head> ज्ञान की गंगा / पवित्रा माहेश्वरी ( ज्ञान की कोई सीमा नहीं है ): सादगी में महानता, स्वामी विवेकानंद, नोबेल पुरस्कार विजेता मैडम क्यूरी एवं पाटलिपुत्र के महामंत्री आचार्य चाणक्य की सादगी के उदाहरण ।

Wednesday, September 30, 2020

सादगी में महानता, स्वामी विवेकानंद, नोबेल पुरस्कार विजेता मैडम क्यूरी एवं पाटलिपुत्र के महामंत्री आचार्य चाणक्य की सादगी के उदाहरण ।

              ●●● सादगी में महानता ●●●

 सादगी में महानता छिपी होती है ।सादा जीवन जीने वाले व्यक्तियों का रहन-सहन भले ही सामान्य दीखता हो, लेकिन उनके कार्य असाधारण होते हैं ।देश में जो भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने सादगी को अपनाया है, सादा जीवन अपनाकर, सरल बने रहकर बड़े और महान कार्य किए हैं ।

          यह सत्य ही है कि व्यक्ति की पहचान उसके वस्त्रों से नहीं, उसके कार्यों व आचार-विचार से होती है।इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने रहन-सहन में सादगी नहीं अपनाते, हर पल दूसरों को आकर्षित करने हेतु प्रयासरत रहते हैं, वे कभी भी विशेष कार्य नहीं कर पाते ।

  ●● स्वामी विवेकानंद जी की सादगी के कुछ उदाहरण ●●
एक बार अमेरिका में स्वामी विवेकानंद पगड़ी बाँधे, चादर डाले शिकागो की एक गली में घूम रहे थे, उनकी वेशभूषा को देखकर एक महिला ने अपने पुरुष मित्र से कहा-- " जरा इन महाशय को देखिए ।कैसी अनोखी पोषाक है ।यह सुनकर स्वामी जी ने उस महिला को उत्तर दिया --- " बहन मैं जिस देश से आया हूँ, वहाँ पर वस्त्र नहीं, चरित्र को सज्जनता की कसौटी माना जाता है।" उनके इस उत्तर ने महिला को हतप्रभ कर दिया।

यह एक और  घटना तब की है जब स्वामी विवेकानंद जी की ख्याति न सिर्फ अमेरिका में, बल्कि पूरी दुनिया में फैल चुकी थी ।एक दिन स्वामी जी के एक अमेरिकी शिष्य ने स्वामी जी से कहा -- " मैं आपके गुरु को देखना चाहता हूँ ।मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर कैसा होगा वह व्यक्ति, जिसने आप जैसे शिष्य को तैयार किया ? " स्वामी जी ने उस शिष्य को श्री रामकृष्ण परमहंस का फोटो दिखाया ।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस के फोटोग्राफ देखकर वह बोला -- मुझे ऐसा लगता था कि आपके गुरु अत्यन्त विद्वान व सभ्य होंगे, परंतु फोटोग्राफ देखकर मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता ।"  शिष्य की बात सुनकर स्वामी विवेकानंद जी बोले --- " तुम्हारे देश में सभ्य पुरुषों का निर्माण एक दरजी करता है, जब कि हमारे देश में सभ्य पुरुषों का निर्माण आचार-विचार करते हैं ।इस कसौटी पर कसकर बताओ कि तुम्हारे मुल्क के सूट-बूटधारी जेन्टलमैन सभ्य हैं या मेरे गुरु परमहंस ? " 

 इस व्याख्या को सुनकर वह अमेरिकी शिष्य निरुत्तर हो गया ।उसने स्वीकार किया, कि उसे स्वामी जी के उदाहरण से व्यक्तित्व को परखने की एक नई दृष्टि मिली ।

अक्सर हम लोगों की पहचान उनकी वेशभूषा, पहनावे के ढंग आदि से करते हैं, विशेष पहनावे वाले व्यक्ति को विशेष मानते हैं और सामान्य ढंग के पहनावे वाले व्यक्ति को सामान्य व्यक्ति समझते हैं , लेकिन विशेष व्यक्ति वे होते हैं, जो पहनावे को महत्व न देकर कार्य को महत्व देते हैं , वे अपने कार्य को इतना महत्व देते हैं कि उनका अपने पहनावे पर ध्यान ही नहीं जाता वे सदा सादा जीवन ही जीते हैं ।इसी का एक प्रशंसनीय उदाहरण मैडम क्यूरी का है।

