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Thursday, October 22, 2020

मैत्रीभाव( मित्रता) क्या है ? वृक्षों से मैत्री भाव , वृक्षों के गुण, वृक्षों की चेतना ध्यान साधना में सहयोगी

           ●●● मैत्री भाव ( मित्रता ) क्या है ? ●●●
मैत्री अपने आप में एक गहन भाव है ।मैत्री का भाव हमें कई दुर्गुणों से यानी ईर्ष्या, द्वेष और वैमनस्य जैसे अनेक दोषों से मुक्त करता है और हमारी चेतना को अनंत विस्तार देता है।मैत्री का भाव हमें स्वार्थ एवं अहं से भी मुक्त करता है। मानव जीवन की पीड़ा एवं अनेक समस्याओं का कारण यही है कि हम मनुष्यों के अंदर मैत्रीभाव कमजोर है।

पुराण कथाओं में, संस्कृत के काव्यों में, नाटकों में जितनी पुरातन कथाएँ हैं, उन सबमें जब ऋषियों का, उनके आश्रमों का वर्णन होता है तो उसमें सबसे अधिक वर्णन मैत्रीभाव का ही होता है अर्थात आश्रमों में जीवजन्तु परस्पर मैत्रीभाव से रहते थे ।

महर्षि कण्व के आश्रम के बारे में कालिदास कहते हैं कि ऋषि कण्व के आश्रम में जो वैर करने वाले जीव-जन्तु थे , वे भी प्रेम से , मैत्री भाव से रहते थे । आश्रम में प्रेम का , शांति का , अहिंसा का और मैत्री का वातावरण था ।सच्ची मित्रता एक तरह से ईश्वरीय भाव हैं ।ये मनुष्य को देवत्व से ओत-प्रोत कर देते हैं ।मन जब उदार होता है , मन जब बड़ा होता है तो उसमें मित्रता का भाव पैदा होता है।

              मैत्री का भाव हमें सहज ही निश्चिंत बनाता है ।मैत्री का भाव हमें सहज ही चिंतामुक्त करता है । हम कल्पना करें कि जब पुरातन काल में, ऋषि-महर्षि तपश्चर्या करते होंगे, घोर अरण्य में, भीषण वन में-- तो क्या वहाँ हिंसक जीवजन्तु नहीं रहते होंगे ? रहते होंगे ।जब साधना करते होंगे, तप करते होंगे तो क्या वन में रहने वाले दस्य और हिंसक  मनुष्य वहाँ नहीं रहते होंगे ? रहते होंगे ।लेकिन वे भी उनके साथ प्रेमपूर्ण होकर रहते होंगे ।

            'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' में महाकवि कालिदास कहते हैं कि जब शकुन्तला, ऋषि कण्व के आश्रम से विदा हो रहीं थीं, तो किस तरह वृक्ष, लताएँ उनको आलिंगन करने लगे ।वहाँ के पशु- पक्षी ( हिरन, खरगोश)  उनके प्रति अपनत्व जताने लगे ।इस तरह मैत्री का एक प्रगाढ़ वातावरण ऋषि कण्व के आश्रम में था ।

         ●●● वृक्षों से मैत्री भाव (मित्रता) ●●●

वृक्षों से मित्रता एक तरह से प्रकृति के साथ सामंजस्य व तालमेल का प्रतीक है , वृक्षों  के साथ मैत्री भाव जीवन को सहज व प्राकृतिक बनाता है ।वृक्ष से मित्रता इस बात का प्रतीक है कि हम प्रकृति के साथ, अस्तित्व के साथ --- संपूर्णता के साथ जीना पसन्द करते हैं , इसके साथ ही हमारे विचारों में व्यापकता आने लगती है।

   वृक्षों के रूप में प्रकृति हमें बहुत कुछ प्रदान करती है - भोजन, वस्त्र , लकड़ी , फल इत्यादि सभी कुछ वृक्षों से ही प्राप्त होता है ।वृक्षों के साथ प्रकृति ने एक तरह से हमारी सहजीविता रखी है ।जो विषैली हवा हम उत्सर्जित करते हैं, वृक्ष उसे जीवनदायी हवा ( ऑक्सीजन) में परिवर्तित कर देते हैं ।

जो फलदार वृक्ष हैं, वे फल देते हैं, जो पुष्प वाले वृक्ष हैं, वे पुष्प प्रदान करते हैं ।छाया तो सभी वृक्ष देते हैं ।वृक्षों का सब कुछ दूसरों के लिए ही है।

वृक्षों से मैत्री बड़ी अद्भुत है; वृक्ष सभी से मित्रता करते है।वृक्षों में शत्रुता का भाव है ही नहीं ।वृक्षों की शीतल छाया सबके लिए है , वृक्ष बिना किसी भेदभाव के सबको अपना आश्रय देते हैं ।वृक्षों से जो मैत्री का भाव जड़- चेतन का भेद मिटा देता है । उपनिषद् कहते हैं --  सर्वं खल्विदं ब्रह्म । सब कुछ परमात्मा ही है।

आज वृक्षों से मित्रता खो देने के कारण ही पर्यावरण संकट में है , मानव जीवन में अनेक शारीरिक रोगों की वृद्धि हो रही है ।पुरातन काल में, ऋषिकाल में, वेदकाल में वृक्षों में हम देवी-देवताओं का वास मानकर उनकी पूजा करते थे ।वृक्षों में सूक्ष्म शक्तियों का वास मानते थे ।

