head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): अनुभव ही सच्चा ज्ञान है, ऋषियों के अनुसार विचार नहीं अनुभव ही श्रेष्ठ है ।

Thursday, October 1, 2020

अनुभव ही सच्चा ज्ञान है, ऋषियों के अनुसार विचार नहीं अनुभव ही श्रेष्ठ है ।

                  ●● अनुभव ही सच्चा ज्ञान ●●
अनुभव ही सच्चा ज्ञान है ।अनुभव, जीवन का अनुभव। जो स्वयं का सच है, खुद का देखा ,परखा, जाना-पहचाना है, इसी में अपने अस्तित्व की अभिव्यक्ति होती है ।जो व्यक्त होता है, वही अपना होता है, शेष तो कागज का लिखा है अर्थात-- दूसरों का सच है, अपना नहीं ।
          कबीर दास के अंतस् की अंतर्कथा में अनुभव का पुट गहरा है--
       " मैं कहता आँखन की देखी, तू कहता कागद की लेखी "--

                       अनुभव, जीवन का अनुभव ! इसके फलक के विविध पहलुओं को जिसने संस्पर्श किया है, अंतस् की गहराई में जिसने पाया है, वही सच्चा ज्ञानी है, और उसका अनुभव ही सच्चा अनुभव है।वह ज्ञान चाहे किसी अनपढ़ हल चलाने वाले किसान का हो या आजीविका के साधन के लिए रिक्शा खींचने वाले का । वह ज्ञान आधुनिकता के श्रंगार में थिरकते पाँवों का हो या जनसेवा के लिए लगे स्वच्छता अभियान में लगे हाथों का , वही सच्चा ज्ञान है, शेष तो अज्ञान है, क्योंकि वह दूसरों कि सच्चाई की व्याख्या और बखान है।

अनुभव अपने अंतर्मन में उतरकर ही पाया जाता है।अनुभवी का ज्ञान अंतस् को प्रकाशित करता है, भावनाओं को पोषण देता है, क्योंकि वह उसका बोध करता है ।यहाँ भ्रम नहीं होता ।'शायद यह है या वह'  का सन्देह नहीं होता ।अनुभवी के नेत्र आर-पार देखते हैं ।उसके नेत्र ऐसा देखते हैं, जैसे किताबों के पृष्ठों में उभरे हुए स्पष्ट अक्षर ।अनुभवी अनोखा देखता है और बोलता भी ऐसा, जिसे न कभी बोला गया और न कभी सुना ही गया । इस अनबोले , अनकहे और अनसुने को जगत नकारता है अर्थात प्रमाण माँगता है।

  ●● ऋषियों के अनुसार विचार नहीं, अनुभव श्रेष्ठ है ●●

भारत के प्राचीन ऋषि सिद्धान्तों के आग्रही नहीं थे ।ऋषियों का कथन है -- विचार धोखा दे सकते हैं, लेकिन अनुभूति कभी भी धोखा नहीं देती ।विचार में डर है ।विचार में हम प्रायः उस बात को मान लेते हैं, जो हम मानना चाहते हैं ।विचार में कभी-कभी हमारी कामनाओं की तृप्ति छिपी रहती है ।

अनुभवी जो देखता है, वही बोलता है ।उसके देखने और बोलने में तारतम्य है, उसकी दृष्टि और वाणी में सच्चाई है, श्रंगार है, संगीत है ; क्योंकि संगीत तो भावों से फूटता है, सिंदूरी श्रंगार की आभा इसी से झलकती है ।अनुभवी की वाणी वही बोलती है, जिसे आँखों ने गहराई से देखा हो और जीवन में वही करता भी है।ऐसी दुर्लभ घटना विरलों में घटती है, परंतु घटती अवश्य है और जिसके जीवन में अनुभव की सच्चाई घटती है, वही तो सुन्दर आँखों वाला है।

पंखुड़ियों में गिरती ओस की बूँदें प्राची से आती सुनहली किरणें कभी भी पुरानी और बासी नहीं होतीं हैं ।ठीक उसी प्रकार जीवन के विविध आयाम सदा-सर्वदा अभिनव नयनाभिराम होते हैं ।यह कागज की लिखी नहीं, आँखों की देखी है।

अनुभवी अनोखा देखता है और बोलता भी ऐसा,जिसे न कभी बोला गया और न कभी सुना ही गया ।इस अनबोले, अनकहे और अनसुने को जगत नकारता है,अस्वीकार करता है और कहता है कि जो आज तक कभी हुआ नहीं, देखा-जाना नहीं गया, वो कैसे सच हो सकता है ।संसार के लिए वही सच है, जो लोग कहते हैं और झूठ वही है, जो लोक मान्यता में प्रचलन न हो।

अंतर का दिव्य आनन्द, हृदय में उपजी संवेदनाएँ, सेवा सहकार से उपजा उमंग-उल्लास सब कुछ अनुभव की सच्चाई है।इन दिव्य तत्वों का सच, मात्र अनुभव का सच है, जिसे हम में से हर कोई पा , देख और जान सकता है ।बस अपने अंतर में उतरने की बात है ।हर व्यक्ति अपनी स्थिति-परिस्थिति के अनुरूप, कुशल मार्गदर्शक एवं सलाहकार के मार्गदर्शन से अपने भावों की गहराई में डूबकर वह सब कुछ पा सकता है, जिसकी प्राप्ति के अभाव में सब मात्र कपोल कल्पना लगता है।
कबीर की वाणी, नानक के बोल, सूरदास के सुर, मीरा के गीत सब कुछ अनुभव का सच है, आँखन देखी है।चाहें तो इसे हम भी अनुभव कर सकते हैं ।बस, हमें बाहर से अन्दर की ओर मुड़ना होगा, अंदर मुड़कर जब गति और लय बन जाती है, अंदर-बाहर का भेद समाप्त हो जाता है, सब एक हो जाता है, उस परम आनन्द की अनुभूति होने लगती है।

           अतः हमें अपने ही अन्दर उतरकर ( ध्यान साधना के द्वारा) अनुभव के दिव्य प्रसाद से आनंदित होने का प्रयास करना चाहिए ।

    " मन की वीणा के तारों में अंतर्मन की झंकार को सुन "

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।




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