में 3.8 पौंड घातक सीसा और फास्फोरस , कैडमियम व मरकरी जैसे तत्व होते हैं, जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलकर अपना विषैला प्रभाव उत्पन्न करते हैं ।कंप्यूटरों की स्क्रीन के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली कैथोड-रे पिक्चर ट्यूब भी जिस मात्रा में लेड ( सीसा ) पर्यावरण में उत्सर्जित करती है , वह भी काफी नुकसानदायक है।

    ●●● मोबाइल फोनों की बढ़ती संख्या ●●●

यह सत्य है कि आज बिना मोबाइल के एक दिन भी गुजारना मुश्किल हो जाता है।मोबाइल फोन आज की मुख्य आवश्यकता है।भारत में मोबाइल फोन इंडस्ट्री को अपने पहले दस लाख ग्राहक जुटाने में करीब वर्ष लग गए, लेकिन अब भारत में मोबाइल फोनों की संख्या इन्सानी आबादी के करीब पहुँचती दीख रही है।यह आँकड़ा इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशंस यूनियन ( आईटीयू) का है।इन आँकड़ों से यह तो स्पष्ट है कि अब भारत जैसे विकासशील देश में गरीब-से-गरीब परिवार भी संचार सेवाओं का लाभ ले रहे हैं ।

आईटीयू के अनुसार--- भारत, रूस, ब्राजील समेत करीब दस ऐसे देश हैं, जहाँ मानव आबादी के मुकाबले मोबाइल फोनों की संख्या ज्यादा है।रूस में करीब 25 करोड़ से अधिक मोबाइल फोन हैं, जो वहाँ की आबादी से 1.8 गुना ज्यादा हैं ।ब्राजील में 24 करोड़ मोबाइल फोन हैं, जो वहाँ की आबादी से 1.2 गुना ज्यादा हैं ।इसी तरह मोबाइल फोन धारकों के मामले में अमेरिका और रूस को पीछे छोड़ चुके भारत की यह स्थिति है कि करीब आधी आबादी के पास मोबाइल फोन हैं ।
 
●●● ई-वेस्ट के निस्तारण के लिए स्थाई नीति जरूरी●●●

ई-वेस्ट के कबाड़ के निस्तारण के लिए स्थाई नीति बनाने  की आवश्यकता है ।वैसे तो हमारे देश में ई-कबाड़ पर रोक लगाने वाले कानून हैं ।खतरनाक कचरा प्रबंधन और निगरानी नियम 1989 की धारा 11 (1) के तहत ऐसे कबाड़ की खुले में रीसाइक्लिंग और इसके आयात पर रोक है , लेकिन इन नियमों का पालन पूर्ण रूप से नहीं हो पा रहा ।

ब्रिटेन और अमेरिका जैसे विकसित देशों में ई-वेस्ट जैसी कोई समस्या नहीं है ; क्योंकि इन विकसित देशों ने ई-कचरे से निपटने के लिए पहले ही प्रबंध कर लिए हैं  और इसीलिए ये अपनी क्षमता से अधिक का ई-वेस्ट विकासशील देशों को निर्यात कर देते हैं ।हमारे देश में यह समस्या है कि हमारा खुद का ई-वेस्ट निकलता है  और फिर दूसरे देशों से भी आयात कर लेते हैं। इसलिए भविष्य में ई-वेस्ट के निस्तारण की अधिक समस्या आ सकती है ।

इस बारे में पर्यावरण स्वयंसेवी संस्था ग्रीनपीस ने अपनी एक रिपोर्ट  'टाॅक्सिक टेक, रिसाइक्लिंग इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट इन चाइना एंड इंडिया'  में यह स्पष्ट किया है कि जिस ई-कबाड़ की रिसाइक्लिंग पर यूरोप में 20 डाॅलर का खरचा आता है, वही रिसाइक्लिंग भारत-चीन जैसे देशों में मात्र 4 ( चार ) डाॅलर में हो जाती है ।

जब तक समस्याएँ  सामने आकर खड़ी नहीं हो जातीं , मनुष्य इनके प्रति सजग नहीं होता है ।हमारी तरक्की हमारे लिए मुसीबत के दरवाजे न खोले और हमारा देश इलेक्ट्रॉनिक कचरे की समस्या न झेले , इसके लिए समय से पहले जागरूक होने की जरुरत है ।ताकि हम समय रहते इलेक्ट्रॉनिक सुविधाओं के कारण होने वाली समस्याओं से बच सकें ।

इलेक्ट्रॉनिक कचरा पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है ।प्लास्टिक की तरह यह भी नष्ट नहीं होता अतः इसके निस्तारण के सही तरीके अपनाने की जरूरत है।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।

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