 ●● नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मैडम क्यूरी की सादगी ●●
बात उन दिनों की है जब मैडम क्यूरी को भौतिकी में नोबेल पुरस्कार का सम्मान मिला था, इससे उनकी ख्याति दुनिया भर में फैल गई थी ।हर तरह के लोग उनसे मिलने और उनके बारे में जानने को उत्सुक रहते थे, लेकिन मैडम क्यूरी को इन सब में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी ।वे अपनी उपलब्धि व प्रसिद्धि से बेखबर रहतीं थीं ।उनके रहन-सहन व स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया ।वे बस अपने काम में व्यस्त रहतीं थीं ।दिन-रात अध्ययन व शोधकार्य में लगी रहतीं थीं ।

                  एक बार प्रसिद्ध अखबार का संवाददाता उनका साक्षात्कार ( इंटरव्यू ) लेने उनके घर पहुँचा। मैडम क्यूरी का रहन-सहन इतना सादा था कि बाहर बैठी मैडम क्यूरी को घर की नौकरानी समझकर पूछने लगा --- " क्या घर की मालकिन घर पर हैं ? " मैडम क्यूरी ने कहा-- " जी आपको क्या काम है ?"  संवाददाता ने बेरुखी से कहा --- " मैं यह काम मालकिन को ही बता सकता हूँ ।"
यह सुनकर मैडम क्यूरी ने कहा--- " मैं ही मैरी क्यूरी हूँ ।आप मुझे कार्य बता सकते हैं ।"  यह सुनकर संवाददाता बहुत शर्मिंदा हुआ और अनजाने में हुए अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगने लगा।मैडम क्यूरी ने उसको सम्मान के साथ अंदर बुलाया और समझाते हुए कहा - " लोगों को उनकी वेशभूषा से नहीं, उनके विचारों और कार्यों से पहचानना चाहिए ।

व्यक्ति अपने पहनावे व रहन-सहन से विशेष नहीं बनता, बल्कि अपने उच्च विचारों श्रेष्ठ कर्मों से महान बनता है।पाटलिपुत्र के महामंत्री आचार्य चाणक्य ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे ।वे बड़े ही सीधे-सरल स्वभाव के, ईमानदार, विद्वान और न्यायप्रिय व्यक्ति थे ।

  ●● पाटलिपुत्र के महामंत्री आचार्य चाणक्य की सादगी ●●
पाटलिपुत्र के महामंत्री आचार्य चाणक्य इतने बड़े पद पर होने के बाबजूद साधारण कुटिया में रहते थे।कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक देश का महामंत्री इतने सरल ढंग से भी रहता होगा ।उनका रहन-सहन आम जनता के आदमी की तरह था ।एक बार यूनान का राजदूत उनसे मिलने राजदरबार पहुँचा।राजनीति और कूटनीति में दक्ष चाणक्य की चर्चा सुनकर राजदूत मंत्रमुग्ध हो गया ।राजदूत ने शाम को चाणक्य से मिलने का समय माँगा।आचार्य चाणक्य ने कहा --- " आप रात को मेरे घर में आ सकते हैं ।" 

यूनानी राजदूत शाम को राजमहल परिसर में आया और महामंत्री आचार्य चाणक्य के निवास का पता पूछने लगा।राजप्रहरी ने उसे बताया कि आचार्य चाणक्य तो नगर के बाहर रहते हैं ।राजदूत ने सोचा --- शायद महामंत्री का नगर के बाहर सरोवर के पास एक सुन्दर महल होगा ।आखिर वे एक देश के महामंत्री हैं तो उनका महल भी सुन्दर ही होगा।ऐसा सोचते हुए राजदूत नगर के बाहर पहुँचा ।वहाँ पहुँचकर एक नागरिक से उसने पूछा कि महामंत्री चाणक्य कहाँ रहते हैं ?

यूनानी राजदूत के पूछने पर नागरिक ने एक कुटिया की ओर इशारा करते हुए कहा -- " देखिए ! वह सामने महामंत्री की कुटिया है।यह सुनकर राजदूत आश्चर्यचकित रह गया ।उसने कुटिया में पहुँचकर चाणक्य के चरण-स्पर्श किए और कहा-  "आप इतने बड़े पद पर होने के बाबजूद एक कुटिया में क्यों रहते हैं? "  चाणक्य ने राजदूत से कहा -- " अगर मैं जनता की कड़ी मेहनत और पसीने की कमाई से बने महलों में रहूँगा तो मेरे देश के नागरिकों को कुटिया भी नसीब नहीं होगी।"  यह सुनकर यूनान का राजदूत उनके समक्ष नतमस्तक हो गया ।

सादगी ही व्यक्ति से महान कार्य करवाती है , उसे महान बनाती है।
यदि इतिहास पर दृष्टि डालें तो हम पाएँगे कि अनेक महान पुरुषों ने सादगी को अपनाकर ही महानता हासिल की है ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।

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