●●● सफलता का मूलमंत्र, हर काम को सम्मान देना ●●●
हर कार्य के प्रति सदैव सम्मान का भाव रखना , यही जीवन में सफलता का मूल मंत्र है ।हर कार्य मूल्यवान होता है , कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता ।कार्य चाहे जो भी हो , उसे सम्मान के साथ करना हमारे व्यक्तित्व निर्माण का एक बड़ा हिस्सा है।
किसी भी कार्य को करते समय यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि वह छोटा है या बड़ा, वरन यह महत्वपूर्ण होता है कि उसे किस भावना व किस दृष्टिकोण से किया गया है।निश्चित रूप से कार्यकुशलता जरूरी है ।हमारी कार्यकुशलता ही कार्य को सही से करने व अच्छे परिणाम देने में हमारी मदद करती है और हमारी उन्नति के द्वार भी खोलती है।इसलिए चाहे जो भी कार्य किया जाए, उसे पूरे मन से, पूरी कुशलता के साथ किया जाए, तभी हमें उस काम का यथोचित लाभ मिलता है और हमारा मन संतुष्ट रहता है।
●अपने हर कार्य को सम्मान देने वाले व्यक्तियों के उदाहरण●
( वनिता नारायणन)
1 ● आईबीएम में शीर्षपद पर रह चुकीं प्रसिद्ध एक्जेक्यूटिव वनितानारायणन का कहना है -- " कामयाबी के पीछे कई वजहें होती हैं,लेकिन इसमें जो सबसे बड़ी वजह है, वह है --- छोटे-से-छोटे काम को करने को लेकर सम्मान का भाव ।" और इसी कारण वह अपनी रसोई में खाना बनाने, पोंछा लगाने, कपड़े धोने में भी स्वयं को उतना ही सम्मानित महसूस कर पाती हैं, जितना अपने ऑफिस में कंम्प्यूटर के सामने बैठकर काम करने में ।
1 ● आईबीएम में शीर्षपद पर रह चुकीं प्रसिद्ध एक्जेक्यूटिव वनितानारायणन का कहना है -- " कामयाबी के पीछे कई वजहें होती हैं,लेकिन इसमें जो सबसे बड़ी वजह है, वह है --- छोटे-से-छोटे काम को करने को लेकर सम्मान का भाव ।" और इसी कारण वह अपनी रसोई में खाना बनाने, पोंछा लगाने, कपड़े धोने में भी स्वयं को उतना ही सम्मानित महसूस कर पाती हैं, जितना अपने ऑफिस में कंम्प्यूटर के सामने बैठकर काम करने में ।
2 ● अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके जाॅनसन ने भी अपने बचपन में आर्थिक तंगी के कारण मात्र नौ साल की उम्र में दूसरों के जूते पाॅलिश किए, कपास के खेतों में काम किया, बाद में बस चालक भी बने और वेटर का भी काम उन्होंने बखूबी सँभाला।उनका कहना था कि " आर्थिक परेशानियों में किए कार्यों और राष्ट्रपति बनने के बाद किए जाने वाले कामों में उनके लिए कोई खास फरक नहीं था ।"
जॅनसन का लक्ष्य सभी कामों के लिए एक ही था -- हर कार्य को कुशलता के साथ उन्हें पूरा करना ।और इसी कार्य कुशलता के कारण वे एक सामान्य व्यक्ति से अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए।
3 ● पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन भी इसी विचारधारा से अभिप्रेरित थे ।उन्होंने मामूली से कई कार्य किए , जैसे उन्होंने सर्कस में काम किया , लाइफगार्ड का काम करते हुए 77 लोगों को डूबने से बचाया, कैफेटेरिया में टेबल साफ करने का काम भी किया , धीरे-धीरे वे तरक्की करते गए और एक दिन वे राष्ट्रपति भी बन गए।
