इस जगत में सब ओर शक्ति का वर्चस्व है ।शक्ति का ही राज है ।शक्ति के बल पर ही मनुष्य संसार में विचरण कर पाता है।शक्ति के विविध रूप हैं, जैसे -- शारीरिक शक्ति, मानसिक शक्ति, आर्थिक शक्ति, सामाजिक शक्ति, आध्यात्मिक शक्ति आदि ।जिन शक्तियों को हम देख सकते हैं, वे स्थूल शक्तियाँ हैं ।जिन शक्तियों को हम देख नहीं सकते, लेकिन वे अपना प्रभाव दिखाती हैं, वे सूक्ष्म शक्तियाँ हैं ।
हम लोग शक्ति की उपासना करते हैं ।शक्ति का संग्रह करते हैं ।अपनी शक्ति को बढ़ाने व विकसित करने के लिए तरह-तरह के उपाय अपनाते हैं ? क्या यह शक्ति हमेशा हमारा साथ देती है ?
यह जरूरी नहीं ।जो आज शक्तिशाली है, वह आने वाले समय में कमजोर भी हो सकता है और जो आज कमजोर दीखता प्रतीत हो रहा है, वह कल शक्तिशाली भी बन सकता है।
●●● बाह्य शक्तियाँ ( स्थूल शक्तियाँ) ●●●
ज्यादातर लोगों का ध्यान बाह्य शक्तियों व स्थूल शक्तियों की ओर अधिक होता है और वे इनकी ओर सहजता से आकर्षित हो जाते हैं, जैसे आज भी लोग यह मानते हैं कि जिनके पास धन-दौलत है, प्रसिद्धि है, बहुत सारी सम्पत्ति है, वे बहुत ताकतवर लोग हैं ।सदा से ही दुनिया इस ताकत या शक्ति को मानती रही है और इसे स्वीकारती रही है ।इसलिए दुनिया के लोग इस दौलत की शक्ति को पाना चाहते हैं , लेकिन यह एक बाह्य शक्ति है और इसकी एक निश्चित सीमा है ।
बाहरी शक्तियों में खूबियों के साथ कुछ ख़ामियाँ भी हैं, जैसे बाह्य शक्तियाँ लंबे समय तक व्यक्ति को खुशी नहीं दे सकतीं और न ही उसे बेहतर इन्सान बना सकतीं ।यह व्यक्ति को कभी संपूर्ण संतुष्टि नहीं दे सकतीं ।हाँ, इतना जरूर है कि व्यक्ति अपनी इस बाह्य शक्ति को बढ़ाने की पुरजोर कोशिश में लगा रहता है और अपनी वास्तविक व मूलभूत शक्ति को भूल जाता है ।
●●● सूक्ष्म शक्तियाँ (आत्मशक्ति या अंदरूनी शक्ति) ●●●
हमारी आत्मशक्ति हमें भले ही अन्य बाह्य शक्तियों की तरह दिखाई न दे , लेकिन यह हमारे व्यक्तित्व पर, हमारी सोच व क्रियाकलापों पर जबरदस्त प्रभाव डालती है।इसी प्रभाव के बल पर सामान्य सा दीखने वाला व्यक्ति महामानव बनता है और अपने व्यक्तित्व से असंख्य लोगों को प्रभावित करता है ।आत्मशक्ति के बल पर ही व्यक्ति किसी भी तरह के संकट व झंझावातों से जूझने में नहीं घबराता , जरा भी विचलित नहीं होता और कठिन से कठिन परिस्थितियों का डटकर सामना करता है।
ऐसा नहीं है कि किसी विशेष व्यक्ति में ही यह अंदरूनी ताकत या आत्मशक्ति होती है ।सभी लोगों में यह शक्ति विद्यमान है, लेकिन सब लोग इसे पहचान नहीं पाते और न ही इसका उपयोग कर पाते ।जो व्यक्ति जितना अधिक आत्मस्थ रहता है , स्वयं के प्रति एकाग्र हो पाता है , वह उतना ही अधिक आत्मशक्ति के बारे में जान पाता है।यदि व्यक्ति इस शक्ति के बारे में जानकर इसे प्राप्त करने व अनुभव करने का प्रयास करे तो स्वयं को सशक्त व्यक्तित्व का धनी बना सकता है।
●●● सबसे बड़ी शक्ति आत्मशक्ति ●●●
मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति आत्मशक्ति है ।इस आत्मशक्ति के सामने दुनिया के सारे ऐश्वर्य, सुख-सुविधा के साधन , तुच्छ दिखाई पड़ते हैं ।ऐसी जबर्दस्त ऊर्जा व चमक होती है-- आत्मशक्ति में ।आत्मशक्ति की उपासना करने वालों को किसी साधन की आवश्यकता नहीं होती, वे बिना किसी साधन के ही अपना व्यक्तित्व इतना चुंबकीय बना लेते हैं कि सारे साधन, सभी लोग वहीं खिंचे चले आते हैं ।उनके एक इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं ।
इस आत्मशक्ति को विकसित करने के लिए कुछ नियम हैं, जिनका पालन करना होता है , इस आत्मशक्ति का विकास तभी होता है, जब व्यक्ति के इरादे नेक हों, वह सही राह पर चले, सच्चाई का साथ दे, अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहे ।इस राह पर चलकर जब व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति को महत्व देता है, इसके विकास के लिए प्रयत्न करता है, तो उसका व्यक्तित्व विकसित होने लगता है और वह व्यक्ति देश-समाज व मनुष्यता के प्रति संवेदनशील हो जाता है ।और इसके साथ ही उसके मन में सकारात्मकता बढ़ने लगती है।
हमारे देश में अनेक ऐसे महापुरुष हुए हैं जो इस आत्मशक्ति अथवा अंदरूनी शक्ति के स्वामी रहे हैं, जैसे -- स्वामी विवेकानंद, श्री राम कृष्ण परमहंस, श्री अरविंद, श्री राम शर्मा आचार्य व अन्य भी।इन महापुरुषों के प्रखर व्यक्तित्व, दिव्य अंदरूनी शक्ति का प्रभाव ऐसा था कि आज भी उनके कक्षों पर जाने पर उस दिव्य ऊर्जा का एहसास होता है ।उनकी सामान्य सी दीखने वालीं वस्तुएँ भी ऊर्जाओं से ओतप्रोत लगती हैं ।एक प्रकार से आज भी इनका व्यक्तित्व जीवित है और लोगों के लिए इनका जीवन प्रेरणादायक है।
इन अंदरूनी शक्ति (आत्मशक्ति) के बल पर कोई भी व्यक्ति अपनी पहचान बना सकता है, अपने महत्व को जान सकता है और अपनी क्षमताओं का सही उपयोग कर सकता है ।परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यों न हों इस शक्ति के बल पर परिस्थितियों में परिवर्तन लाया जा सकता है ।
महात्मा गांधी का व्यक्तित्व इसी आत्मशक्ति से भरपूर था , उनके द्वारा अहिंसा का मार्ग अपनाने के बावजूद अँग्रेजों को उनके सामने झुकना पड़ा, हार माननी पड़ी ।जब महात्मा गाँधी जी की मृत्यु हुई , तब उनके पास जो सामान था, उनमें उनका चश्मा, दो जोड़ी चप्पलें, एक चरखा , एक घड़ी और ऐसी ही कुछ सामान्य वस्तुएँ थीं ।कुछ विशेष-बहुमूल्य कही जाने वाली कोई भी चीज उनके पास से नहीं मिली । लेकिन सबसे बहुमूल्य चीज उनके पास थी वह उनकी अंदरूनी शक्ति ( आत्मशक्ति) ही थी।
इसी तरह हम अन्य महापुरुषों जैसे - स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, श्री अरविंद के जीवन पर प्रकाश डालें तो पाएँगे कि इन सभी के पास एक बहुमूल्य वस्तु थी तो केवल उनका आत्मबल ही था।इसके साथ ही हम कुछ खिलाडियों को देखें तो पाएँगे कि शारीरिक रूप से कमजोर होने पर भी उन्होंने इस आत्मशक्ति के बल पर दुनिया में अपना लोहा मनवाया है ।
हम सभी भी अपनी आत्मशक्ति को पहचानें और जीवन में ऊँचाई हासिल करें ।इस आत्मशक्ति के बल पर हम भी अपनी क्षमताओं को पहचान कर अपनी पहचान बना सकते हैं।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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