          वृक्षों के साथ, वनस्पतियों के साथ नवग्रह की चेतना जुड़ी रहती है ।जैसे - अर्क वृक्ष सूर्य का प्रतीक है ।शमी वृक्ष में शनि की चेतना का वास है , आदि-आदि ।पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास है तो बरगद के वृक्ष में भगवान शिव का वास है, यह वृक्ष शिवत्व को प्रदर्शित करता है ।इस तरह बड़ी स्वाभाविक, बड़ी सघन मित्रता है हमारी, वृक्षों के साथ ।

                ●●● वृक्षों के गुण ●●●

●  1 स्थिरता ---   वृक्षों का पहला गुण है - स्थिरता।वृक्ष सदा स्थिर  रहते हैं ।
●  2 शांति  -----   वृक्ष कभी अशांत और उत्तेजित नहीं होते, शांत रहते हैं ।
●  3 ऊर्ध्वगामिता -- वृक्षों की चेतना सदा ऊर्ध्वगामी  रहती है, वृक्ष हमेशा ऊपर की ओर बढ़ते हैं ।
●  4  प्रकाश धारण करने की क्षमता--- वृक्ष प्रकाश को धारण करते हैं, प्रकाश को ग्रहण करते हैं, प्रकाश ही उनके पोषण का कारण बनता है ।आज का विज्ञान भी यह मानता है कि प्रकाश की सहायता से वृक्ष क्लोरोफिल बनाते हैं और क्लोरोफिल उनको पोषण देता है ।जितना पोषण वृक्ष अपनी  जड़ों से प्राप्त करते हैं, उतना ही पोषण उन्हें प्रकाश से भी प्राप्त होता है ।प्रकाश को धारण करने की क्षमता वृक्षों में सबसे अधिक है।
●5  प्रसन्नता---  वृक्षों का एक यह भी गुण है कि वृक्ष अपनी प्रसन्नता झूम करके , एक अद्भुत नृत्य करके अभिव्यक्त करते हैं ।
● 6 परोपकारिता ----     वृक्ष कभी अपना फल स्वयं नहीं खाते ।वृक्षों का जीवन दूसरों के लिए ही है।वे सभी को उदारता के साथ अपनी शीतल छाया प्रदान करते हैं ।जो वृक्षों को काटने का प्रयास करता है ,उसे भी वह अपनी शीतल छाया का सुख प्रदान करते हैं।
 ● 7 आश्रयदाता ---- वृक्ष सहज रूप से सभी को आश्रय देते हैं ।वृक्षों की छाया में कोई भी विश्राम कर सकता है ।वृक्षों की डालियों पर अनेक पक्षियों का बसेरा होता है।उनकी छाया तले  कोई भी विश्राम कर सकता है ।वृक्षों के नीचे पशु विश्राम करते हैं, मनुष्य विश्राम करते हैं ।इस तरह वृक्षों की डालियाँ और डालियों की छाया , अपने आप में आश्रयप्रदाता हैं ।

    ●●● वृक्षों की चेतना ध्यान साधना में सहयोगी ●●●
वृक्षों में कुछ ऐसी चेतना है , जो ध्यान साधना में सहयोगी है,जो  ध्यान साधना को गति प्रदान करती है, सुपथ प्रदान करती है।जब हम आध्यात्मिक कथाएँ व पुराणकथाएँ पढ़ते हैं तो पाते हैं कि अधिकांश साधकों की साधना वृक्षों के सान्निध्य में सम्पन्न हुई है।

ऐसा माना जाता है कि पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान सबसे ज्यादा प्रगाढ़ होता है।कई साधकों का अनुभव है, कि पीपल किसी भी रूप में आस-पास हो तो साधना जल्दी सिद्ध होती है।विजय कृष्ण गोस्वामी अपने शिष्यों को सिखाते थे कि पीपल नहीं हो तो कोई बात नहीं, यदि हम पीपल वृक्ष का एक पत्ता भी अपने हाथ में या गोद में रखकर करें तो ध्यान जल्दी लगने लगता है।

                    भगवान बुद्ध की साधना भी पीपल के वृक्ष के नीचे सम्पन्न हुई थी ।निरंजना नदी के पास पीपल की छाँह में, पीपल के नीचे बैठकर उन्होंने बोधि ज्ञान प्राप्त किया था ।साधुओं ने, संतों ने, ध्यानियों ने ,ध्यान सिद्धों ने अपनी साधना वन में की और सिद्धियाँ प्राप्त कींऔर अपने ज्ञान से मानव जाति का कल्याण किया ।

वृक्षों से मैत्री, वृक्षों से तादात्म्य, वृक्षों के साथ जुड़ाव मनुष्य को सच्चा साधक बना देता है ।इसीलिए वृक्षों से मैत्री बड़ा पवित्र भाव है , जो मनुष्य के ध्यान को प्रगाढ़ बनाता है।

वृक्षों से मैत्री ध्यान का एक उन्नत प्रतीक है, ध्यान की एक श्रेष्ठ भावना है ।यह जड़- चेतन को एकाकार करने की भावना है ।प्रकृति से तादात्म्य करने की भावना है ।इसी मैत्रीभाव से हम वृक्षोंके सद्गुण अपना सकते हैं ।

सादर अभिवादन व धन्यवाद ।



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