राष्ट्रपति बनने के बाद रोनाल्ड रेगन अपनी जिंदगी के सफर को भूले नहीं, संघर्षों-कठिनाइयों और उनसे मिलने वाले सबकों को उन्होंने याद रखा ।वे कभी भी अपने बीते समय में किए गए संघर्ष व छोटे समझे जाने वाले कार्यों के प्रति शर्मिंदा नहीं हुए , बल्कि गौरवान्वित ही हुए और उनकी यह आत्मनिर्भरता ही उन्हें शिखर पर ले जा सकी
( रवींद्रनाथ टैगोर)
4 ● प्रसिद्ध साहित्यकार एवं नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता के पास बहुत सारी बग्घियाँ , घोड़े आदि थे , लेकिन उनके पिता ने उनके विद्यालय जाने के लिए एक भी बग्घी की व्यवस्था नहीं की , रवीन्द्रनाथ टैगोर को अन्य विद्यार्थियों के साथ पैदल ही जाने को कहा गया ; जबकि उनका विद्यालय घर से काफी दूर था ।
उनको पैदल स्कूल भेजने के पीछे उनके पिता का मकसद यह था कि रवीन्द्रनाथ के मन में परिश्रम के प्रति सम्मान भाव पैदा हो तथा वे हर कार्य स्वयं करने पर विश्वास रखें ।इसका दूसरा उद्देश्य यह था कि ऐसा करने से उनके मन में सामान्य कार्य करने वाले लोगों के दुःख-दर्द , कष्ट-परेशानी को समझने का भाव भी पैदा हो , ताकि वे जरूरत के समय उनकी मदद कर सकें ।
5 ● ऐसा ही एक घटनाक्रम अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के जीवन के साथ जुड़ा है ।एक दिन उनके पास एक युवक आया , जो अपनी बेकारी से तंग आ चुका था ।वह इतना परेशान था कि उसे लगने लगा कि अब उसके पास भीख माँगने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है ।उसने अपनी परेशानी अब्राहम लिंकन को बताई ।
अब्राहम लिंकन ने उसकी परेशानी को अच्छी तरह सुना और समझा और उसे बड़े अपनेपन के साथ समझाते हुए कहा------ " देखो युवक ! जब ईश्वर ने तुम्हें कीमती शरीर दिया है, तो तुम गरीब कैसे हुए ? क्या तुम्हें यह कहना शोभा देता है कि तुम्हारे पास कुछ नहीं है ।जाओ मेहनत-मजदूरी करो ।मैं खुद भी मजदूरी करता था और आज उसी परिश्रम और लगन से यहाँ तक पहुँचा हूँ ।ये हाथ भीख माँगने के लिए नहीं हैं ।इन्हें काम के लिए उठाओ या प्रभु की प्रार्थना के लिए ।सब कुछ ठीक हो जाएगा।" इसके बाद उस युवक ने लिंकन की सलाह पर चलते हुए जीवन में महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया ।
6 ● मनोवैज्ञानिक चार्ल्स स्पीलबर्ग के अनुसार-- " हर कार्य को सम्मान देने वाले लोग ज्यादा शालीन , ज्यादा विनम्र, अधिक संवेदनशील व समझदार होते हैं ।" इसलिए यह जरूरी है कि परिवार में बच्चों को कार्य का महत्व समझाया जाए , कार्य के प्रति उनके मन में सम्मान का भाव पैदा किया जाए और छोटे-बड़े सभी तरह के कार्यों समान भाव से करने के लिए उन्हें प्रेरित किया जाए।ऐसा करने पर ही बच्चों का कार्य के प्रति सम्मान का भाव पैदा होगा और भविष्य में वे समाज को अपनी उत्कृष्ट सेवाएँ दे सकेंगे ।
जीवन में सफलता का मूलमंत्र यही है कि हम सभी अपने हर कार्य को सम्मान के साथ करें ।
सादर अभिवादन व धन्यवाद ।
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